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Updated on: 19 February, 2021 5:10 PM IST
Farmer Suicide

भले ही सरकार आगामी 2022 तक देश के किसानों की आय को दोगुना करने के प्रति अपने आपको प्रतिबद्ध बता रही हो, लेकिन एनसीआरबी द्वारा जारी किए आंकड़े सरकार की प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े कर रहे हैं. इन आंकड़ों के मुताबिक, कर्ज के तले दबे किसानों के आत्महत्या का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. अपने आपको समृद्ध बताने वाले महाराष्ट्र सरीखे सूबे में प्रतिदिन 88 किसान आत्महत्या कर रहे हैं. वहीं, कृषि क्षेत्र में अपने आपको अग्रणी बताने वाले पंजाब और हरियाणा सरीखे सूबों का इस मामले में कैसा है हाल? बताएंगे आपको सब कुछ, लेकिन उससे पहले एक नजर डालते हैं एनसीआरबी की इस रिपोर्ट पर...

एक नजर NCRB की रिपोर्ट पर..

केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने यह आंकड़ा  NCRB के हवाले से जारी किया है. इन आंकड़ों के मुताबिक, अकेले महाराष्ट्र में 2019-2020 में कुल 12,227 अन्नदाताओं ने मौत को गले लगा लिया. इनमें से किसी को उनकी फसल का वाजिब दाम नहीं मिला तो किसी ने कर्ज के तले दबे होने के चलते तनाव में आकर आत्महत्या का रास्ता चुन लिया. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक किसानों को उनकी फसलों का वाजिब दाम नहीं मिलेगा, तब तक किसानों के आत्महत्या पर विराम नहीं लग सकता. महाराष्ट्र के इतर कर्नाटक और तेलंगाना में भी किसानों के आत्महत्या के बहुत मामले सामने आए हैं.

जानें पंजाब का हाल

इसके साथ ही खेती में सबसे अगृणी माने जाने वाले पंजाब और हरियाणा की बात करें यहां भी किसानों की बदहाली अपने चरम पर है. विगत वर्ष पंजाब में 417 किसान मौत को गले लगा चुके हैं. वहीं, हरियाणा की बात करें तो यहां अब काफी हद तक किसानों की आत्महत्या काबू में है.

आखिर महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या इतनी क्यों? आखिर महाराष्ट्र में किसान इतनी बड़ी तादाद में मौत को गले क्यों लगा रहे हैं? इस सवाल का जवाब देते हुए कृषि विशेषज्ञ कहते हैं कि यहां के किसानों को उनकी फसलों का वाजिब दाम नहीं मिल पाता है. मजबूरन, किसान मौत को गले लगा लेते हैं. महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा किसानों की आत्महत्या का मामला विदर्भ और मराठावाड से सामने आता है. यहां तक की बिहार भी किसानों के आत्महत्या के मामले में बेहतर स्थिति में है. यहां भी किसानों की आत्महत्या काफी कंट्रोल हुई है, मगर महाराष्ट्र जैसे विकसित राज्यों में किसानों की बदहाली लगातार अपने चरम पर पहुंच रही है.

इस संदर्भ में विस्तृत जानकारी देते हुए अखिल भारतीय किसान सभा के विशेष सचिव अजीत नवले कहते हैं कि विदर्भ और मराठावाड में किसानों के आत्महत्या के सबसे ज्यादा मामले  सामने आते हैं. यह एक इरिगेटेड एरिया है, जहां आमतौर पर ड्राइ बीटी कॉटन की फसल उगाई जाती है, जिसकी ज्यादा खरीद होती नहीं है. ऐसे में यह बाजार पर निर्भर हो जाता है कि उनकी फसलों को किस दाम पर खरीदना है, और बाजार की ये नीतियां किसानों का शोषण करती है, जिससे उन्हें आर्थिक तौर पर अत्याधिक नुकसान का सामना करना पड़ता है. आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है कि बीटी कॉटन का समर्थन मूल्य 5,115 रूपए है, लेकिन बाजार की नीतियों के मुताबिक, इसे महज 3 हजार रूपए में खरीदा जाता है.

तो फिर अब क्या समाधान है? 

इसके समाधान पर जोर देते हुए अजीत नवेल कहते हैं कि किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए सबसे पहले हमें कॉटन का समर्थन मूल्य तय करना होगा. इसके अतरिक्त किसानों के कर्ज को माफ करना होगा, जिससे वे तनावमुक्त हो सकें, चूंकि कर्ज के तले दबे किसान आखिर में तनाव में आकर मौत को गले लगा लेते हैं. 

English Summary: Report on Farmer's suicide
Published on: 19 February 2021, 05:32 PM IST

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