मंगलवार यानी कल 02 मई के दिन वस्त्र और वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग द्वारा ‘मक्का से इथेनॉल’ ('Ethanol from corn') पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इस दौरान उन्होंने कहा कि भारत में इथेनॉल क्षेत्र का विकास जबरदस्त रहा है और यह दुनिया के लिए एक तरह का उदाहरण है.
गोयल ने कहा कि पिछले 9 वर्षों में, चीनी क्षेत्र आत्मनिर्भर रहा है. पिछले सीजन में किसानों को 99.9 प्रतिशत से अधिक भुगतान किया गया. अब एथेनॉल गन्ना किसानों की तर्ज पर मक्का किसानों की आय बढ़ाने और मजबूती के साथ उनका विकास करने में मदद करेगा. इस क्षेत्र में हजारों करोड़ का निवेश आया है जिससे ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के हजारों अवसर सृजित हुए हैं. इससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर गुणात्मक प्रभाव पड़ा है. उन्होंने कहा कि इथेनॉल जैसा पर्यावरण अनुकूल ईंधन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सर्वोच्च प्राथमिकता सूची में रहा है. इसके परिणामस्वरूप केवल दो वर्षों में इथेनॉल सम्मिश्रण दोगुना से अधिक हो गया है और 20 फीसदी इथेनॉल सम्मिश्रण पाने का लक्ष्य भी 2030 से पहले करते हुए 2025 कर दिया गया है. उन्होंने कहा कि समयबद्ध योजना, अनुकूल औद्योगिक नीतियां और उद्योग के सहयोग से भारत सरकार के पारदर्शी दृष्टिकोण ने इन उपलब्धियों को एक वास्तविकता बना दिया है. उन्होंने किसानों के हितों को हमेशा सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखते हुए 20 फीसदी इथेनॉल सम्मिश्रण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए केंद्र सरकार, राज्यों, अनुसंधान संस्थानों, तेल विपणन कंपनियों और डिस्टिलरी के समकालिक प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया.
किसानों को मिले स्वच्छ ईंधन
इस कार्यक्रम में गोयल ने आगे कहा कि विश्व नेता बनने के लिए भारत कम समय में बड़े लक्ष्यों को पूरा करने में लगा हुआ है. जिसे साल 2025 तक पूरा कर दिया जाएगा. ऐसा होने के बाद देश के किसानों के हितों को देखते हुए स्वच्छ ईंधन मिल सके.
खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण सचिव ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर मक्का की सुनिश्चित खरीद और अनाज आधारित डिस्टिलरी के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बुनियादी आवश्यकता के रूप में पूरे क्षेत्र के लिए इको सिस्टम विकसित करने की आवश्यकता जताई.
देश में, डिस्टिलरी आमतौर पर शीरे से इथेनॉल का उत्पादन करती हैं जो चीनी का उप-उत्पाद है. हालांकि,20 प्रतिशत सम्मिश्रण लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए गन्ना का उपयोग पर्याप्त नहीं है, इसलिए, मक्का, क्षतिग्रस्त खाद्यान्न (डीएफजी) और भारतीय खाद्य निगम के पास उपलब्ध चावल जैसे खाद्यान्नों से इथेनॉल बनाने की भी अनुमति दी गई है.
2025 तक पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल मिलाने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लगभग 1016 करोड़ लीटर इथेनॉल की आवश्यकता होगी और अन्य उपयोगों के लिए लगभग 334 करोड़ लीटर इथेनॉल की आवश्यकता होगी. इसके लिए लगभग 1700 करोड़ लीटर इथेनॉल उत्पादन क्षमता की आवश्यकता होगी, क्योंकि संयंत्र 80 फीसदी दक्षता पर संचालित होता है.
देश में मक्के की स्थिति
विश्व स्तर पर, मक्का इथेनॉल के उत्पादन के लिए एक प्राथमिक फीडस्टॉक है क्योंकि यह कम पानी की खपत करता है और किफायती है, हालांकि, भारत में, इथेनॉल उत्पादन के लिए फीडस्टॉक के रूप में मक्का का उपयोग का तेजी बढ़ना अभी बाकी है. वर्तमान में, अनाज आधारित डिस्टिलरी टूटे चावल जैसे क्षतिग्रस्त खाद्यान्न (डीएफजी) का उपयोग करके या भारतीय खाद्य निगम के चावल का उपयोग करके खाद्यान्न से इथेनॉल का उत्पादन कर रही हैं, भारत में अनाज आधारित डिस्टिलरी द्वारा मक्का से इथेनॉल का उत्पादन मुश्किल से ही होता है. इथेनॉल उत्पादन के लिए कई फीड-स्टॉक का उपयोग फीडस्टॉक सुरक्षा सुनिश्चित करेगा जिससे किसी एक फीडस्टॉक की उपलब्धता पर कोई दबाव नहीं पड़ेगा. इसके अलावा, मक्का आधारित इथेनॉल अधिक किफायती है.
देश में मक्का का उत्पादन निरन्तर हो रहा है. हालांकि मक्का की कम मांग के कारण किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है. मक्का से इथेनॉल के उत्पादन से मक्का की मांग बढ़ेगी और इससे किसानों को बेहतर कीमत मिलेगी. वर्तमान में, निर्यात बढ़ने के कारण, मक्का की कीमतें अधिक हैं, लेकिन आम तौर पर, मक्का का बाजार मूल्य न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे रहता है, जिससे इस फसल के लिए खेती का क्षेत्रफल कम हो जाता है. इथेनॉल उत्पादन के लिए मक्का का उपयोग बेहतर कीमतों और मक्का की लगातार मांग को सुनिश्चित करेगा जिससे इस फसल की खेती ज्यादा होगी जो धान की तुलना में कम पानी की खपत वाली फसल है.
स्त्रोत- PIB