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Updated on: 12 September, 2025 6:31 PM IST
जैविक खेती

जैविक कृषि की मूल भावना में तीन महत्वपूर्ण पहलू हैं - पर्यावरण का संतुलन, उत्पादकता एवं सामाजिक समानता. जैविक खेती की अवधारणा हमारी अनूठी ग्राम जीवन शैली का हिस्सा है. कीटनाशक रसायन व उर्वरकों के असंतुलित उपयोग से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है और भूमि की उर्वरा शक्ति में भी ह्रास हो रहा है, साथ ही फल, सब्ज़ी व अनाज की गुणवत्ता में भी गिरावट आ रही है. इसलिए, जैविक खेती वर्तमान समय की आवश्यकता है.

जैविक खेती में खेती की लागत कम करने तथा फार्म के उत्पादों के पुनर्चक्रण के लिए खेत या फार्म पर ही जैविक आदानों का उत्पादन करना लाभप्रद रहता है. जैविक खादों के अलावा पौधे आधारित उत्पाद मुख्य हैं, जिनका उपयोग पौध व्याधि, कीट नियंत्रण तथा पौधे वृद्धि कारक के रूप में किया जाता है. किसान स्वयं भी जैविक आदानों का उत्पादन कर सकते हैं, जिनका उपयोग कर लागत में कमी लाई जा सकती है तथा गुणवत्तापूर्ण उत्पादन लिया जा सकता है.

महत्वपूर्ण जैविक आदानों की निर्माण विधि एवं उपयोग की विधियां निम्न प्रकार हैं —

पंचगव्य

गाय के पांच उत्पादों - गोबर, गोमूत्र, दूध, दही तथा घी को सामान्यतः 5:3:2:2:1 के अनुपात में मिलाकर बनाया जाता है. इसका उपयोग करने पर फसल में वृद्धि तथा कीट एवं रोगों पर प्रभावकारी असर होता है.

पंचगव्य तैयार करने की सामग्री -

  • ताज़ा गोबर - 5 किलो

  • गोमूत्र - 3 लीटर

  • दूध - 2 लीटर

  • घी - 1 किलो

  • गुड़ - 600 ग्राम

  • नारियल पानी - 3 लीटर (यदि उपलब्ध हो)

  • पका केला - 12 नग

  • बेकर्स यीस्ट - 100 ग्राम

बनाने की विधि -
गाय का गोबर एवं घी को एक बर्तन या घड़े में डालें और दिन में तीन बार, 15 मिनट तक, तीन दिन तक हिलाएं. चौथे दिन शेष सभी पदार्थों को मिलाएं. इन सभी सामग्री को दिन में दो बार, 15 दिन तक चलाते रहें. फिर 500 ग्राम गुड़ या चीनी को 3 लीटर पानी में मिलाएं. 100 ग्राम बेकर्स यीस्ट और 100 ग्राम गुड़ को 2 लीटर गर्म पानी में मिलाएं. 30 मिनट के बाद इस घोल को मुख्य घोल में मिलाएं. पंचगव्य को दिन में दो बार हिलाएं.

पंचगव्य 30 दिन में तैयार हो जाता है. मक्खियों एवं मच्छरों के अंडों से बचने के लिए कंटेनर को मच्छरदानी से ढक दें. इसे 6 माह तक बिना गुणवत्ता परिवर्तित हुए रखा जा सकता है. अधिकतर फसलों में 3% पंचगव्य प्रभावकारी है. पंचगव्य घोल को सिंचाई के रूप में 20 लीटर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें. नर्सरी बेड का 3% पंचगव्य घोल से ड्रेचिंग करें या पौधों को 3% घोल में 30 मिनट तक डुबोएं.

मटका खाद

15 किलोग्राम ताज़ा गोबर, देसी गाय का 15 लीटर गोमूत्र, 15 लीटर पानी मिट्टी के घड़े में घोल लें. इसमें 250 ग्राम गुड़ मिला दें. मिट्टी के बर्तन को कपड़े या टाट व मिट्टी से पैक कर दें. 8 दिन के बाद इस घोल में 200 लीटर पानी मिलाकर 1 एकड़ खेत में समान रूप से छिड़कें या छिड़काव बुवाई के 15 दिन बाद करें. पुनः 7 दिन के बाद दूसरा छिड़काव करें. सामान्य फसल में 3 से 4 बार और लंबी अवधि की फसल में 8 से 9 बार छिड़काव करें.

