भोपाल, जिसे देश की हरित राजधानी कहा जाता है, अब स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक नई मिसाल पेश कर रहा है. भोपाल नगर निगम (BMC) ने कचरे को संसाधन में बदलने की दिशा में दो नई परियोजनाएं शुरू की हैं, जो न सिर्फ हरित ईंधन और निर्माण सामग्री का उत्पादन कर रही हैं, बल्कि स्वच्छ ऊर्जा, सतत विकास और रोजगार सृजन में भी योगदान दे रही हैं. पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल पर आधारित ये योजनाएं शहर को “मॉडल ग्रीन सिटी” की ओर ले जा रही हैं और अन्य शहरों के लिए भी प्रेरणा बन रही हैं.
बता दें कि इन परियोजनाएं के जरिए अब कचरा केवल समस्या नहीं, बल्कि एक बहुमूल्य संसाधन बन रहा है.आइए इसके बारे में यहां विस्तार से जानते हैं.
1. गीले-सूखे कचरे से बनेगा हरित ईंधन
BMC ने “स्वाहा रिसोर्स मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड” के साथ मिलकर एक "ग्रीन वेस्ट टू बायो-ब्रिकेट्स" संयंत्र स्थापित किया है. यह संयंत्र रोज़ाना 20 टन बागवानी कचरे — जैसे सूखी पत्तियां, टहनियां और घास — को संसाधित कर पर्यावरण-अनुकूल बायो-ब्रिकेट्स बनाएगा. ये ब्रिकेट्स कोयला और लकड़ी का हरित विकल्प बनेंगे, जिनका उपयोग बड़े उद्योगों और कमर्शियल किचन में किया जा सकेगा.
इससे न केवल खुले में कचरा जलाने की समस्या खत्म होगी, बल्कि स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन को भी बढ़ावा मिलेगा.
2. थर्मोकोल से तैयार हो रहे निर्माण ब्लॉक्स
एक और अनोखी पहल के तहत BMC ने थर्मोकोल क्रशिंग और रीसाइक्लिंग प्लांट की शुरुआत की है. यहां घरों, दुकानों और उद्योगों से जमा थर्मोकोल को संपीड़ित कर मजबूत ब्लॉक्स बनाए जा रहे हैं, जिनका उपयोग निर्माण कार्य, इन्सुलेशन और अन्य औद्योगिक जरूरतों में होगा.
3. बिट्टन मार्केट में जैविक कचरे से निकल रही है बायोगैस और बिजली
बिट्टन मार्केट में BMC ने एक विकेंद्रीकृत बायोडीग्रेडेबल कचरा प्रबंधन संयंत्र भी शुरू किया है, जिसकी क्षमता प्रतिदिन 5 टन कचरे की है. इस प्लांट से हर दिन 300–350 घन मीटर बायोगैस और 200–300 किलोवाट बिजली का उत्पादन हो रहा है. खास बात यह है कि इस बायोगैस का उपयोग क्षेत्र की हाई-मास्ट लाइट्स जलाने में किया जा रहा है, जिससे स्थानीय स्तर पर ऊर्जा आत्मनिर्भरता भी बढ़ रही है.
हरियाली, स्वच्छता और रोज़गार – तीनों को साथ ले चलता भोपाल
इन पहलों के ज़रिए भोपाल न सिर्फ कचरे से ऊर्जा और निर्माण सामग्री बना रहा है, बल्कि युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर भी पैदा कर रहा है. अब भोपाल अपने अपशिष्ट को संसाधन में बदलकर एक “मॉडल ग्रीन सिटी” बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है और बाकी शहरों के लिए प्रेरणा का केंद्र भी है.