Mustard Farming: सरसों एक प्रमुख तिलहन फसल है, जिसे रबी के मौसम में उगाया जाता है. इसकी खेती सिंचित और असिंचित, दोनों तरह के क्षेत्रों में की जा सकती है. बारानी क्षेत्रों में संरक्षित नमी का उपयोग करके भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है. किसान सही कृषि तकनीकों का उपयोग कर अपनी उपज को बढ़ाकर अपनी आय में सुधार कर सकते हैं. ऐसे में आइए आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या के अंतर्गत संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, सोहाँव, बलिया के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, डॉ. संजीत कुमार से जानते हैं कि सरसों की खेती कैसे करें? सरसों की अच्छी किस्में कौन-सी हैं?
खेत की सही तैयारी
कृषि जागरण से बातचीत में डॉ. संजीत कुमार ने बताया कि सरसों की बुवाई के लिए खेत की उचित तैयारी बेहद महत्वपूर्ण होती है. उन्होंने किसानों को सलाह दी कि पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें और इसके बाद पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना लें. खेत में नमी की कमी होने पर पलेवा करके खेत को अच्छी तरह से तैयार करें. अगर आधुनिक उपकरण उपलब्ध हों, तो ट्रैक्टर चालित रोटावेटर से एक ही बार में खेत की बेहतरीन तैयारी की जा सकती है, जिससे समय और श्रम दोनों की बचत होती है. खेत की मिट्टी को उचित ढंग से तैयार करने से फसल की जड़ों को गहराई तक पोषण मिलता है, जिससे उपज में वृद्धि होती है.
सरसों के उन्नत किस्मों का चयन
सरसों की खेती में उन्नत और प्रमाणित बीजों का चयन करना बेहद जरुरी है. डॉ. संजीत कुमार ने किसानों को विभिन्न परिस्थितियों के अनुसार उपयुक्त बीजों का चयन करने की सलाह दी, ताकि वे बेहतर उपज प्राप्त कर सकें. उन्होंने बताया कि अलग-अलग क्षेत्रों के लिए सरसों की अलग-अलग किस्में उपयुक्त होती हैं. कुछ प्रमुख उन्नत किस्में इस प्रकार हैं:
सिंचित क्षेत्रों के लिए सरसों की किस्में: पूसा सरसों-30, आर एच-749, आर एच-725, नरेन्द्र अगेती राई-4, नरेन्द्र स्वर्णा-राई-8 (पीली), नरेन्द्र राई (एन.डी.आर.-8501), वरूणा (टी 59), बसंती (पीली), रोहिणी और उर्वशी.
असिंचित क्षेत्रों के लिए सरसों की किस्में: वैभव, वरूणा (टा. 59).
विलम्ब से बुवाई के लिए सरसों की किस्म: आशीर्वाद, वरदान.
लवणीय/क्षारीय भूमि पर सरसों की खेती के लिए किस्में: नरेन्द्र राई-8501, सी.एस.-52, सी.एस.-54.
डॉ. कुमार ने बताया कि सही प्रजाति का चयन फसल की उत्पादकता को सीधा प्रभावित करता है, और यह सुनिश्चित करता है कि फसल अलग-अलग परिस्थितियों में भी अच्छी उपज दे सके.
बीज शोधन और बुवाई
अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए बीज का शोधन अत्यंत महत्वपूर्ण है. बीज जनित रोगों से बचाव के लिए डॉ. संजीत कुमार ने किसानों को बीज शोधन की सलाह दी. उन्होंने बताया कि बुवाई से पहले 2.5 ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज का उपचार अवश्य करें, जिससे बीज जनित रोगों का खतरा कम हो सके. इसके अलावा, 1.5 ग्राम मैटालेक्सिल प्रति किलोग्राम बीज शोधन से सफेद गेरूई और तुलासिता जैसे रोगों की प्रारंभिक अवस्था में ही रोकथाम की जा सकती है.
सरसों की बुवाई के समय का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए. डॉ. कुमार ने बताया कि सरसों की बुवाई 15 अक्टूबर तक अवश्य कर लेनी चाहिए, ताकि फसल को पर्याप्त समय मिल सके. बुवाई के दौरान लाइन से लाइन की दूरी 45 सेमी होनी चाहिए, जिससे पौधों को आवश्यक स्थान मिल सके और उनके विकास में कोई बाधा न आए. बुवाई के बाद हल्का पाटा चलाकर बीज को मिट्टी में ठीक से ढक देना चाहिए. अगर बुवाई में देरी होती है, तो माहू और अन्य कीटों का प्रकोप बढ़ने की संभावना रहती है, जिससे फसल की गुणवत्ता और उपज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
सरसों की फसल में उर्वरक प्रबंधन
सरसों की फसल में उचित उर्वरक प्रबंधन से फसल की उत्पादकता को बेहतर किया जा सकता है. डॉ. संजीत कुमार ने बताया कि उर्वरकों का उपयोग मिट्टी परीक्षण की सिफारिशों के आधार पर किया जाना चाहिए. सिंचित क्षेत्रों में नत्रजन 120 किलोग्राम, फास्फोरस 60 किलोग्राम और पोटाश 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें. फास्फोरस का उपयोग सिंगल सुपर फास्फेट के रूप में करने से सल्फर की उपलब्धता भी सुनिश्चित होती है, जो कि सरसों के पौधों के लिए अत्यंत लाभकारी है. यदि सिंगल सुपर फास्फेट का उपयोग नहीं किया गया हो, तो गंधक की पूर्ति के लिए 25-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से गंधक का प्रयोग करना आवश्यक होता है.
असिंचित क्षेत्रों में उर्वरकों की आधी मात्रा को बेसल ड्रेसिंग के रूप में प्रयोग करें, ताकि फसल को शुरू से ही पोषण मिल सके. उर्वरक का उचित मात्रा में और सही समय पर प्रयोग करने से फसल की जड़ें मजबूत होती हैं और पौधों की वृद्धि तेज होती है, जिससे उपज में भी वृद्धि होती है.
सरसों की फसल में सिंचाई और देखभाल
डॉ. संजीत कुमार ने बताया कि सरसों की अच्छी उपज के लिए सिंचाई का सही समय पर होना भी आवश्यक है. पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद करें और दूसरी सिंचाई फूल आने की अवस्था में करें. इसके बाद फलियों की अवस्था में तीसरी सिंचाई करें, ताकि पौधों को पर्याप्त नमी मिल सके. सिंचाई करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि अधिक पानी से फसल को नुकसान पहुंच सकता है, इसलिए फसल की जरूरत के अनुसार ही पानी दें.
फसल की निराई-गुड़ाई और कीट नियंत्रण भी समय पर करें. यदि फसल पर माहू या अन्य कीटों का प्रकोप दिखाई दे, तो तुरंत उचित कीटनाशक का छिड़काव करें. फसल की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए जैविक और समेकित कीट प्रबंधन तकनीकों का भी उपयोग किया जा सकता है.
सरसों की उन्नत खेती के लिए सही तकनीक, उन्नत प्रजातियों का चयन, समय पर बुवाई, उचित बीज शोधन और उर्वरक प्रबंधन जैसे कारक बेहद महत्वपूर्ण हैं. डॉ. संजीत कुमार द्वारा दिए गए इन सुझावों का पालन करके किसान न केवल अपनी फसल की उपज को बढ़ा सकते हैं, बल्कि अपनी आय में भी उल्लेखनीय वृद्धि कर सकते हैं. आधुनिक कृषि तकनीकों का उपयोग और वैज्ञानिक सलाह से किसानों को अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है.