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Updated on: 23 April, 2024 11:26 AM IST
रबी फसलों की कटाई के बाद अनाज भंडारण

भारतीय कृषि में फसल कटाई को महत्वपूर्ण प्रक्रिया माना जाता है. यह किसानों की आय का मुख्य स्रोत भी है. फसल की कटाई करने के लिए विशेष कृषि उपकरणों का उपयोग किया जाता है. फसल की कटाई करने के बाद होने वाले नुकसान को कम करना खाद्य सुरक्षा की दिशा में एक अहम कदम होता है. जलवायु, फसल और निश्चित रूप से बुनियादी ढांचे और भंडारण के तरीकों के अनुसार काफी भिन्न होता है. भारत में फसल कटाई के बाद खाद्यान्न की हानि प्रति वर्ष लगभग 20 मिलियन टन से ज्यादा होती है, जो कुल उत्पादित खाद्यान्न का लगभग 10 प्रतिशत होती है. अनाज भंडारण मुख्य रूप से घुन, भृंग, पतंगे और कृतंकों के कारण होने वाले नुकसान को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह अनुमान लगाया गया है की देश में उत्पादित खाद्यान्न का 55-60% घरेलु स्तर पर स्वदेशी भंडारण संरचनाओं में संगृहीत किया जाता है.

अनाज भंडारण का महत्व

  • नीचे कुछ बिंदु दिए गए हैं जो इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि भोजन को संग्रहित करने की आवश्यकता क्यों है:
  • अनाज भंडारण न करने से उत्पन्न होने वाला परिणामों की तुलना में खाद्य भंडारण लागत प्रभावी है.
  • भारत की बढ़ती आबादी को भोजन की आपूर्ति करने के लिए F.C.I. अनाज खरीदकर गोदामों में भंडारित करती है. यह सुनिश्चित करता है कि भोजन लंबे समय तक ताज़ा रहे.
  • उचित भंडारण यह सुनिश्चित करता है कि उपज पूरे वर्ष समान रूप से वितरित हो.
  • यह अकाल जैसी आपातकालीन स्थितियों में सहायक है.

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अनाज के नुकसान को प्रभावित करने वाले कारक

  • यहां तक कि सबसे बड़े वातन उपकरण और निगरानी प्रबंधन भी नमी का स्तर बहुत अधिक होने पर अनाज को सड़ने से नहीं रोक पाएंगे; यह बस अपरिहार्य को स्थगित कर देगा. फफूंद और अन्य सूक्ष्मजीवों को अस्तित्व और प्रसार के लिए नमी की आवश्यकता होती है.
  • सूर्य, भंडार से निकलने वाले विकिरण का ठंडा प्रभाव, बाहरी हवा का तापमान, भंडार में मौजूद अनाज और मौजूद किसी भी कीड़े की श्वसन से उत्पन्न गर्मी, ये सभी भंडार के भीतर के तापमान को प्रभावित करते हैं. कुछ अपवादों को छोड़कर, सूक्ष्मजीव 10 से 60 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में पनपते हैं.
  • अनाज की क्षति या हानि व्यापक रूप से भिन्न होती है और फसल की विविधता, कीड़ों, जलवायु, कटाई, प्रसंस्करण, भंडारण, हैंडलिंग और विपणन प्रणालियों से प्रभावित होती है.
  • सूक्ष्मजीव (कवक, बैक्टीरिया, और यीस्ट/फफूंद), कीड़े और कण, कृंतक, पक्षी और चयापचय प्रक्रियाएं अनाज के क्षरण के प्रमुख कारण हैं.
  • अवैज्ञानिक भंडारण, कृंतकों, कीड़ों, सूक्ष्मजीवों आदि के कारण फसल के बाद होने वाली हानि कुल खाद्यान्न का लगभग 10% है. भारत में वार्षिक भंडारण हानि 14 मिलियन टन तक पहुंचने का अनुमान है. 7,000 करोड़, जिसमें कीड़ों का योगदान लगभग 1,300 करोड़ रुपये हैं.
  • भंडारण कीटों से होने वाली सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक हानि आवश्यक रूप से उपभोग के कारण नहीं, बल्कि संदूषण के कारण होती है.
  • लगभग 600 कीट प्रजातियों को भंडारित अनाज उत्पादों से जोड़ा गया है. भण्डारित माल में लगभग एक सैकड़ा कीट-कीट आर्थिक हानि पहुंचाते हैं.
  • कटाई के बाद होने वाले नुकसान में भंडारण कीड़ों का योगदान 2.0 से 4.2 प्रतिशत है, इसके बाद कृंतकों का 2.50 प्रतिशत, पक्षियों का 0.85 प्रतिशत और नमी का 0.68 प्रतिशत है.

