आज विश्व गौरेया दिवस है. वैसे आखरी बार आपने इस पंक्षी को कब देखा था. क्या आपने कभी सोचा है कि प्राय हर जगह दिखने वाली गौरेया अब कहां खो गई है. दरअसल आने वाले समय में बहुत से पशु-पक्षी हमेशा के लिए विलुप्त हो जाएंगे. बढ़ते हुए प्रदूषण के कारण इनका बचना लगभग असंभव है. इस श्रृंखला में सबसे पहला नाम गौरैया का है. इस बारे में पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी द्वारा किया गया एक शोध डरावना है.
अपने एक रिसर्च में यूनिवर्सिटी ने यह दावा किया है कि प्रदूषण के कारण प्रकृति के दूसरे प्राणियों के जीवन पर संकट मंडराने लगा है. गौरैया तो लगभग विलुप्ति की कगार पर है.
क्या कहता है शोध
शोध के मुताबिक पक्षियों की श्रृंखला में सबसे अधिक नुकसान घरेलू गौरैया को हुआ है. इनके शरीर पर किया गया रिसर्च बताता है कि इनमें लीड और बोरॉन की मात्रा 'विषाक्त' सीमा से बुहुत ऊपर जा चुकी है. इसके अलावा अन्य पंक्षियों में भी आर्सेनिक, निकल, क्रोमियम, कैडमियम और जस्ता जैसे धातुओं की मात्रा सामान्य से बहुत अधिक थी.
भोजन के रूप में भारी धातुओं के सेवन से इनके अंगों में विकार आ रहा है और प्रजनन क्षमता भी प्रभावित हो रही है. प्रदूषण के कारण इनके अंडे खोखले और कमजोर होते जा रहे हैं, जिस कारण बच्चों का जन्म नहीं हो पा रहा.
बता दें कि किसान समाज के लिए पंक्षियों का हमेशा से महत्व रहा है. पंक्षी कीट-पतंगों को खाकर फसलों की उससे रक्षा करते हैं. इसके अलावा वातावरण में संतुलन बनाने में भी इनका अहम योगदान है. मोर, तीतर, बटेर और कौआ को तो किसानों का पहला मित्र कहा गया है. इसके अलावा बाज, काली चिड़िया और गिद्ध भी इनके हितैषी ही हैं. लेकिन दुर्भाग्य है कि किसानों के ये मित्र प्रतिदिन विलुप्त हो रहे हैं और कोई कुछ भी नहीं कर पा रहा.
क्या हो अगर पंक्षी न हो
विशेषज्ञों के मुताबिक अगर धरती से पंक्षियों की आबादी पूरी तरह से खत्म हो जाए तो कीड़ों की वंश वृद्धि निर्बाध रूप से बढ़ती चली जाएगी. ऐसी स्थिति में कुछ भी भोजन योग्य नहीं बच पाएगा. खेती की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती है.