आपको तो पता ही होगा कि किसानों को उनकी फसलों का वाजिब दाम मिल सके इसके लिए सरकार सभी फसलों पर तो नहीं, लेकिन कुछ निर्धारित की गई फसलों को ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ पर जरूर खरीदती है, ताकि किसान भाइयों को आर्थिक नुकसान का सामना न करना पड़े, चूंकि कई बार ऐसा होता कि कुछ कारणों से किसान भाइयों को उनकी फसलों का वाजिब दाम नहीं मिल पाता है, इसलिए सरकार किसानों की फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदती है, ताकि अन्नदाताओं को आर्थिक नुकसान से बचाया जा सके.
मौजूदा समय में भी सरकार कई राज्यों के किसान के फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद रही है, जिसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू और कश्मीर शामिल है. इन राज्यों के किसानों से सरकार अब तक 382.35 लाख मिट्रिक टन गेहूं की खरीद कर चुकी है, जबकि पिछले वर्ष किसान भाइयों से सरकार ने 324.81 लाख टन गेहूं खरीदी गई थी. अब तक लगभग 39.55 किसानों की फसलों को एमएसपी के तहत खरीदा जा चुकी है. किसान भाइयों को 75,514.61 करोड़ रूपए का भुगतान किया जा चुका है. सरकार की इस पहल से किसान भाई काफी हद तक लाभान्वित हो रहे हैं.
वहीं, किसान भाइयों से धान का क्रय भी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर की जा रही है. इसके अलावा, प्रदेशों से मिले प्रस्ताव के आधार पर तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों से खरीफ विपणन सत्र 2020-21 एवं रबी विपणन सत्र 2021 के लिए मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत 107.37 लाख मीट्रिक टन दलहन और तिलहन की खरीद को भी मंजूरी प्रदान की गई थी. वहीं, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल राज्यों से 1.74 लाख मीट्रिक टन खोपरा (बारहमासी फसल) को क्रय करने के लिए भी स्वीकृति दी गई है.
इन फसलों की भी हो रही एमएसपी पर खरीद
सरकार किसानों से मूंग, उड़द, तुअर, चना, मसूर, मूंगफली की फली, सरसों के बीज और सोयाबीन शामिल है. अब तक सरकार द्वारा अपनी नोडल एजेंसियों से कुल 6,76,103.57 मीट्रिक टन फसलों की खऱीद की जा चुकी है, जिससे किसान भाइयों को बड़े स्तर पर फायदा हो रहा है और उनकी फसलों का वाजिब दाम भी मिल रहा है.
गौरतलब है कि कृषि कानून के खिलाफ आंदोलन के दौरान भी यह लगातार कहा जा रहा था कि अगर यह कानून लागू हुआ, तो न्यूनतम समर्थन मूल्य को वापस ले लिया जाएगा, जिससे किसान भाइयों को बड़ा नुकसान होगा, मगर सरकार की तरफ से बार-बार यही कहा जाता रहा है कि ऐसा कुछ भी नहीं होगा, मगर आंदोलनकारी किसानों को सरकार की इस बात पर तनिक भी एतबार नहीं है, लिहाजा उनका सरकार से महज यही कहना है कि यह कानून वापस ले लिया जाए. मगर सरकार कानून वापस लेने को तैयार नहीं हुई है.
सरकार का यही कहना था कि अगर किसान भाई इसमें कुछ संशोधन चाहते हैं, तो हम इसके लिए तैयार हैं, मगर इस कानून को कतई वापस नहीं लिया जाएगा. हालांकि, कई बार इसे लेकर बैठक भी हुई है, मगर सभी बैठकें बेनतीजा ही रही.