अनाज भंडारण विधि

पहले किसान अनाज का भंडारण बखरी कोठार, मढई में करते थें, लेकिन आज कल भंडारण की आधुनिक तकनीकियों का विकास हो गया है. अनाज का भंडारण अन्दर, बाहर एवं जमीन के नीचे किसी एक जगह होता है. घर के अन्दर किये जाने वाले भंडारण में कनाजा, कोठी, सन्दुक, और मिट्टी से बने कुंडे आदि के आकार से बने ढांचों का प्रयोग करते हैं. घर के बाहर भंडारण करने के लिए बांस तथा मिटटी से बने ढांचें का प्रयोग करते हैं. कचेरी अनाज भंडारण कि एक पुरानी विधि है. हजेऊ जमीन के नीचे अनाज भंडारण कि विधि को कहते हैं. लेकिन बहुत लम्बे समय तक के लिए भंडारण करने के लिए यह विधियां उपयुक्त नहीं हैं.

पारंपरिक विधियों में आने वाली समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए आधुनिक अनाज भंडारण विधि का प्रयोग करना उचित होगा. छोटे स्तर के भंडारण के लिए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित डिब्बे के आकार कि संरचना, पूसा में विकसित और हापुर टेक्का प्रकार कि संरचना का प्रयोग करते हैं. बड़े स्तर पर अनाज भंडारण के लिए ढक्कन और साईलोस प्रकार के ढांचे का प्रयोग करते हैं. साईलोस धातु या सीमेंट के बने होते हैं.

भंडारित अनाज में कीट, चूहों और नमी से बचाव करना चाहिए. सामान्यतया खपरा बेटल, रेड फ्लोर बेटल, लेसर ग्रेन बोरर मुख्य कीट हैं जो अनाज को नुकसान पहुचाते हैं. अनाज भंडारण में ध्यान देने योग्य मुख्य सावधानियां इस प्रकार हैं-

  • अनाज भंडारण से पहले अनाज को सूर्य कि रोशनी में पूरी तरह सूखा लेना चाहिए. अनाज में नमी 10 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.
  • भंडारण से पहले अनाज साफ कर लेना चाहिए. टूटे अनाज में फंफूद आदि से संक्रमण की संभावना अधिक होती है. अतः टूटे दानों को अलग कर लेना चाहिए.
  • अनाज भरने के लिए नए बोरो का इस्तेमाल करना चाहिए. प्रयोग किये गए बोरो में फिर से अनाज भरने से पहले बोरो को 1 प्रतिशत मलाथियन के घोल में डुबो लेना चाहिए.
  • अनाज को ढोने से पहले बैलगाड़ी, ट्रेक्टर, ट्रक या कोई भी गाडी साफ कर लेनी चाहिए.
  • भंडारण गृह को अच्छे से मलाथिओन का घोल 3 ली. प्रति 100 वर्ग मी. से धुल लेना चाहिए.
  • बोरियों को दीवाल से सटा कर न रखें तथा बोरियों से बोरियों के बीच भी कुछ दूरी रखें.
  • अनाज को कीट से बचने के लिए नीम का पाउडर का प्रयोग करें.
  • चूहों को मारने के लिए जिंक फास्फाइड और वारफारिन का प्रयोग करें.
  • यदि अनाज में कीट लग गएँ हो तो एल्युमीनियम फोस्फाइड तथा एथिलीन डाईब्रोमाइड (इ.डी.बी.) एम्पुले का प्रयोग करना चाहिए.

 

लेखक
डा. हिमांशु त्रिपाठी और डा. रवि धनखड़
असिस्टेंट प्रोफेसर, आर.एस.एम. कॉलेज, धामपुर, बिजनौर (यू.पी.)

English Summary: how to store grains after harvesting rabi crops
Published on: 23 April 2024, 11:39 AM IST

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