ठंड आते ही खेतों में हरियाली छाने लगती है. हर तरफ अलग-अलग फसलें और सब्जियां हमें दिखने लगती है. रबी सीजन में अधिकतर सब्जियां और साग किसानों के द्वारा लगाया जाता है.इसकी वजह इनकी बढ़ती मांग है.
आपको बता दें कृषि जागरण जब ग्राउंड रिपोर्टिंग करने खेतों में पहुंची तो अधिकतर खेतों में सरसों, मूली अलग-अलग साग लगा हुआ था.
सरसों की बात करें तो इसकी मांग ठंड में काफी बढ़ जाती है. वहीं सरसों रबी सीजन में उगाई जाने वाली फसलों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है. यह कम खर्च में अधिक लाभ देती है, लेकिन इसके लिए फसल में कीटों की पहचान और उनकी रोकथाम जरूरी है. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, अगेती सरसों की खेती (Mustard Farming) में चित्तकबरा कीड़ा (धोलिया) अधिक हानि पहुंचाता है. जबकि पछेती में चेपा का अधिक प्रकोप रहता है.
इन बातों का रखना होगा ध्यान
ऐसे में किसानों को इन फसलों के लिए तापक्रम व मौसम की अनुकूल परिस्थिति को ध्यान में रखकर बिजाई करनी चाहिए. किसान सरसों के कीटों को अच्छी तरह पहचान कर उनका आसानी से नियंत्रण कर सकते हैं. सरसों वर्गीय फसलों के तहत तोरिया, राया, तारामीरा, भूरी व पीली सरसों आती है. चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में आनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के अध्यक्ष डॉ. एसके पाहुजा के अनुसार अगेती व पछेती सरसों की फसल में कई प्रकार के कीटों का प्रकोप हो सकता है, जिनकी किसान समय से पहचान कर रोकथाम कर अधिक पैदावार हासिल कर सकते हैं.
छिड़काव कब करें?
कृषि वैज्ञानिक डॉ. राम अवतार व डॉ. दलीप कुमार ने बताया कि सभी कीटनाशकों का छिड़काव शाम को 3 बजे के बाद करें. ताकि मधुमक्खियों को कोई नुकसान न हो, जो उपज बढ़ाने में सहायक होती हैं.
चितकबरा कीट या धोलिया
यह सरसों का मुख्य कीट है. जिसके शिशु व प्रौढ़ पौधों से रस चूसकर नुकसान पहुंचाते हैं. इसके शिशु व प्रौढ़ अंडाकार होते हैं जिनके उदर पर काले भूरे धब्बे होते हैं. यह पौधों के विभिन्न भागों से रस चूसकर नुकसान पहुंचाते हैं. जिसके कारण पौधे की पत्तियों पर सफेद धब्बे बन जाते हैं. इसलिए इस कीट को धोलिया भी कहते हैं.
इसके अधिक आक्रमण से पौधे सूख जाते हैं. कीट का प्रकोप फसल की प्रारंभिक अवस्था व कटाई के समय अधिक होता है. यह अधिक सर्दी में वयस्क अवस्था में निष्क्रिय रहता है. फसल उगने के समय इस कीट का आक्रमण होने पर 200 मि.ली. तथा फसल कटाई के समय होने पर 400 मि.ली. मैलाथियान 50 ई.सी. का 200 व 400 लीटर पानी प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें.
सरसों की आरा मक्खी
यह हाइमेनोप्टरा वर्ग का एकमात्र हानिकारक कीट है जो फसल को नुकसान पहुंचाता है. इस कीट की गहरे रंग की सूंडी पत्तियों में छेद करके तथा नई प्ररोह को काटकर हानि पहुंचाती है. इसकी सूण्डी दिन के समय छिपी रहती है. छेड़ने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे मरी पड़ी हो. इसके उदर के ऊपरी भाग पर पांच काले रंग की पट्टियां होती हैं.
सरसों का माहू या चेपा
इस कीट के शिशु व प्रौढ़ समूह में रहकर पौधों पर आक्रमण करते हैं, जिससे फलियां व तना चिपचपा हो जाता है. फलियों में दाने नहीं बन पाते हैं और दाने बनते भी हैं तो कमज़ोर बनते हैं. यह कीट हल्के हरे रंग का होता है. जो कभी पंख रहित व कभी पंख सहित होता है. जो फरवरी-मार्च माह में उड़ते भी दिखते हैं. इस कीट की संख्या दिसम्बर से मार्च माह तक प्रचुर मात्रा में होती है. कीट बिना निषेचन के ही सीधे शिशु पैदा करते हैं.
रोकथाम के लिए इन चीज़ों का करें इस्तेमाल
इनकी रोकथाम के लिए किसान सरसों फसल की बिजाई अधिक देरी से न करें. कीटों का आक्रमण होने पर कीटग्रस्त टहनियों को तोड़कर नष्ट कर दें. यदि कीटों का स्तर 10 प्रतिशत पुष्पित पौधों पर 9-19 कीट या औसतन 13 कीट प्रति पौधा है तो 250 से 400 मि.ली. (मिथाइल डेमेटान मेटासिस्टॉक्स) 25 ई.सी. या डाइमेथोऐट (रोगोर) 30 ई.सी. को 250 से 400 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ स्प्रे करें.
आवश्यकता पड़ने पर दूसरा छिड़काव 15 दिन बाद करें
सुरंग बनाने वाली सुंडी: इस कीट की सुंडियां पत्तियों में सुरंग बनाकर हरे पदार्थ को खाती हैं. पत्ता सूर्य की तरफ करने पर कीट साफ दिखाई देता है. पौधे कमजोर हो जाते हैं तथा उत्पादन पर भी असर पड़ता है. माहू की रोकथाम के लिए बताए गए कीटनाशक से इसे आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है.
बालों वाली सुंडियां: इन सूंडियों का आक्रमण अक्तूबर से नवंबर में अधिक होता है. आरंभ में यह सूंडियां सामूहिक रूप में रहकर फसल की पत्तियों को खा जाती हैं. बड़े होने पर अकेले रहकर सारे खेत में फैल जाती हैं. ऐसी पत्तियां जिन पर सुंडियां समूह में हों उन्हें तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए.