मन्दसौर जिले के चम्बल नदी के पास भानपुरा और नीमच जिले के कुकडेश्वर में पान की खेती होतीं है. जोकि यहां के हज़ारों लोगों का रोज़गार का साधन है. यहाँ के पान का देशभर में अपनी अलग ही पहचान है. हालांकि Lock down के चलते पान उत्पादकों का ख़ासा नुक़सान हुआ है. खेत मालिक और मज़दूरों को आर्थिक नुक़सान का सामना करना पड़ रहा है. इस बार पान का व्यापार बन्द होने से पान की बिक्री नही होने से पान की खेती पुरी तरह बर्बाद हो गई है, पान सड़ रहे हैं.
इस देशी पान की ख़ासियत की वजह से देशभर के लोग इसको पसन्द करते है. भानपुरा और कुकडेश्वर के आसपास के इलाक़ों में पैदा होने वाला पान देश के कई लोगों के लबों को सुर्ख़ करता है. काफ़ी लोग की पसन्द होने के कारण दूर-दूर तक इसकी माँग रहती है. यहीं कारण है कि पान की पैदावार में कई किसान और मज़दूर जुड़े हुए है.
गुटखा और तम्बाकू प्रतिबन्ध होने के कारण पान की दुकाने भी बन्द है और Lock down होने से पान की खेती करने वाले किसानों को बहुत नुक़सान हुआ है। जिसके कारण दिल्ली की मंडी और अन्य मंडीयों में पान की नीलामी बन्द है. ऐसे में तुड़ाई नहीं होने के कारण पत्ते टूटकर गिर गए है, पान के व्यवसाय की वजह से किसानों और मज़दूरों पर आर्थिक संकट खड़ा हो गया है.
पान के व्यवसाय से जुड़े हुए कई पिंडियों से तंबोलि समाज के लोगों द्वारा पान की खेती की जाती है।
पनवाड़ी-पान खेती के लिए किसान अपनी ज़मीन के आकार और हैसियत के आधार पर लगाते हैं। कम से कम एक बीघा रकबे में पनवाड़ी लगाई जा सकती है. 1 बीघा पर 25 से 30 पारी तैयार की जा सकती है। इसमें बाँस बल्ली के उपयोग कर पारियाँ तैयार की जाती है. उसके बाद पान की बैलें रोपी जाती है। सुरक्षा के लिए पनवाड़ी को चारों तरफ़ ग्रीन नेट लगाई जाती है,सेट को घास या बरसाती बल्लियों का भी उपयोग किया जा सकता है। परकोटा और ग्रीन नेट के उपयोग से बारिश, धूप के साथ प्राकृतिक आपदाओं से बचाया जा सकता है। पान फ़सल में सप्ताह में 2 बार सिंचाई करनी पड़ती है।
लाखों रु का व्यापार प्रभावित-
भानपुरा और कुकडेश्वर में पान की प्रतिदिन मंडी लगतीं है। सालाना करोड़ों रु का कारोबार होता है. अन्य किसी भी जगह मंडी नहीं लगती है. दूरदराज़ से लोग मंडी में आते हैं. प्रतिदिन ख़रीदी और नीलामी होती है. यहाँ पर स्थानीय व्यापारी और अजेंट नई दिल्ली,मुम्बई और देश के अन्य हिस्सों से व्यापारीयों के लिए ख़रीदी होती है.
पान की टोकरियाँ बना कर ट्रेनो और बसों द्वारा देश में जगह-जगह भेजा जाता है.