भारत के कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने सिक्किम की जीआई-टैग वाली डैले मिर्च की पहली खेप को सोलोमन द्वीप तक सफलतापूर्वक निर्यात कर एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है. इस निर्यात से न केवल पूर्वोत्तर भारत के किसानों को लाभ मिलेगा, बल्कि यह भारत के जैविक उत्पादों की बढ़ती वैश्विक पहचान को भी दर्शाता है.
डैले मिर्च, जिसे फायर बॉल मिर्च या डैले खुरसानी भी कहा जाता है, अपने तीखेपन, चमकीले लाल रंग और पोषण गुणों के कारण प्रसिद्ध है. इसकी स्कोविल हीट यूनिट (एसएचयू) 100,000 से 350,000 तक होती है, जिससे यह दुनिया की सबसे तीखी मिर्चों में से एक बन जाती है.
डैले मिर्च का महत्व और निर्यात की प्रक्रिया
डैले मिर्च विटामिन ए, सी और ई से भरपूर होती है और इसमें पोटेशियम की प्रचुर मात्रा होती है. इसका उपयोग न केवल रसोई में मसाले के रूप में किया जाता है, बल्कि यह औषधीय गुणों के कारण भी लोकप्रिय है. दक्षिण सिक्किम के किसानों और किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) से करीब 15,000 किलोग्राम ताजी डैले मिर्च खरीदी गई, जिसमें टिंकिटम और तारकू क्षेत्र शामिल हैं. मेवेदिर कंपनी ने इस प्रक्रिया का नेतृत्व किया, जिससे किसानों को सामान्य दर से अधिक 250-300 रुपये प्रति किलोग्राम का प्रीमियम मूल्य प्राप्त हुआ.
इस खेप को एपीडा द्वारा वित्तपोषित सिक्किम के एकीकृत पैक हाउस में प्रोसेस किया गया. कुल खेप में से 9,000 किलोग्राम को निर्जलित किया गया, जबकि 6,000 किलोग्राम को आगे की प्रोसेसिंग और निर्यात के लिए संरक्षित किया गया. सुखाने की प्रक्रिया से 12.5 प्रतिशत रिकवरी दर प्राप्त हुई, जिसमें 1,600 किलोग्राम ताजी मिर्च को 200 किलोग्राम सूखी मिर्च में संसाधित किया गया.
पीएम मोदी की विशेष पहल और जीआई टैग की भूमिका
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वोत्तर क्षेत्र को भारत के स्वस्थ और टिकाऊ भविष्य की कुंजी बताया है. उन्होंने कहा था कि जीआई टैग न केवल उत्पाद की पहचान करता है, बल्कि किसानों और कारीगरों के लिए नए बाजार खोलकर आर्थिक समृद्धि भी सुनिश्चित करता है. 2020 में, उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) ने सिक्किम में उगाई जाने वाली इस अनूठी और तीखी डैले मिर्च को जीआई टैग प्रदान किया. इस टैगिंग से सिक्किम की इस खास मिर्च को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बेहतर पहचान और मूल्य मिला.
उत्तर पूर्वी क्षेत्रीय कृषि विपणन निगम (एनईआरएएमएसी) ने इस जीआई पंजीकरण की सुविधा प्रदान की, जिससे डैले मिर्च की वैश्विक पहचान को बढ़ावा मिला. इसके अलावा, भारत सरकार की कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की पहल जैविक मूल्य श्रृंखला विकास मिशन (एमओवीसीडी-एनईआर) के तहत पूर्वोत्तर क्षेत्र में जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे डैले मिर्च के उत्पादन और गुणवत्ता में सुधार हुआ है.
वैश्विक मसाला बाजार में सिक्किम की बढ़ती पहचान
सिक्किम अपनी आदर्श जलवायु और उपजाऊ मिट्टी के कारण जैविक खेती के लिए उपयुक्त राज्य माना जाता है. यह ऐतिहासिक निर्यात न केवल सिक्किम के किसानों के लिए एक बड़ा अवसर लेकर आया है, बल्कि इससे अंतरराष्ट्रीय मसाला बाजार में भारत की पकड़ भी मजबूत हुई है.
इस निर्यात को सफल बनाने में एपीडा ने सिक्किम के कृषि विभाग और गुवाहाटी स्थित क्षेत्रीय कार्यालय के साथ मिलकर काम किया. इससे स्थानीय किसानों और एफपीओ को वैश्विक बाजार तक पहुंचने का अवसर मिला.
सीधे निर्यात से भारत की जैविक आपूर्ति श्रृंखला को बढ़ावा
इस ऐतिहासिक निर्यात की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि सिक्किम से सोलोमन द्वीप को यह मिर्च सीधे निर्यात की गई, जो पहले अप्रत्यक्ष रूप से अन्य देशों के माध्यम से भेजी जाती थी. इससे यह साबित होता है कि भारत की जैविक आपूर्ति श्रृंखला अब अधिक मजबूत और विश्वसनीय हो गई है.
सोलोमन द्वीप में इस मिर्च की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वहां के खरीदारों ने 2023 में सिंगापुर में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय व्यापार कार्यक्रम में इस उत्पाद को देखा और फिर सीधे स्रोत से इसे खरीदने की मांग की. इससे सिक्किम के किसानों को न केवल बेहतर मूल्य मिला, बल्कि उनके उत्पाद की गुणवत्ता को भी वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त हुई.