लुपिन फाउंडेशन द्वारा बीएस पब्लिक स्कूल सेवर में आयोजित किये जा रहे छः दिवसीय प्राकृतिक कृषि प्रशिक्षण शिविर में गुरूवार को तीसरे दिन कृषि विशेषज्ञ एवं पद्मश्री डॉ. सुभाष पालेकर ने देशी गाय की महत्वता एवं जीवाणु अमृत बनाने की विधियों की जानकारी दी. इस प्रशिक्षण शिविर में 19 राज्यों के करीब 6 हजार किसान, कृषि विशेषज्ञ एवं कृषि विषय के विद्यार्थी भाग ले रहे है.
शिविर में डॉ. सुभाष पालेकर ने बताया कि देशी गाय का दूध, गोबर व गौमूत्र मानव के लिये एक प्रकार का वरदान है. देशी गाय के दूध में ओमेगा-3 फैटी एसिड, लियोनिक एसिड सहित विटामिन-ए व डी सहित अन्य उपयोगी प्रोटीन होती हैं जो मानव स्वास्थ्य के लिये उपयोगी मानी गयी हैं. इसके अलावा गौमूत्र रक्त को शुद्ध करने के साथ ही विषाणुरोधी होता है. उन्होंने बताया कि देशी गाय के गोबर में कार्बन, नाईट्रोजन, अमोनिया, एन्ड्रोल जैसे तत्व होते हैं जो पौधों की वृद्धि में सहायक होने के साथ ही सूक्ष्म जीवाणुओं के लिये भी भोज्य पदार्थ का कार्य करते हैं. उन्होंने गाय के गोबर को यूरिया का कारखाना बताते हुए कहा कि गोबर में पर्याप्त मात्रा में नाईट्रोजन, फॉस्फेट व जैविक कार्बन जैसे तत्व मिलते हैं.
डॉ0 पालेकर ने खेती के लिये जीवाणु अमृत बनाने की विधि समझाते हुये कहा कि इसके लिये 200 लीटर पानी में 10 किलो देशी गाय का गोबर, 5 लीटर गौमूत्र के अलावा एक-एक किलो गुड व बेसन तथा एक मुट्ठी खेत की मिट्टी का उपयोग किया जाता है. जीवाणु अमृत बनाने के लिये इन सभी वस्तुओं को एक बड़े ड्रम में घोलकर कई दिनों तक रखा जाता है ताकि उसमें जीवाणुओं की उत्पत्ति हो सके. इसके बाद इस घोल को फसलों पर छिड़काव किया जाता है ताकि फसलों व खेत की मिट्टी में ये जीवाणु पहुँचकर पौधों के लिये पर्याप्त पोषक तत्व प्रदान कर सकें. जीवाणु अमृत डालने के बाद किसी भी प्रकार के रासायनिक खादों की आवश्यकता नहीं होती यहां तक कि सिंचाई के लिये भी मात्र 10 प्रतिशत पानी की ही आवष्यकता होती है.
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प्रशिक्षण शिविर में डॉ0 पालेकर ने बताया कि किसान अधिक मात्रा में रासायनिक खादों का प्रयोग कर रहे हैं जिसकी वजह से भूमि में जल अवषोषण की क्षमता घट गई है, वहीं फॉस्फेट व अन्य हानिकारक तत्वों की मात्रा बढ़ जाने से कठोर हो गई है जिसकी वजह से बार-बार सिंचाई करनी पड़ती है. रासायनिक खादों एवं कीटनाशक दवाईयों के प्रयोग की वजह से खाद्यान्न जहरीले हो गये हैं जो मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल रहे हैं. जबकि प्राकृतिक कृषि विधि में जीवाणु अमृत का उपयोग होने की वजह से खाद्यान्न पौष्टिक होने के साथ अधिक गुणकारी होते हैं, क्योंकि इनमें सभी प्रकार के तत्वों का समावेश होता है.