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Updated on: 4 May, 2025 8:32 PM IST
भारत सरकार के कृषि राज्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने 4 मई 2025 को पूसा परिसर, नई दिल्ली स्थित NASC कॉम्प्लेक्स में भारत की पहली जीनोम-संपादित धान किस्मों के शुभारंभ के साथ एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की. इस अवसर पर भारत सरकार के कृषि राज्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वैज्ञानिक समुदाय को इस उल्लेखनीय उपलब्धि के लिए बधाई दी और कृषि नवाचार को आगे बढ़ाने तथा प्रौद्योगिकियों को खेतों तक पहुँचाने के लिए सरकार की पूर्ण सहायता का आश्वासन दिया. उन्होंने भविष्य की खाद्य सुरक्षा और जलवायु लचीलापन सुनिश्चित करने के लिए ऐसे वैज्ञानिक नवाचारों के महत्व को रेखांकित किया.

यह मील का पत्थर टिकाऊ कृषि और किसान कल्याण के लिए उन्नत जैव प्रौद्योगिकी में भारत की प्रगति को दर्शाता है. दो नवविकसित किस्में — DRR धान 100 (कमला) और पूसा डीएसटी राइस 1 — जलवायु लचीलापन और पोषण सुरक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं.

पूसा डीएसटी राइस 1

आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इस किस्म को लोकप्रिय महीन दाने वाली धान 'MTU1010' से उन्नत किया गया है. CRISPR-Cas तकनीक का उपयोग करते हुए इसमें DST (सूखा एवं लवणीयता सहनशीलता) जीन को संपादित किया गया, जिससे यह सूखा और लवणीयता के प्रति अधिक सहनशील बन गई. राष्ट्रीय फील्ड ट्रायल्स में इसने मूल दाने की गुणवत्ता बनाए रखते हुए तनाव की स्थितियों में 10–30% अधिक उपज दी. यह किस्म खरीफ और रबी दोनों मौसमों के लिए उपयुक्त है और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल, ओडिशा, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में क्षारीय तथा लवणीयता वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है.

डीआरआर धन 100 (कमला)

आईसीएआर–भारतीय धान अनुसंधान संस्थान (IIRR), हैदराबाद द्वारा विकसित यह किस्म 'सांबा महसूरी' का जीनोम-संपादित संस्करण है. इसमें CRISPR-Cas तकनीक के माध्यम से CKX2 (Cytokinin Oxidase 2) जीन को संपादित किया गया, जिससे बालियों में दानों की संख्या बढ़ गई. फील्ड ट्रायल्स में 'कमला' ने 'सांबा महसूरी' की तुलना में 19% अधिक उपज दी, औसतन 53.7 क्विंटल/हेक्टेयर और अधिकतम 88.96 क्विंटल/हेक्टेयर तक उपज दर्ज की गई. यह किस्म सूखा-सहनशील है, कम नाइट्रोजन खाद की आवश्यकता होती है, केवल 130 दिनों में पक जाती है (20 दिन पहले), जिससे पानी की बचत, मीथेन उत्सर्जन में कमी और अगली फसल के लिए खेत जल्दी खाली होने के फायदे मिलते हैं.

इन किस्मों में कोई विदेशी डीएनए नहीं है, जिससे ये पारंपरिक रूप से विकसित किस्मों के समान हैं. इन्हें पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत नियम 7–11 की सख्त जैव-सुरक्षा आवश्यकताओं से छूट प्राप्त है, और भारत की सरलीकृत जीनोम-संपादित फसलों की नियामकीय प्रक्रिया के तहत जैव-सुरक्षा मंजूरी भी मिल चुकी है. इन किस्मों को 50 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में अपनाने से 45 लाख टन अतिरिक्त धान उत्पादन संभव है और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 20% की कमी लाई जा सकती है, जिससे जलवायु-अनुकूल खेती को बल मिलेगा.

भारत में पहली बार जीनोम-संपादित धान किस्मों का शुभारंभ, कृषि नवाचार में ऐतिहासिक उपलब्धि

ICAR के सचिव (DARE) और महानिदेशक डॉ. एम.एल. जाट  ने वैज्ञानिकों की प्रशंसा करते हुए कहा, “आज का दिन स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा.” उन्होंने कृषि अनुसंधान को आपूर्ति-आधारित से मांग-आधारित बनाने, कौशल विकास को बढ़ावा देने और संपूर्ण कृषि-खाद्य प्रणाली दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया. डॉ. डी.के. यादव, उप महानिदेशक (फसल विज्ञान), ICAR ने जीनोम संपादन प्रौद्योगिकी और ICAR की 2018 से अब तक की प्रगति की संक्षिप्त जानकारी दी.

इस कार्यक्रम में कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे, जिनमें भागीरथ चौधरी, केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री; देवेश चतुर्वेदी, सचिव, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग; डॉ. राजबीर सिंह, उप महानिदेशक (कृषि प्रसार), ICAR; डॉ. सी. एच. श्रीनिवास राव, निदेशक एवं कुलपति, ICAR-IARI; डॉ. आर.एम. सुंदरम, निदेशक, ICAR-IIRR, हैदराबाद; तथा डॉ. विश्वनाथन चिन्नुस्वामी, संयुक्त निदेशक (अनुसंधान), ICAR-IARI शामिल रहे.

English Summary: ICAR launches India's first genome-edited rice varieties
Published on: 04 May 2025, 08:36 PM IST

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