सोमानी क्रॉस X-35 मूली की खेती से विक्की कुमार को मिली नई पहचान, कम समय और लागत में कर रहें है मोटी कमाई! MFOI 2024: ग्लोबल स्टार फार्मर स्पीकर के रूप में शामिल होगें सऊदी अरब के किसान यूसुफ अल मुतलक, ट्रफल्स की खेती से जुड़ा अनुभव करेंगे साझा! Kinnow Farming: किन्नू की खेती ने स्टिनू जैन को बनाया मालामाल, जानें कैसे कमा रहे हैं भारी मुनाफा! केले में उर्वरकों का प्रयोग करते समय बस इन 6 बातों का रखें ध्यान, मिलेगी ज्यादा उपज! भारत का सबसे कम ईंधन खपत करने वाला ट्रैक्टर, 5 साल की वारंटी के साथ Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Mahindra Bolero: कृषि, पोल्ट्री और डेयरी के लिए बेहतरीन पिकअप, जानें फीचर्स और कीमत! Multilayer Farming: मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक से आकाश चौरसिया कमा रहे कई गुना मुनाफा, सालाना टर्नओवर 50 लाख रुपये तक घर पर प्याज उगाने के लिए अपनाएं ये आसान तरीके, कुछ ही दिन में मिलेगी उपज!
Updated on: 12 February, 2022 4:59 PM IST
Opium Cultivation

भारत औषधीय पौधों का भंडार है क्योंकि यहाँ पर विविध प्रकार के औषधीय पौधे पाये जाते है. इन औषधीय पौधों में से एक पौधा है अफीम जो की अपने आप में एक उत्कृष्ट औषधीय पौधा है, इसका वैज्ञानिक नाम  पैपेवर सोम्निफेरम है, यह पैपेवरेसी कुल का एक पौधा है.

मॉर्फिन और कोडीन नामक दो महत्वपूर्ण तत्व अफीम के पौधे में पाये जाते है.  इन तत्वों से कई महत्वपूर्ण दवाएं बनाई जाती है जो की और दर्द निरोधक व कृत्रिम निद्रावस्था के प्रभाव के लिए उपयोग में ली जाती है.

इन रासायनिक तत्वों से प्राप्त की जाने वाली मॉर्फिन को हेरोइन के रूप में जाना जाता है. मॉर्फिन और कोडीन की जगह लेने वाली कृत्रिम दवा खोजने का प्रयास अब तक फलदायी नहीं रहा है. विश्व में अफीम की खेती कई देशों में की जाती है जबकि भारत में इसकी खेती मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्यों तक ही सीमित है. अफीम एक वार्षिक पौधा है जो कि 60 से 120  से॰मी॰ की ऊंचाई तक वृद्धि करता है.

यह एक सीधा पौधा है जो की शाखित नहीं होता. इस पौधे की पत्तियां अंडाकार, आयताकार या रैखिक आयताकार होती हैं, फूल आम तौर पर नीले रंग के होते है जिनका आधार बैंगनी रंग का होता है या फिर फूल सफेद, बैंगनी या भिन्न प्रकार के होते हैं. यह कैप्सूल प्रकार के फल पैदा करता है जिससे अफीम के रूप में जाना जाने वाला लेटेक्स को लैंसिंग की प्रक्रिया द्वारा प्राप्त किया जाता है. यह फल लगभग 2.5 से॰मी॰ व्यास के होते हैं, आकार में गोलाकार होते हैं. बीज सफेद या काले रंग के वृक्काकार होते हैं. हालांकि पौधे ​​के लगभग सभी हिस्सों में सफेद दूधिया लेटेक्स होता है, लेकिन बिना पके कैप्सूल में यह बड़ी मात्रा होती है.

