कोंडागांव 14 सितंबर, हिंदी दिवस के सुअवसर पर माँ दंतेश्वरी हर्बल इस्टेट के 'बइठका' हाल में छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य परिषद, हिंदी साहित्य भारती इकाई कोंडागांव, जनजातीय सरोकारों की राष्ट्रीय मासिक पत्रिका ककसाड़, सम्पदा समाजसेवी संस्थान एवं आदिवासी शोध व विकास संस्थान (T W R F) के संयुक्त तत्वाधान मे भव्य साहित्यिक आयोजन हुआ. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि लोकप्रिय राष्ट्रीय पत्रिका ककसाड़ के सम्पादक साहित्यकार डॉ राजाराम त्रिपाठी थे विशेष आमंत्रित अतिथि थे. छ.ग. हिंदी साहित्य परिषद कोंडागांव के अध्यक्ष हरेंद्र यादव जाने माने इतिहासकार व
साहित्यकार घनश्याम नाग राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक आर के जैन, वरिष्ठ साहित्यकार व चिंतक जमील खान कार्यक्रम का संचालन सुविख्यात शायर व मंच संचालक सैयद तौसीफ आलम ने अपने निराले अंदाज़ में किया. कार्यक्रम की शुरुआत आमंत्रित अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती के छायाचित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्ज्वलन से हुआ इस दौरान कवियित्री देशबती कौशिक ने अपनी सुमधुर आवाज मे सरस्वती वंदना प्रस्तुत किया.
कार्यक्रम के प्रथम भाग मे साहित्यकारों द्वारा "कहाँ तक पहुंची हिंदी! राजभाषा, राष्ट्रभाषा अथवा वैश्विक भाषा?" विषय पर विचार विमर्श किया गया. सर्वप्रथम मुख्य वक्ता डॉक्टर राजा राम त्रिपाठी ने हिंदी की वर्तमान दशा पर अपनी बात रखी उन्होंने कहा कि "हिंदी आज़ भी मंच की शेरनी है और दफ्तरों की बकरी! जो नेता हिंदी के नाम पर गरजते हैं, वही सचिवालय में अंग्रेजी की दुम हिलाते रहते हैं. हिंदी दिवस के बहाने सभी वही पुराने झुनझुने को बजाते रहते हैं.
हिंदी हमारी आत्मा हिंदी हमारी शान है पर हिंदी बोलने वालों को सदैव कही न कहीं शर्मिंदा होना पड़ता है. एयरपोर्ट पर अपने लोग रहने पर भी हिंदी बोलने वालों को हीन दृष्टि से देखते हैं. अपने ही देश में कहीं पर हिंदी बोलने पर अगर चांटे मारी जाएं और अंग्रेजी बोलने पर सम्मान मिले तो हिंदी कहां खड़ी है या समझना ज्यादा कठिन नहीं है.
आजादी के 78 साल बाद भी हम अपनी निज भाषा में उच्च तकनीकी शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं, यह विवशता सोचनीय है. साहित्यकार जमील खान ने हिंदी भाषा के इतिहास पर सबका ध्यान आकर्षित करते हुए कैसे वह राजभाषा के स्थान तक पहुंची यह बताया. उन्होंने कहा इतने सालों के बाद भी हिंदी राष्ट्र भाषा नहीं बन पाई यह दुःखद है.
वरिष्ठ साहित्यकार घनश्याम नाग ने कहा कि हमारे समय अंग्रेजी भगाओ आंदोलन चला था जिससे हिंदी को बहुत बल मिला था. आज हिंदी को सम्मान दिलाने के लिए निरंतर प्रयास की जरूरत है.
राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित आर केजैन ने भी हिंदी भाषा पर अपने विचार रखे. उन्होंने कहा न्याय भी अंग्रेजी में मिलता न्यायालय भी हिंदी भाषी गरीब अपने न्याय के निर्णय को नहीं समझ पायेगा.
द्वितीय भाग में काव्य गोष्ठी हुई जिसका शुभारंम हलबी के सशक्त हस्ताक्षर डॉक्टर विश्वनाथ देवांगन ने की. उन्होंने भ्र्ष्टाचार पर केंद्रित गद्य हस्ताक्षर का पठन किया और सबको प्रभावित किया. युवा कवियित्री देशबती कौशिक ने अपनी कविताओं से तालियां बटोरी. अंचल की चर्चित ग़ज़लकार बरखा भाटिया ने अपनी हिंदी की छोटी छोटी गज़लो से समा बांधा और सबको प्रभावित किया.
गुंडाधुर कॉलेज की नवोदित कवियित्री राखी पाठक ने अपनी कविताओं से सबका दिल जीत लिया. उनके साथ आई हर्षिता महावीर ने भी गाकर अपनी कविताओं का पाठन कर बहुत तालियां बटोरी व प्रसंशा पाई. पहली बार इस मंच पर आये उपेंद्र ठाकुर ने अपने विशिष्ट मे कविता सुनाकर सबको प्रभावित किया और तालियां बटोरी.
हास्य व्यंग्यकार उमेश मंडावी ने अंग्रेजी के बढ़ते चलन और विज्ञापन की ताकत पर करारा व्यंग्य सुनाकर सबको हंसाया. समिति के एक युवा कवि उमंग दुबे द्वारा प्रेषित कविता का पाठ सैयद तौसीफ़ आलम ने किया और प्रसंशा पाई. छ.ग. हिंदी साहित्य परिषद के अध्यक्ष हरेंद्र यादव ने गद्य यमराज से मुलाक़ात सुनाकर सबको बहुत हसाया. कार्यक्रम के संचालक सैयद तौसीफ़ आलम ने अपनी हिंदी की बेहतरीन शब्दों से सज़ी कविताओं का पाठ कर बहुत तालियां बटोरी अंत मे आभार प्रदर्शन सचिव उमेश मंडावी ने किया.
इस अवसर पर शंकर नाग, कृष्णा नेताम, ऋषिराज त्रिपाठी, गौतम बघेल तथा माधुरी देवांगन का सहयोग महत्वपूर्ण रहा.