हर साल होने वाले पूसा कृषि विज्ञान मेला को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस साल भी इसे उतनी ही धुमधाम से मनाया जाएगा, जितना की हर साल मनाया जाता है.
आपको बता दें कि इस साल होने वाले पूसा कृषि विज्ञान मेला की तारीख का ऐलान भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने कर दिया है. इस मेले को 9 से 11 मार्च तक मनाया जाएगा. इस मेला का आयोजन दिल्ली में स्थित संस्थान ग्राउंड पर किया जाएगा.
किसान भाईयों को पूसा कृषि विज्ञान मेला का इंतजार सालभर बेसब्री से रहता हैं, क्योंकि इसे उनको कई फायदें होते हैं. देखा जाए, तो इसमें संरक्षित और वर्टिकल फार्मिंग के बारे में किसानों को बताया जाता है. इसके अलावा उन्हें सभी तरह के कृषि उत्पादों के निर्यात के बारे में भी जानकारी दी जाती है. ये ही नहीं इस मेले में एग्री स्टार्टअप (Agri startup), किसान उत्पादक संगठनों (FPO), जैविक एवं प्राकृतिक खेती ले जुड़े सभी समस्याओं के बारे में विस्तार से बताया जाता है.
मेले से तकनीकी ज्ञान से आत्मनिर्भर किसान बनेगा (the fair will make a self-sufficient farmer with technical knowledge)
वहीं, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. अशोक कुमार सिंह के अनुसार, इस मेले से तकनीकी ज्ञान से आत्मनिर्भर किसान बनेगा. इसके अलावा उन्होंने यह भी बताया कि पूसा में तैयार कई तरह की फसलों के उन्नत बीजों की बाजार में बिक्री होगी.
इसके साथ ही किसान भाई अपने खेत की मिट्टी और पानी की जांच भी आसानी से करवा सकते है. किसानों की सभी समस्याओं को कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा हल किया जाएगा.
उधर, वहीं डॉ़ सिंह इस मेले के विषय में कहते है कि यह मेले किसानों के लिए बेहद फायदेमंद है. इस मेले के द्वारा किसान स्मार्ट एग्रीकल्चर (Smart Agriculture), डिजिटल एग्रीकल्चर एवं ड्रोन के उपयोग के बारे में सभी जानकारी प्राप्त कर अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं. किसानों का फसलों को एक्सपोर्ट मार्केट से जोड़ें के तरीकों के बारे में भी इस मेले में बताया जाएगा. जिससे किसानों को अपनी फसल के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा.
मेले में पूसा की नई किस्में शामिल (new varieties of Pusa included in the fair)
जानकारी के मुताबिक इस मेले में पूसा बासमती की चार नई किस्मों पर मुख्य ध्यान दिया जाएगा. जो कुछ इस प्रकार हैं.
- पूसा बासमती 1847
- बासमती 1847
- पूसा बासमती 1885
- पूसा बासमती 1886
पूसा मेले में किसानों को इन सभी नई किस्मों पर लगभग एक-एक किलों बीज आसानी से ले पाएंगे. यह सभी नई किस्में किसानों के लिए बेद किफायती होंगे. इन किस्मों का इस्तेमाल फसलों में करने से कई तरह के रोग फसल में नहीं लगते हैं.