जलवायु और मिट्टी:-

अफीम एक सम शीतोष्ण जलवायु की फसल है लेकिन उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सर्दियों के दौरान सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है. ठंडी जलवायु इसकी उपज को बढ़ाती है, जबकि दिन व रात का अधिक तापमान आम तौर पर उपज को प्रभावित करता है. पालेदार या शुष्क तापमान, बादल या बारिश का मौसम न केवल उत्पादन को कम करता है बल्कि अफीम की गुणवत्ता को भी कम करता है. अफीम का उत्पादन के लिए ​​7.0 के आसपास एक इष्टतम पीएच के साथ एक अच्छी निकासी वाली , अत्यधिक उपजाऊ हल्की काली या दोमट मिट्टी उपयोगी है.

प्रमुख किस्मे:-

तालिया, रंघोटक, धोला छोटा गोटिया, MOP-3, MOP-16, शमा, बोटानिकल रिसर्च ओपयम पोप्पी-1, कीतिमान (NOP-4), चेतक (U॰O॰-285), जवाहर अफीम-16 (J A-16) इत्यादि.     

कैसे जमीन को करें तैयार :-

मिट्टी को अच्छी तरह से चूर्णित बनाने के लिए खेत की 3 या 4 बार जुताई करनी चाहिए. खेत में फिर सुविधाजनक आकार की क्यारी तैयार की जा सकती है.

बुवाई:-

अफीम के बीजों को या तो प्रसारण विधि द्वारा या फिर लाइनों में बोया जाता है.  बुवाई से पहले बीजों को डिथेन एम .45 (कवकनाशी) के साथ 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार किया जाता है. प्रसारण से पहले बीज को आमतौर पर महीन रेत के साथ मिलाया जाता है ताकि बीज समान रूप से क्यारियों में फैल जाए.

लाइन बुवाई को ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि प्रसारण विधि में कई कमियां हैं जैसे उच्च बीज दर, खराब फसल स्टैंड और अंतर सस्य क्रियाओं के संचालन में बाधा आना आदि. बुवाई का सबसे अच्छा समय अक्टूबर महीने के अंत का समय या नवंबर महीने के शुरुआती दिनों का होता है. प्रसारण विधि के लिए बीज दर 7-8 किग्रा/हेक्टेयर है और लाइन बुवाई के लिए 4-5  किलोग्राम / हेक्टेयर है.  आम तौर पर बुवाई के समय लाइन से लाइन के बीच में 30 से॰मी॰ की दूरी और पौधे से पौधे के बीच 30 से॰मी॰ की दूरी अपनायी जाती है.

बुवाई के बाद:-

मिट्टी की नमी के आधार पर अंकुरण में पांच से दस दिन लगते हैं. थिनिंग एक महत्वपूर्ण सस्य क्रिया है ताकि पौधे  की  समान व बेहतर की वृद्धि को  सुनिश्चित किया जा सके.  यह सामान्य रूप से जब पौधे 5-6 से॰मी॰ ऊंचे होते हैं व पौधे में 3-4 पत्तियां होती हैं तब की जाती है.  थिनिंग तब तक की जाती है जब तक पौधा 14 से 15 से॰मी॰ की ऊंचाई का न हो जाए यह प्रक्रिया 3-4 सप्ताह की अवधि में की जाती  है. 

खाद और उर्वरक:-

अफीम, ​​खाद और उर्वरकों के उपयोग पर उल्लेखनीय प्रतिक्रिया करता है जो की अफीम की उपज और गुणवत्ता दोनों में वृद्धि करता है. खेत की जुताई के समय FYM को  20-30 टन/ हेक्टेयर की दर से प्रसारण विधि द्वारा खेत में दी जाती है. इसके अलावा, 60- 80 किलोग्राम N और 40-50 किलोग्राम P2Oप्रति हेक्टेयर की सिफारिश की जाती है. इसमें पोटाश का उपयोग नहीं किया जाता है. N का आधा भाग और संपूर्ण P को बुवाई के समय प्लेसमेंट विधि द्वारा खेत में दिया जाता है और शेष आधे N को रोसेट स्टेज पर दिया जाता है.

