वाणिज्य मंत्रालय ने खेतों में जैविक खेती के प्रमाणन से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए नए कदम उठाने शुरू कर दिए हैं. इसमें जैविक खेती प्रमाणन संगठनों का ऑडिट करना भी शामिल है. चेन्नई स्थित सेवा संगठन श्री श्री स्वामी विवेकानंद ट्रस्ट द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय में दायर एक शिकायत के जवाब में जैविक खेती के प्रमाणन गतिविधियों में कई विसंगतियां पाई गईं हैं. एसएसवीटी ने 9 फरवरी को पीएमओ को लिखा कि ग्राहकों और छोटे किसानों की सुरक्षा के लिए जैविक कपास प्रमाणीकरण लागू किया जाए.
मंत्रालय ने कहा, गैर-अनुपालन की गंभीरता के आधार पर, राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड (एनएबी) ने गैर-अनुपालन ऑपरेटरों और प्रमाणन निकायों के खिलाफ एनपीओपी (जैविक उत्पादन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम) सूची के अनुसार कार्रवाई की है. कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) भी भविष्य में इसी तरह की चीजों को होने से रोकने के तरीकों पर काम कर रहा है.
व्यापार सूत्रों के अनुसार, दो दिन पहले वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने लोकसभा को बताया कि मंत्रालय को चल रहे जैविक प्रमाणन घोटाले पर 'कोई विशेष जानकारी' नहीं मिली थी, जिसमें गैर-जैविक उपज को जैविक के रूप में झूठा प्रमाणित किया गया था.
श्री श्री स्वामी विवेकानंद ट्रस्ट ने अपने अभ्यावेदन में चिंता व्यक्त की कि जैविक कपास प्रमाणन में त्रुटियों के कारण दुनिया भर में 'ऑर्गेनिक इंडिया' ट्रेडमार्क का नुकसान हुआ है. ट्रस्ट ने कहा कि मई 2013 और जनवरी 2021 के बीच जैविक कपास परियोजनाओं के प्रमाणन में कई बार हाथ बदलने के बावजूद परियोजनाओं की संख्या वही रही है. प्रमाणीकरण बाद में चार एजेंसियों को वितरित किया गया था. इनमें से दो प्रमाणन एजेंसियों को पिछले अगस्त में निलंबित कर दिया गया था. ये इस बात के उदाहरण हैं कि कैसे 'बड़े पैमाने पर जैविक कपास प्रमाणन परियोजनाएँ' एक 'अजीबोगरीब घटना' रही हैं.
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श्री श्री स्वामी विवेकानंद ट्रस्ट ने अपने अभ्यावेदन में चिंता व्यक्त की कि जैविक कपास प्रमाणन में त्रुटियों के कारण दुनिया भर में 'ऑर्गेनिक इंडिया' ट्रेडमार्क का नुकसान हुआ है. ट्रस्ट ने कहा कि मई 2013 और जनवरी 2021 के बीच जैविक कपास परियोजनाओं के प्रमाणन में कई बार हाथ बदलने के बावजूद परियोजनाओं की संख्या वही रही है. प्रमाणीकरण बाद में चार एजेंसियों को वितरित किया गया था. इनमें से दो प्रमाणन एजेंसियों को पिछले अगस्त में निलंबित कर दिया गया था. ये इस बात के उदाहरण हैं कि कैसे 'बड़े पैमाने पर जैविक कपास प्रमाणन परियोजनाएँ' एक 'अजीबोगरीब घटना' रही हैं.