गौमूत्र

1 लीटर गौमूत्र को 20 लीटर पानी में मिलाकर पर्णीय छिड़काव करें. इससे अनेक रोगाणुओं तथा कीटों का प्रबंधन होता है और फसल में वृद्धि नियमित रूप से होती है.

सड़ा हुआ छाछ का पानी

छाछ का पानी 5 से 7 दिन के लिए घड़े में रखकर छोड़ दिया जाता है. 7 दिन के बाद इसका निथरा हुआ द्रव निकालकर उपयोग में लिया जाता है.

नीम के पत्ते का घोल

5 किलोग्राम नीम के पत्तों को कुचल लें. इसमें 5 लीटर गोमूत्र तथा 2 किग्रा गाय का गोबर मिलाएं तथा दो दिनों तक सड़ने दें. थोड़े-थोड़े अंतराल पर हिलाएं तथा सत को निचोड़ कर छानें. फिर 100 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. 1 एकड़ क्षेत्र में पूर्णतया छिड़काव करें. इससे चूसने वाले कीटों तथा नीली बग का नियंत्रण किया जा सकता है.

तीखा सत

  • 500 ग्राम हरी तीखी मिर्च

  • 500 ग्राम लहसुन

  • 1 किग्रा धतूरा पत्तियां

  • 500 ग्राम नीम की पत्तियां

  • 10 लीटर गोमूत्र

इन सभी को कुचलें और तब तक उबालें जब तक यह मात्रा आधी न रह जाए. सत को निचोड़ कर छानें. फिर शीशे या प्लास्टिक की बोतलों में भंडारित करें. 2-3 लीटर सत को 10 लीटर पानी में मिलाएं. यह 1 एकड़ क्षेत्र हेतु पर्याप्त है. इसके प्रयोग से पत्ती लपेटक, तना, फल तथा फली छेदक कीटों का नियंत्रण होता है.

जीवामृत

10 किलोग्राम गाय का गोबर, 10 लीटर गोमूत्र, 2 किलोग्राम गुड़, 1 किलोग्राम चने या उड़द की दाल का आटा, 1 किलोग्राम जीवंत मृदा को 200 लीटर पानी में मिलाकर 7 दिनों तक सड़ने दें. नियमित रूप से दिन में तीन बार मिश्रण को हिलाते रहें. 1 एकड़ क्षेत्र में सिंचाई जल के साथ प्रयोग करें. यह भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने तथा पौध वृद्धि में सहायक होता है.

तीन घोल जैव कीटनाशी

मिश्रण-1
3 किलोग्राम पिसी हुई नीम की पत्तियां तथा 1 किलोग्राम निम्बोली पाउडर को 10 लीटर गोमूत्र में ताम्र पात्र में मिलाकर उबालें जब तक कि मात्रा आधी न रह जाए. इसके बाद इस घोल को 10 दिनों तक सड़ने दें.

मिश्रण-2
500 ग्राम पिसी हुई हरी मिर्च को 1 लीटर पानी में रातभर भिगोकर रखें.

मिश्रण-3
250 ग्राम पिसा हुआ लहसुन को 1 लीटर पानी में मिलाकर रातभर के लिए रखें.

तीनों मिश्रण को 200 लीटर पानी में मिलाकर 1 एकड़ क्षेत्र में छिड़काव करें.

फफूंदनाशी

5 लीटर गाय के दूध में 200 ग्राम काली मिर्च पाउडर मिलाएं तथा अच्छी तरह घोलकर छान लें. छने हुए घोल को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें.

लेखक: रबीन्द्रनाथ चौबे, ब्यूरो चीफ, कृषि जागरण, बलिया, उत्तर प्रदेश

English Summary: organic farming indigenous input production techniques india
Published on: 12 September 2025, 06:34 PM IST

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