आईसीएआर के अनुसंधान केंद्र डीआरएमआर ने उपज के मूल्यांकन के लिए छः स्थानों पर सरसों के संकर जीएम धारा एमएच-11 की रोपाई की है. जीएम फसलों का मूल्यांकन तीन मौसमों में तीन स्तरों पर किया जाता है. पहला स्तर इंस्टेंट हाइब्रिड ट्रायल (आईएचटी) है, जबकि दूसरा और तीसरा एडवांस ट्रायल-1 (एआईएचटी-1) है. यदि उपज का स्तर प्रदर्शन आईएचटी स्तर पर विफल रहता है और निर्धारित मानकों को पूरा नहीं करता तो अगले स्तर के परीक्षण नही किए जाएंगे.
18 अक्टूबर को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की नियामक संस्था आनुवांशिकी इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) ने तीन साल के लिए डीएमएच-11 बीज के पर्यावरण रिलीज की सिफारिश की थी.
धारा एमएच-11 सरसों एक संकर किस्म है. इसे सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किया गया है. बायोटेक नियामक जीईएसी के डीएमएच-11 की पर्यावरण रिलीज को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर चुनौती दी गई है.
रेपसीड-सरसों अनुसंधान निदेशालय (DRMR) के पीके राय ने न्यूज एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए कहा है कि हमें 22 अक्टूबर को बीज मिले और 3 नवंबर को शीर्ष अदालत में मामला सूचीबद्ध किया गया है. इस अवधि के बीच फील्ड ट्रायल में बीज पहले ही लगाए जा चुके थे. डीआरएमआर को दो किलोग्राम डीएमएच-11 बीज मिले थे. अनुसंधान निकाय ने आठ फील्ड परीक्षण भूखंडों में प्रत्येक में 50 ग्राम बीज के उपयोग की योजना बनाई थी, लेकिन यह केवल छह स्थानों पर ही लगा सका है, अन्य दो स्थानों पर रोपाई नहीं की गई.
उन्होंने कहा कि फील्ड ट्रायल के अलावा, दो भूखंडों में 600 ग्राम बीज पहले ही बोए जा चुके थे. आईसीएआर द्वारा पर्यावरण रिलीज के बाद बीज रोपण किया गया था. सुप्रीम कोर्ट 3 नवंबर को जारी आदेश के बाद जीएम कोई बुवाई नहीं की गई है. एक वैज्ञानिक और रेपसीड और सरसों अनुसंधान निदेशालय के रूप में, मैं जीएम फसलों को नई तकनीक के विकास के रूप में देखता हूं. इसकी सहायता से हम उच्च उपज वाली किस्मों को विकसित करने के लिए कर सकते हैं.
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राय ने आगे कहा कि देश में लगभग 8-9 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर सरसों की खेती की जाती है. उन्होंने कहा कि प्रोद्यौगिकी उच्च उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने और घरेलू सरसों और तेल उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ खाद्य तेलों की आयात पर देश की निर्भरता को कम करेगी.