उन्नत क़िस्मों के अभाव में लागत और उपज दोनों ही प्रभावित होता है. इसीलिए कृषि वैज्ञानिक हमेशा उन्नत क़िस्मों की खोज में लगे रहते हैं ताकि किसान कम लागत में ज्यादा उपज प्राप्त कर सकें. इसी क्रम में झारखंड के हजारीबाग के मासीपीढ़ी स्थित केंद्रीय उपरांव भूमि चावल अनुसंधान केंद्र ने धान की चार नई किस्में विकसित की हैं. ये किस्में झारखंड समेत देश में पानी की किल्लत वाले राज्यों के लिए बेहद लाभकारी हैं. ये चार किस्में उपरांव व सिंचित दोनों क्षेत्रों के लिए तैयार की गई है.
इसमें झारखंड के उपरांव भूमि के लिए सीआर धान 103 प्रमुख है. इसके अलावा झारखंड, तामिलनाडू, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ के वर्षाश्रित और सिंचित दोनों जमीन के लिए आइआर 64 सूखा एक किस्म विकसित की गई. कर्नाटक के सिंचित तीन जमीन के लिए गंगावती अगेती और गुजरात के उपरी भूमि के लिए पूर्णा किस्म की धान का भी विकास किया गया है.
सिर्फ एक से दो सिंचाई में किसानों को मिलेगा बंपर पैदावार (Only one to two irrigation farmers will get bumper yield)
आपकी जानकारी के लिए बता दें, कि ये किस्म उपरांव भूमि में कम पानी व कम अवधि में तैयार हो जाएगी. ये किस्में सिर्फ एक से दो सिंचाई में किसानों को बंपर पैदावार उपलब्ध कराएगी. साथ ही साथ धान की गुणवत्ता भी काफी हद तक बरकरार रहेगी. खबरों के मुताबिक, यह किस्म 90 से 125 दिनों में तैयार हो जाएगी. इसके अलावा केंद्र द्वारा करीब डेढ़ हजार प्रजाति का संग्रह भी किया जा चुका है.
अन्य विकसित किस्में भी झारखंड में लोकप्रिय (Other developed varieties are also popular in Jharkhand)
अगर हम पूर्व में विकसित की गई किस्मों की बात करें तो सबसे पहली प्रजाति वंदना थी जो 90 से 95 दिनों में उपज देती है. मध्यम भूमि के लिए यहां की विकसित प्रमुख प्रजाति में सहभागी धान और सूखा आधारित प्रजाति आइआर 64 सूखा प्रमुख है. स्थापना काल से लेकर अब तक केंद्रीय उपरांव भूमि चावल अनुसंधान केंद्र द्वारा धान की कुल 14 प्रजाति का विकास किया जा चुका है. केंद्र की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य उपरांव भूमि में चावल की उत्पादकता बढ़ाना, स्थानीय प्रजाति को उपरी जमीन के लिए विकसित करना तथा धान आधारित फसल चक्र को बढ़ावा देना था.