सहजन एक बहु उपयोगी पेड़ है. सहजन को मोरिंगा के नाम से भी जाना जाता है. इसका वानस्पतिक नाम मोरिंगा ओलिफेरा है. सहजन को अंग्रेजी में मोरिंगा या ड्रमस्टिक हिंदी में सहजना, सुजना, सेंजन और मुनगा आदि नामों से जाना जाता है. सहजन एक बहुउद्देशीय सब्जी फसल है जिसकी खेती भारत के सभी प्रान्तों में पारम्परिक परन्तु असंगठित तरीके से की जाती है. सहजन में पोषक तत्वों की प्रचुरता एवं औषधीय गुणों की महत्ता को ध्यान में रखते हुए यदि प्रत्येक परिवार कम से कम एक पेड़ सहजन लगा लें तो 5-6 सदस्यों वाले परिवार के लगभग दो महीने सब्जी की उपलब्धता के साथ-साथ पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा में पूर्ति हो सकेगी.
सहजन का पौधा कैसा होता है?
सामान्यत सहजन का पौधा 4.6 मीटर ऊंचा होता है तथा 90-100 दिनों में इसमें फूल आता है. जरूरत के अनुसार विभिन्न अवस्थाओं में फल की तुड़ाई करते रहते हैं. पौधे लगाने के लगभग 160.170 दिनों में फल तैयार हो जाता है. साल में एक पौधा से 65-170 दोनों में फल तैयार हो जाता है. सहजन पौधा करीब 10 मीटर उंचाई तक का हो सकता है. लेकिन लोग इसे डेढ़.दो मीटर की ऊंचाई से प्रतिवर्ष काट देते हैं ताकि इसके फल.फूल.पत्तियों तक हाथ सरलता से पहुंच सके. इसके कच्ची हरी फलियां सर्वाधिक उपयोग में लाई जातीं हैं. सहजन के करीब सभी अंग, पत्ती, फूल, फल, बीज, डाली, छाल जड़ें, बीज से प्राप्त तेल आदि सब खाये जाते हैं.
सहजन में पाए जाने वाले पोषक तत्व
सहजन में कई प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं. इसमें मुख्य रूप से कार्बोहाइड्रट, वसा, प्रोटीन, पानी, विटामिन, कैल्शियम, लोहतत्व, मैगनीशियम मैगनीज, फॉस्फोरस, पोटेशियम, सोडियम आदि पोषक तत्व पाए जाते हैं. सहजन में 300 से अधिक रोगों के रोकथाम के गुण हैं. इसमें 90 तरह के मल्टीविटामिन्स, 45 तरह के एंटी आक्सीडेंट गुण, 35 तरह के दर्द निवारक गुण और 17 तरह के एमिनो एसिड मिलते हैं.
सहजन के उपयोग
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सहजन के लगभग सभी अंग; पत्ती, फूल, फल, बीज, डाली, छाल, जड़ें, बीज से प्राप्त तेल आदि सब खाये जाते हैं. इसकी पत्तियों और फली की सब्जी बनती है.
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कई जगहों पर इसके फूलों को पकाकर खाया जाता है और इनका स्वाद खुम्भी; मशरूम जैसा बताया जाता है.
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अनेक देशों में इसकी छाल, रस, पत्तियों, बीजों, तेल और फूलों से पारंपरिक दवाएं बनाई जाती हैं.
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दक्षिण भारतीय व्यंजनों में इसका प्रयोग बहुत किया जाता है. सहजन औषधीय गुणों से भरपूर होता है.
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इसके बीजों से तेल निकाला जाता है जिसका उपयोग औषधियों में भी किया जाता है.
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सहजन उपयोग जल को स्वच्छ करने के लिए तथा हाथ की सफाई के लिए भी उपयोग किया जा सकता है.
सहजन की खेती की मुख्य विशेषताएं एवं लाभ
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सहजन यानि ड्रमस्टिक के पौधों की मुख्य विशेषता यह है कि इसके बीज की एक बार बुवाई कर देने के बाद यह चार साल तक चलता है यानि चार साल तक इसमें कोई बुवाई करने की आवश्यकता नहीं होती है. यह हर साल अपने आप पनपता जाता है.
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न ही इसमें अधिक जमीन की आवश्यकता होती हैं, न ही ज्यादा पानी की और न ही इसका ज्यादा रखरखाव करना पड़ता है यानि कुल मिलाकर कर इसकी खेती करना काफी आसान एवं लाभकारी है.
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सहजन की खेती करने के लिए आपको अलग से जमीन लेने की आवश्यकता भी नहीं होती हैं. आप अन्य फसलों के साथ भी इसका उत्पादन कर सकते हैं.
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सहजन की खेती के लिए विशेष ध्यान यह रखना पड़ता है कि इसकी खेती गर्म स्थान पर की जाये क्योकि ठंडी जगह पर यह अच्छे से नहीं पनपते हैं.
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सहजन के फूल भी खेलते हैं जोकि 25 से 30 डिग्री सैल्सियस से ज्यादा के तापमान में ही खिलते है. इसके फूल का इस्तेमाल लोग सब्जी बनाने में करते हैं.
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सहजन की फसल की बुवाई साल में 2 बार ही की जाती है. इसके लिए मिट्टी सूखी या चिकनी बालूदार होनी चाहिये, क्योकि इसमें इसकी खेती अच्छे से होती है.
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सहजन के पेड़ की उम्र 10 साल होती हैं जिसमें वह अच्छी तरह से फलता फूलता है.
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सहजन की मुख्य किस्में कोयंबटूर 2, रोहित 1, पी. के. एम. 1, एवं पी. के. एम. 2 आदि हैं.
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सहजन के फूल के साथ - साथ इस फल की भी सब्जी बनाई जाती है, यहाँ तक कि लोग इसकी पत्तियों की सलाद भी बनाकर खाते हैं, अतः सहजन के फूल, फल एवं पत्तियों सभी में औषधीय गुण होने की वजह से लोग इसे खाना काफी पसंद करते हैं, और यह स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा भी होता है.
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आयुर्वेद चिकित्सकों के अनुसार यह एक ऐसा पौधा हैं जोकि 300 से भी अधिक बीमारियों से बचाव करता है. यह आपकी इम्युनिटी को भी काफी मजबूत बनाता है. सहजन के बीज से निकाले जाने वाले तेल का उपयोग कई तरह की दवाइयां बनाने में किया जाता है.
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सहजन के पौधों में पाए जाने वाले पोषक तत्वों की बात करें तो इसमें 90 विटामिन, 46 एंटी ओक्सिडेंट एवं 18 प्रकार के एमिनो एसिड निहित रहते हैं.
लेखक: डॉ. राकेश कुमार, रामसागर एवं डॉ. डी.के. राणा
कृषि विज्ञान केंद्र उजवा नई दिल्ली