जैसे कि आप सब लोग जानते हैं, कपास भारत में एक महत्वपूर्ण उपज है. इतना ही नहीं भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश भी है. हालांकि पहले स्थान पर चीन ने अभी भी अपना कब्जा जमाया हुआ है. प्राथमिक रेशा प्रदान करने वाली कपास भारत की सबसे महत्वपूर्ण नकदी फसल है. जिसका का देश की औघोगकी व कृषि अर्थव्यवस्था में भी प्रमुख स्थान है. विश्व में निरंतर बढ़ती खपत और विभिन्न उपयोग के कारण कपास को सफेद सोने के नाम से भी जाना जाता है.
आपको बता दें कि किसान भाइयों मई के माह में इसकी बुवाई कर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं और साथ ही कपास के लिए क्या-क्या चीजें उपयुक्त है इन सभी विषय पर चर्चा करने के लिए कृषि जागरण ने फेसबुक लाइव सत्र का आयोजन किया. तो आइये जानते हैं इसके बारे में विस्तार से..
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कृषि जागरण के इस लाइव वेबिनार में कपास की खेत पर पोषण प्रबंधन विषय पर चर्चा की गई. जिसमें ICL के Sr. Agronomist dr. Shailendra Singh और साथ ही ICL के Chief Agronomist Sanjay Naithani मुख्य वक्ता के रूप में मौजूद रहे.
इस वेबिनार में सबसे पहले ICL के Sr. Agronomist dr. Shailendra Singh ने कपास पोषण प्रबंधन पर जोर देते हुए कहा कि पूरे भारतवर्ष में इस समय कपास की खेत के लिए किस तरह से खाद का प्रबंधन किया जाए जिससे किसान कपास की खेती से अच्छी फसल लें पाए. इसके अलावा इन्होंने यह भी कहा कि भारत में तीन तरह की कपास की खेती की जाती है. जो कुछ इस प्रकार से है.
Long Staple Cotton – इसका भारत में 50 प्रतिशत तक उत्पादन किया जाता है. इसके रेशे की लंबाई 24 से 27 मिली मीटर की होती है. यह भारत में हाई क्वालिटी के लिए उपयोग में किया जाता है.
Medium Staple Cotton- इस कपास का भी भारत में 44 से 45 प्रतिशत तक उत्पादन किया जाता है. इसकी रेशम की लंबाई 20 से 24 मिली मीटर तक होती है.
Short Staple Cotton- इस कपास का भारत में बहुत ही कम मात्रा में उत्पादन किया जाता है. अगर हम इसके रेशम की लंबाई की बात करें, तो 20 मिली मीटर तक होती है.
आगे इन्होंने यह भी कहा कि हमें अपने कपास के उत्पादन (cotton production) को बढ़ाने की बहुत ही अधिक आवश्यकता है. इन्होंने किसान भाइयों को कपास के उत्पादन को बढ़ाने के लिए कई नई-नई तकनीक और उपाय के बारे में विस्तार से बताया है. जिससे किसान भाई इसका इस्तेमाल करके बाजार में अधिक लाभ कमा सके. इसके अलावा इन्होंने यह भी बताया कि हर एक कपास में बदलाव होता जा रहा है. सभी कपास वाले क्षेत्रों का PH मान बढ़ा हुआ है. इसके बचाव के लिए सामान्य और कम PH के लिए ICL उर्वरकों का प्रयोग खेतों में कर इस समस्याओं से बचा जा सकता है. साथ ही ICL के उर्वरकों का कपास की खेती में बहुत ही विशेष महत्व है. इसके अलावा इन्होंने यह भी कहा कि किसान भाइयों को कपास की खेती (cotton cultivation) से अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए फास्फोरस उर्वरक का उपयोग करना चाहिए.
फॉस्फोरस का मिट्टी में स्थिरीकरण
इसके बाद फॉस्फोरस का मिट्टी में स्थिरीकरण पर जोर देते हुए ICL के Chief Agronomist Sanjay Naithani ने कहा कि अगर किसान बुवाई के समय अपने खेत में DAP या किसी भी फास्फोरस को डालते हैं और आपकी जमीन का PH मान हाई है तो आपकी फास्फोरस का दो-तिहाई हिस्सा सीधे जमीन में चला जाता है. जो आपकी फसल को नहीं मिलता है. इसके अलावा इन्होंने यह भी बताया है कि जब फसल का पहला फूल आता है, तो उस समय फास्फोरस की मांग (Phosphorus demand) फसल में बहुत ही तेजी से बढ़ती है. इस स्थिति से बचने के लिए किसानों को अपनी फसल में ऐसी खाद (fertilizer for crops) का प्रयोग करना चाहिए जिससे 60 दिन के बाद भी फसल की अच्छी पैदावार (good crop yield) प्राप्त हो सके. अगर आप ICL के उर्वरकों का इस्तेमाल अपनी फसल में करते है, तो आपको अपनी फसल में अच्छी वृद्धि देखने को मिलेगी.
किसानों की फसल में वृद्धि करने के लिए इस लाइव सत्र में कई तरह की चर्चा की गई है, जो हमने आपको इस लेख के माध्यम से बताने की कोशिश की है, यदि आपको कपास की खेती (cotton cultivation) व अन्य फसल से दुगनी पैदावार प्राप्त करना चाहते हैं, तो आप हमारे फेसबुक पेज पर जाकर इस चर्चा को विस्तार से देख सकते हैं.