यह क्या हो गया? और कैसे हो गया? और इससे भी ज्यादा जरूरी कि क्यों हो रहा है? यह कुछ सवाल है, जो बेशक तीखे हो, मगर हमें इनसे रूबरू होना ही होगा. आखिरकार, कल तक जिनके खिलाफ हम मोर्चा खोलते नहीं थका करते थे. पहले कभी जिनके खिलाफ हम हुंकार भरा करते थे, जिन्हें हम अपनी छाती चोड़ी करके दो-दो हाथ करने की चेतावनी दिया करते थे, आज भला हम उनसे ही मदद की इल्तिजा करनी पड़ रही है. आखिर, क्या है हमारे गुबरत भरे हालातों की वजह? यकीनन, यह प्रशन विचारणीय है.
चीन ने की मदद की पेशकश
जी हां... एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना से दुरूह हो चुके हालातों के बीच भारत ने अब चीन से ऑक्सीजन से जुड़े उपकरण व जीवन रक्षक दवाएं लेने का फैसला किया है. हालांकि, इससे पहले खुद सामने आकर चीन ने हमारी हालत पर तरस खाकर हमें मदद की पेशकश की थी. इतना ही नहीं, कोरोना से बदहाल हो चुकी हमारी स्थिति का अंदाजा आप महज इसी से लगा सकते हैं कि अब तो पाकिस्तान ने भी हमे मदद की पेशकश कर दी है. हालांकि, भारत ने अभी तक पाकिस्तान से मदद लेनी है कि नहीं, इसे लेकर कोई फैसला नहीं लिया है, मगर पाकिस्तान द्वारा दिए गए इस पेशकश के बाद विश्व बिरादरी में कई तरह के सवाल पैदा हो रहे हैं.
मनमोहन सिंह ने बदल दी थी रवायत
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भारत ने विदेश से सहायता लेना उस समय बंद कर दिया था, जब 2004 में सुनामी आई थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने खुद विदेशों से सहायता प्राप्त करने की रवायत को ध्वस्त कर दिया था. उस दौरान खुद उन्होंने बयान जारी कर कहा था कि अब हम आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अग्रसर हो चुके हैं. अब हम अपने ऊपर आई हर विपदा का सामना करने के लिए तैयार हो चुके हैं.
वहीं, आज से तकरीबन 15 साल बाद जब देश की राजनीति में बड़ा बदलाव हुआ और हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को आत्मनिर्भर बनाने की बात करते हैं, मगर अब विपदा की इस घड़ी में हम चीन के आगे ऑक्सीजन की मदद के लिए हाथ फैला रहे हैं, तो यह किस तरह का आत्मनिर्भर भारत है?
वो तो गनीमत है कि अब तक पाकिस्तान ने हमारी मदद नहीं की है अन्यथा हमारे साख की पूरे विश्व समुदाय में धज्जियां उड़ जाएंगी. हालांकि, उसने अपनी तरफ इस मुश्किल की घड़ी में हमें मदद की पेशकश कर विश्व समुदाय में जिस तरह की साख अर्जित करने की कोशिश की है, उसका तो अब क्या ही कहना है. हम ऐसा नहीं कहते हैं कि किसी से मदद मांगना अनुचित है, लेकिन जब कोरोना के मामले कम होने पर यह सियासी नुमाइंदे श्रेय लेने की होड़ में लग जाते हैं, तो भला आलोचनाओं से कैसे बच पाएंगे साहब!
चीन ने किया कोरोना को पाल पोस कर बड़ा
आपको याद दिला दें कि यह वही चीन है, जिसकी सरपरस्ती में कोरोना इतना बलवंत हुआ है कि आज पूरी दुनिया तबाह हो चुकी है. हमें जिनके खिलाफ मोर्चा खोलना चाहिए, आज बात उनसे मदद लेने की बात हो रही है. हालांकि, विगत वर्ष भारत व अमेरिका समेत कई देशों ने चीन के खिलाफ कड़े कदम उठाने की कोशिश की थी. उन दिनों अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का बयान काफी सारगर्भित साबित हुए थे. इतना ही नहीं, उन्होंने तो डब्लूएचओ के खिलाफ तक मोर्चा खोलने की बात कह डाली थी, लेकिन आज तबाही के इस मंजर के बीच हालात कुछ और ही बन चुके हैं. आज हर कोई खामोश हो चुका है और भारत चीन से मदद लेने में मशगूल दिख रहा है.
अब आप ही बताइए, यूं तो हम 15 साल पुराने उसी पड़ाव पर आकर खड़े हो गए हैं, जहां से हमने अपनी यात्रा का आगाज किया था. कभी भूतपूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने भारत को इतना सबल बनाया था कि उन्होंने विदेश से मदद लेने की पेशकश ठुकरा दी थी, लेकिन आज हम फिर से उसी दौर में वापस लौटने पर आमादा हो चुके हैं.
इससे पहले भी विदेशों से मदद ले चुका है भारत
इससे पहले भारत कई विपदाओं के दौरान विदेशों से मदद मांग चुका है. मसलन, इससे पहले, भारत ने उत्तरकाशी भूकंप (1991), लातूर भूकंप (1993), गुजरात भूकंप (2001), बंगाल चक्रवात (2002) और बिहार बाढ़ (2004) के समय विदेशी सरकारों से सहायता स्वीकार की थी. 16 साल बाद विदेशी सहायता हासिल करने के बारे में ये निर्णय नई दिल्ली की रणनीति में बदलाव है.