Spice Trade: लाल सागर संकट दिन प्रति दिन भारत के लिए मुसीबत बनता जा रहा है. पहले चाय और अब मसाला कारोबार पर इसका असर दिखना शुरू हो गया है. निर्यातकों के अनुसार, माल ढुलाई का खर्चा बढ़ने के चलते कच्चे माल की उपलब्धता और अन्य निर्धारित प्रतिबद्धताएं प्रभावित हो रही हैं. कोच्चि स्थित एक मसाला कंपनी के प्रबंध निदेशक गुलशन जॉन के मुताबिक, मसालों जैसे उच्च मूल्य वाले कार्गो के लिए, व्यापार एक प्रतिबद्ध कार्यक्रम पर निर्भर है और चल रहे मुद्दों के कारण, हम ग्राहक को निर्धारित समय पर खेप पहुंचाने में असमर्थ हैं. ऐसे में आने वाले दिनों में लाल सागर संकट का असर मासाल कारोबार पर भी देखने को मिलेगा.
उन्होंने आगे कहा कि समय पर खेप पहुंचाने में असमर्थता के कारण उत्पादन, विनिर्माण या वितरण प्रक्रियाओं में देरी हो सकती है, जिससे भंडारण और विलंब शुल्क के रूप में व्यवसायों की लागत बढ़ सकती है. उन्होंने कहा, "इससे आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो सकती है, जिससे कमी और उत्पादन में बाधाएं आ सकती हैं. उन्होंने कहा कि पिछले साल देश का मसाला निर्यात 4 अरब डॉलर था.
माल ढुलाई का खर्चा बढ़ा
वहीं, ऑल इंडिया स्पाइसेस एक्सपोर्टर्स फोरम की कार्यकारी समिति के सदस्य जॉन ने कहा कि केप ऑफ गुड होप (कोचीन-यूरोप बेस पोर्ट) के माध्यम से माल पहुंचने में अधिक समय लग रहा है. रूट बदलने के चलते पोर्ट दरें और माल ढुलाई का खर्चा भी बढ़ गया है. कोचीन-यूरोप बेस पोर्ट का इस्तेमाल करने के चलते कंटेनर दरें 3,800 डॉलर प्रति 20 फीट कंटेनर और 4,500 डॉलर प्रति 40 फीट कंटेनर तक बढ़ गई हैं.
व्यापार में कंटेनरों की भारी कमी
शिपिंग में देरी का असर उन निर्यातकों पर ज्याद पड़ रहा है, जिन्होंने बैंकों से लोन ले रखा है. समय पर शिपमेंट न पहुंचे के चलते बैंकों को होने वाली पेमेंट में भी देरी हो रही है. इसके अलावा, व्यापार को कंटेनरों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है, जिससे माल ढुलाई शुल्क और बढ़ रहा है. मांग बढ़ने के कारण हवाई माल भाड़ा भी काफी बढ़ गया है. बता दें कि निर्यातकों का खरीदारों के साथ दीर्घकालिक अनुबंध होता है, प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए, आपूर्तिकर्ता माल ढुलाई शुल्क में वृद्धि को अवशोषित कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप नुकसान हो रहा है. मसालों की मांग बढ़ गई है और रूस-यूक्रेन युद्ध के बावजूद आपूर्तिकर्ताओं ने परिचालन बढ़ा दिया है. वहीं, स्वेज नहर संकट ने स्थिति को और खराब कर दिया है.
इलायची व्यापार इस घटनाक्रम से अप्रभावित है, क्योंकि यह मुख्य रूप से खाड़ी देशों पर केंद्रित है और पश्चिम एशिया में शिपमेंट अबाधित बना हुआ है. निर्यातकों को मार्च में खाड़ी देशों से आने वाले रमजान की मांग पर उम्मीद है. वंदानमेडु, इडुक्की में एक इलायची निर्यातक ने बताया कि भारतीय इलायची की ऊंची कीमतों के कारण ग्वाटेमाला की फसल ने पिछले साल खाड़ी बाजारों में प्रवेश किया था. हालांकि, इस वर्ष घरेलू कीमतें स्थिर चल रही हैं (औसतन $1,700 प्रति किलोग्राम) और ग्वाटेमाला उत्पाद की कीमत में $3 का अंतर है, जिससे अच्छे ऑर्डर मिलने की पूरी संभावना है.