सिंचाई:-

अफीम की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए एक सावधानीपूर्वक सिंचाई प्रबंधन आवश्यक है. बुवाई के तुरंत बाद एक हल्की सिंचाई दी जाती है व जब बीज अंकुरित होने लगते हैं तो 7 दिनों के बाद दूसरी हल्की सिंचाई दी जानी चाहिए. पूर्व फूल की अवस्था तक 12 से 15 दिन के अंतराल पर तीन सिंचाई दी जानी चाहिए और फिर फूल और कैप्सूल गठन की अवस्था पर सिंचाई की आवृत्ति 8-10 दिनों तक कम कर दी जाती है. आम तौर पर, पूरी फसल अवधि के दौरान 12-15 सिंचाई की जाती है. फलने और लेटेक्स निकालने के चरण के दौरान नमी की कमी पैदावार काफी कम करती है.

लांसिंग और लेटेक्स संग्रह:-

अफीम बुवाई के 95-115 दिनों के बाद फूल आना शुरू हो जाता है. फूल आने के  3-4 दिनों के बाद पंखुड़ी झड़ना शुरू हो जाती है. फूल आने के 15-20 दिनों के बाद कैप्सूल परिपक्व होते हैं. इस अवस्था पर कैप्सूल की लांसिंग करने पर अधिकतम लेटेक्स निकालता है.

इस अवस्था को पुष्टि  कैप्सूल की जटिलता और कैप्सूल पर उपस्थित घेरो का हरे रंग से हल्के हरे रंग में बदलाव से किया जाता है.  इस अवस्था को औद्योगिक परिपक्वता कहा जाता है. लैंसिंग की क्रिया तीन या चार समान बिंदुओं पर स्थित नुकीले सिरे वाले चाकू के साथ कि जा सकती है जो की कैप्सूल में 1-2 मि॰मी॰ से अधिक नहीं घुसता है. बहुत गहरा या बहुत उथला चीरा उपयुक्त नहीं होता.  लांसिंग प्रत्येक कैप्सूल पर दो दिनों के अंतराल पर सुबह 8 बजे से पहले की जा सकती है.  चीरे की लंबाई 1/3 या कैप्सूल की पूरी लंबाई से कम होनी चाहिए.

कटाई और थ्रेशिंग:-

अंतिम लांसिंग पर जब कैप्सूल से लेटेक्स का निकास रुक जाता है तब लगभग 20-25 दिनों के लिए फसल को सूखने के लिए छोड़ दी जाती है. उसके बाद कैप्सूल को तोड़ लिया जाता है व पौधे के बचे हुए भाग को काट लिया जाता है.  फिर इकट्ठा किए गए  कैप्सूल को खुले खेत में सुखाया जाता है और लकड़ी की डंडे से पिट कर बीजों को एकत्र किया जाता है. कच्ची अफीम की उपज 50 से 60 किग्रा /हेक्टेयर होती है.

अफीम की खेती के लिए लाइसेंस कैसे प्राप्त करें:-

केंद्रीय नारकोटिक्स विभाग लाइसेंसिंग प्रक्रिया को पूरा करता है, और अफीम की उपज भी खरीदता है. इससे पहले भारत के अन्य राज्यों में अफीम उगाने के कई प्रयास किए गए, लेकिन प्रतिकूल मौसम के कारण सफल नहीं हुए.

इसलिए उन राज्यों के किसानों के लाइसेंस रद्द कर दिए गए. वर्तमान में, यह केवल मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान राज्यों में उगाया जाता है. यह लाइसेंस केवल उन्हीं किसानों को दिया जाता है जो पहले से ही सरकारी नियमों का पालन करते हुए अफीम की खेती कर रहे हैं. पात्र किसानों को एक वर्ष के लिए लाइसेंस दिया जाता है और एक साल बाद फिर से नया लाइसेंस जारी किया जाता है. अफीम नीति के तहत सरकार लाइसेंस देती है इस लाइसेंस के लिए कोई आवेदन जमा करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि लाइसेंस पहले से मौजूद रिकार्ड के आधार पर दिया जाता है.

लेखक:

गणेश कुमार कोली, राजेश आर्या, सोमवीर निंबल, दीपक कुमार और किरण, अनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार, हरियाणा.

English Summary: Opium, For advanced cultivation of opium, take special care of these things
Published on: 12 February 2022, 05:09 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now