केंद्र सरकार देश के किसानों के उत्थान के लिए उनके हित में एक बड़ा फैसला लेने जा रही है. दरअसल केंद्र सरकार किसानों को उच्च गुणवत्ता के तिलहन की खेती करने के लिए इंसेंटिव देने की योजना (scheme) बना रही है जिससे किसान चावल और गेहूं की खेती के अलावा दूसरी फसलों की ओर रुख़ कर सकेंगे. इसके जरिए भारत को कुकिंग ऑयल (cooking oil) का आयात घटाने में मदद मिलेगी जोकि मौजूदा समय में सालाना 70 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है.
आपको बता दें कि कमीशन फॉर एग्रीकल्चरल कॉस्ट्स एंड प्राइसेज़ (Commission for Agricultural Costs and Prices) ने ज्यादा तेल निकालने वाली किस्में अपनाने वाले किसानों के लिए अधिक कीमत तय करने का सुझाव दिया है. सीएसीपी (CACP) फसलों के लिए निर्धारित कीमत तय करता है.
मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, सीएसीपी के चेयरमैन विजय पॉल शर्मा (Vijay Paul Sharma) ने कहा कि सरसों और अलसी के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को बीज में 35 फीसदी के बेसिक ऑयल कंटेट से जोड़ देना चाहिए. ऑयल कंटेंट 35 फीसदी से अधिक रहने पर उसमें हर चौथाई फीसदी बढ़ोतरी पर किसानों को प्रति क्विंटल 20.27 रुपये अधिक कीमत मिलनी चाहिए.
मार्केटिंग सीज़न 2020-21 के लिए सरसों और अलसी के लिए न्यूतम समर्थन मूल्य 35 फीसदी कंटेंट वाले तिलहन के लिए है. अगर ऑयल कंटेट 40 फीसदी के आस-पास रहता है जो राजस्थान में उपजाई जाने वाली अधिकतर किस्मों में मिलता है, तो उनके लिए किसानों को एमएसपी से अधिक प्रति क्विंटल 405.40 रुपये का मुआवज़ा मिल सकता है.
अभी न्यूनतम समर्थन मूल्य 4830.40 रुपये प्रति क्विंटल है. हर साल देश में सरसों और अलसी का लगभग 90 लाख टन उत्पादन होता है. यह देश में होने वाले कुल तिलहन उत्पादन का 28 फीसदी है.
बता दें कि 40-45 फीसदी सरसों में लगभग 40-42 फीसदी ऑयल कंटेंट होता है. अगर केंद्र सरकार Commission for Agricultural Costs and Prices के प्रस्तावों को मंजूरी देती है तो सरसों की खेती किसानों के लिए लाभकारी खेती साबित होगी. सीएसीपी के चेयरमैन ने कहा कि एमएसपी (MSP) को ऑयल कंटेंट से जोड़ने का सिस्टम दूसरे तिलहनों में भी चरणबद्ध तरीके से अपनाया जा सकता है जिससे देश में खाद्य तेलों का उत्पादन बढ़ सकता है.