उत्तराखंड के किसानों के लिए राज्य मौसम विभाग ने एग्रोमेट एडवाइजरी जारी करते हुए जरूरी सलाह दी है. इसमें राज्य के किसानों को बताया गया है कि मौजूदा मौसम में कैसे वो अपनी फसलों की सुरक्षा करके ज्यादा उत्पादन लें सकते हैं. तो चलिए सिलसिलवार तरीके से इसकी पूरी जानकारी जानते हैं-
पहाड़ी क्षेत्र: ए.एम.एफ.यू. रानीचौरी के किसानों के लिए जरूरी सलाह
सामान्य सलाह -
शुष्क मौसम को देखते हुए किसानों को जरूरत के आधार पर सब्जियों की फसलों की सिंचाई करने की सलाह दी जाती है. रबी फसलों की बुवाई से पहले मिट्टी की जांच कर लेनी चाहिए. मृदा परीक्षण के लिए कृषि संस्थानों, केवीके और कृषि विभाग से संपर्क करें.
मसूर - मसूर की बुवाई करनी चाहिए.
अमरनाथ - अमरनाथ की फसल की कटाई करें.
बरसीम - सिंचित क्षेत्रों, बरसीम में चारे के उत्पादन के लिए जई की बुवाई की जा सकती है.
जौ - जौ की बुवाई जारी रखें.
प्याज़ - नर्सरी में अधिक पानी देने से बचें. नर्सरी का नियमित निरीक्षण करें. यदि कोई भिगोना रोग के लक्षण देखे गए तो बाविस्टीन 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी से उपचारित करें.
सेब - चूहों की उपस्थिति के लिए बाग की निगरानी करें. पहली बर्फ गिरने से पहले चूहे पर नियंत्रण जरूरी है.
गेहूं - गेहूं की बुवाई जारी रखें. बुवाई से पहले बीज को बाविस्टीन (2.5 ग्राम प्रति किलो बीज) से उपचारित करें. यदि खेत में दीमक का प्रकोप हो तो क्लोरपाइरीफोस 20 ईसी (4 मिली/किलोग्राम बीज) को बीज उपचार के रूप में प्रयोग करें और अंतिम जुताई के समय खेत में रेत के साथ भी लगाएं.
नाशपाती - आजकल तिल/महल के पेड़ (हिमालयन नाशपाती/पाइरस पशिया) पर फल पक रहे हैं. तिल/महल के फलों से बीज निकालने के लिए फलों को इकट्ठा करके मंडुवा/झंगोरा के भूसे के साथ मिलाकर एक से डेढ़ महीने तक गड्ढे में दबा कर रखें.
पशुपालन- गाय के किसानों को सलाह दी जाती है कि वे रात के समय बोरे से ढककर बच्चों को ठंड से बचाएं और दिन के समय धूप दें.
ए.एम.एफ.यू-पंतनगर (उधम सिंह नगर और नैनीताल जिला) के किसानों के लिए अहम जानकारी
सामान्य सलाह
पशुओं को "गांठदार त्वचा रोग" से बचाने के लिए टीकाकरण किया जाना चाहिए, जो गायों और भैंसों में एक वायरल रोग है.
गेहूं
असिंचित अवस्था में गेहूँ की किस्मों जैसे- C 306, PBW 175, PBW 65, PBW 396, PBW 299, PBW 644 की बुवाई करनी चाहिए.
असिंचित अवस्था में गेहूँ की किस्मों जैसे- C 306, PBW 175, PBW 396, PBW 299, PBW 644 & WH 1080 की बुवाई करनी चाहिए. बुवाई के लिए गेहूं के प्रमाणित बीज का प्रयोग करना चाहिए. अप्रमाणित बीज की दशा में 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम या 1.5 ग्राम टेबुकोनाजोल 2 डीएस प्रति किलो बीज बोने से पहले प्रयोग करना चाहिए.
