सर्दीयों के मौसम आते ही किसानों को उनकी फसलों के पाले से खराब होने की चिंता सताने लगती है. ऐसे किसानों के लिए एक राहत भरी खबर है जिनकी फसल पाले से खराब हो जाती है. मध्य प्रदेश के ग्वालियर स्थित राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी मशीन बनाई है जो किसानों के फसलों को ठंड में पाले से बचाएगी. यह मशीन खेत के तापमान को छह डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं जाने देगी और जैसे ही पारा छह डिग्री सेल्सियस पर पहुंचेगा, मशीन गर्म हवा के जरिये खेत का तापमान आठ डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा देगी.
अत्यधिक ठंड पड़ने के कारण तापमान चार डिग्री से नीचे चला आता है जिसके कारण पाला गिरना शुरू हो जाता है. इस मशीन को पेटेंट करने के लिए विश्वविद्यालय प्रबंधन द्वारा राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रस्ताव भेजा गया है और पेटेंट होने के बाद यह मशीन बाजार में किसानों के लिए उपलब्ध हो जाएगी. इस मशीन को छह वैज्ञानिकों की टीम ने ढ़ाई साल का समय लगाकर तैयार किया है.
इस मशीनी की खास विशेषता यह है कि मशीन ठंडी हवा आते ही चालू हो जाएगी. अगर मध्य प्रदेश के मौसम के अनुसार बात करें तो इसे खेत पर उत्तर-पूर्व की दिशा में मेड़ पर लगाया जाएगा. इस दिशा से आने वाली ठंडी हवा का तापमान जैसे ही छह डिग्री सेल्सियस पर आएगा तो मशीन चालू हो जाएगी. मशीन स्वचालित है और इसमें लगे पंखे की वजह से यह छह फीट ऊंचाई तक गर्म हवा फेंकने की क्षमता रखता है. यह मशीन धुआं भी फेंकती है. इस मशीन के जरिए सामान्य फसल के साथ-साथ फल वाली फसलों को भी बचाया जा सकता है.
बिजली और डीजल से चलेगी
इस गुणकरी मशीन को बिजली के साथ-साथ डीजल से भी चलाया जा सकता है. इसके साथ ही इसमें यह व्यवस्था भी रहेगी कि जरूरी बिजली खेत में ही सौर ऊर्जा से बनाई जा सके. इस मशीन के दो-तीन घंटे चलने पर करीब एक यूनिट बिजली की खपत होगी.
50 से 60 हजार रुपये हो सकती है कीमत
मशीन का परीक्षण सफल रहा है. 2021 तक मशीन पेटेंट भी हो जाएगी. कीमत अभी तय नहीं है लेकिन 50 से 60 हजार रुपये से ज्यादा नहीं होगी, ताकि छोटे किसान भी इसे खरीद सकें. ग्वालियर के राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के विज्ञानी डॉ. नितिन सोनी ने कहा कि मध्य प्रदेश में सर्दी के मौसम में रात दो से सुबह पांच के बीच औसतन आठ दिन पाला पड़ता है. इतने कम दिनों में भी पाले की वजह से 50 फीसद फसलें खराब हो जाती है. बड़े किसान तो आधुनिक तकनीक से प्राकृतिक आपदाओं से बचने का रास्ता तलाश लेते हैं लेकिन छोटे किसान लाचार हो जाते हैं. कम लागत की वजह से यह मशीन फायदेमंद साबित होगी. पेटेंट होते ही मशीन किसानों के बीच पहुंचाई जाएगी.