मालवा देश का सर्वश्रेष्ठ अग्रणी सोयाबीन उत्पादक क्षेत्र है, जो सोयाबीन की उत्पादकता एवं गुणवत्ता के लिए जाना जाता है, किन्तु इधर तो किसान करोना वायरस से परेशान हो रहे है, वहीं सोयाबीन की फसल पर येलो बेन मोजेक वायरस के आक्रमण से सोयाबीन की लगभग सभी जातियां पीली पड़कर येलो वेन मोजेक वायरस बीमारी से ग्रसित हो रही है, जो किसानों के लिए और सोयाबीन उत्पादन के लिए भविष्य की सबसे महत्वपूर्ण चुनौती हो गई है. येलो वेन मोजेक वायरस सफेद मक्खी एवं अन्य रस चूसने वाले कीडों के आक्रमण से एक पौधे से दूसरे पौधें में फैलता है यह वायरस सोयाबीन के उत्पादन को 30 से 70 प्रतिशत तक प्रभावित कर सकता है.वायरस के प्रभाव से बीजों की गुणवत्ता भी खराब हो जाती है तथा वे बीज उपयोग में नहीं लिए जा सकते हैं, क्योंकि यह रोग बीज जनित भी है.
इस बीमारी की गम्भीरता को देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निर्देशानुसार सिपानी कृषि अनुसांधान फार्म पर उपलब्ध 555 सोयाबीन जातियों के वैज्ञानिक तरीके से परिक्षण किया गया और हमें यह बताने में यह प्रसन्नता है, कि लगभग 124 जातियां सिपानी कृषि अनुसंधान केन्द्र पर येलो वेन मोजेक वायरस से प्रतिरोधी/शहनशील पाई गई है, ये जातियां भविष्य में किसानों के लिए वरदान साबित होगी.केन्द्र ने 6 सितम्बर, 2020 रविवार का दिन किसानों के भ्रमण के लिए तय किया है भ्रमण के दौरान अपनी पसन्द की इन जातियों का चयन करने के लिए आमंत्रित है.येलो वेन मोजेक वायरस की बामारी द्वारा फसल नुकसान को ध्यान में रखते हुए तात्कालिक उपाय के रूप में अनुसन्धान केन्द्र द्वारा सोयाबीन की फसल पर निम्न छिड़काव करने से आशातित सुधार हुआ है.जो तात्कालिक उपाय के रूप में किसानों के फसल में होने वाली नुकसान से बचाने में मदद करेगा.
1. माइक्रॉन गोल्ड (सूक्ष्म पोषक तत्व) 3 मि.ली./लीटर
2. स्टेग्रीन (फास्फोरस कम्पाउण्ड, जो कि पौधों के हरित लवक को बढाता है तथा बीमारीयों से बचाता है) 01 मि.ली./लीटर
3. आलराण्डर (इमिडाक्लोपराईड सत्रिकरण, यह रस चूसक कीडों के संक्रमण को रोकता है।) 01 मि.ली./लीटर
4. एक हप्ते के बाद दोहराये.