सरसों
राई, देर से बोई गई तोरिया और पीली सरसों को फूल आने से पहले हल्की सिंचाई करनी चाहिए.
जौ
निम्न एवं मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में जौ की फसल की बुवाई निम्न के अंतर्गत करनी चाहिए.
सेब
सेब, नाशपाती, आड़ू, बेर आदि जैसे फलों के पेड़ों की गिरती पत्तियों को गड्ढे में इकट्ठा कर लेना चाहिए और संक्रमित पत्तियों को जलाकर नष्ट कर देना चाहिए.
काबुली चना
चने की बुवाई पूरी कर लेनी चाहिए. चने की छोटी दाने वाली किस्म जैसे-पंत जी-114, डीसीपी 92-3, जीएनजी-1581; मध्यम अनाज की किस्में जैसे- पंत जी-186; पूसा-256 और काबुली चना किस्म-पंत काबुली चना-1 जैसी बड़ी बीज किस्म का चयन किया जाना चाहिए.
गाजर
बावर और घाटी क्षेत्रों में गाजर की बुवाई इस महीने में की जा सकती है.
दाल
सिंचित अवस्था में इस माह में चना, मसूर और मटर जैसी दलहनी फसल की बुवाई की जा सकती है. मसूर और मटर की सामान्य बुवाई नवंबर के पहले पखवाड़े में कर देनी चाहिए.
प्याज़
प्याज की स्थानीय किस्मों के बीजों की बुवाई नर्सरी में करनी चाहिए.
सब्जी
बैंगन की फसल में निराई-गुड़ाई करके पके फलों को बाजार में भेजना चाहिए. लौकी, कटी हुई लौकी (तोरी), खीरा, करेला (करेला) उठाकर बाजार में बिक्री के लिए भेज देना चाहिए.
मध्य और ऊँची पहाड़ियों में फूलगोभी और बंदगोभी की रोपाई करनी चाहिए.
यदि देर से आने वाली फूलगोभी की पौध तैयार है तो इसकी रोपाई इसी माह कर देनी चाहिए. रोपाई के लिए 150 किलो एन, 80 किलो पी और 60 किलो के की सिफारिश की जाती है, जिसमें से नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी खुराक खेत की अंतिम जुताई के समय उपयोग की जानी चाहिए.
ए.एम.एफ.यू-रुड़की (हरिद्वार, देहरादून और पौड़ी जिलों के पहाड़ी क्षेत्र) के किसानों के लिए सलाह
चावल
जिस किसान के खेत में धान की फसल में काले या भूरे रंग की गांठ "झूठी स्मट" रोग होने की संभावना हो, वह फसल कटाई के समय पौधे के अधिक रोगग्रस्त भाग को तोड़कर खेत से दूर जला दें.
गन्ना
अच्छी उपज के लिए पतझड़ गन्ने की बुवाई अक्टूबर के अंतिम सप्ताह तक कर लेनी चाहिए, ताकि जिन किसान भाइयों ने अभी तक गन्ना नहीं बोया है, वे बुवाई कर सकें.
मक्का
शरद ऋतु मक्का की बुवाई के लिए अक्टूबर का अंतिम सप्ताह उपयुक्त है, इसलिए किसान भाई शरद मक्का की बुवाई कर सकते हैं.
पशुपालन
भैंस सर्दी आने से पहले पशुशाला की मरम्मत करवा लें. जानवर के बैठने की जगह को सूखा रखें.
नोट- उत्तराखंड के किसानों के लिए समेकित कृषि-मौसम विज्ञान परामर्श (Agro-Meteorological Advisory) मौसम विज्ञान केंद्र, देहरादून द्वारा ए.एम.एफ.यू के सहयोग से जारी किया गया है. ये एग्रोमेट एडवाइजरी रानीचौरी, पंतनगर और रुड़की के लिए 01-11-2022 से 06-11-2022 तक मान्य हैं.