भारत सरकार जहां देश के किसान भाइयों के साथ खड़े होने का वादा करती है वहीं यह खबर सामने आ रही है कि केन्द्र सरकार ने 18 अक्टूबर 2022 को रबी फसलों (गेहूं ,चना, जौ , सरसो आदि) के समर्थन मूल्य में लगभग 2-7 प्रतिशत बढ़ोतरी का ऐलान किया है.
देखा जाए तो यह बढ़ोत्तरी कृषि लागत वार्षिक महंगाई दर (8.6%) से भी बेहद कम है. बता दें कि इसके चलते किसानों को पिछले वर्ष के मुकाबले प्रति क्विंटल गेहूं में 63 रुपये, चने में 345 रुपये, सरसों में 34 रुपये, जौ में 40 रुपये और कुसुम मे 259 रुपये का आर्थिक नुकसान होगा.
गेहूं की खरीद पर 3000 करोड़ से ज्यादा नुकसान
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि केन्द्र सरकार द्वारा इन घोषित समर्थन मूल्यों पर केवल गेहूं की सरकारी खरीद (50 करोड़ क्विंटल) पर ही किसानों को 3000 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान होगा. इसी तरह पिछले कई वर्षों से जहां केन्द्र सरकार कृषि लागत महंगाई दर से कम पर समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी घोषित करके किसानों का लगातार शोषण करती आ रही है वहीं दूसरी ओर जानबूझ कर सरकार ने MSP कानून नहीं बनाकर इन समर्थन मुल्यों को बिचौलियों और आढ़तियों पर लागू नहीं किया, जो फसल उपज समर्थन मूल्यों से कम पर खरीदकर किसान, सरकार और उपभोक्ता सभी का शोषण करते है.
केंद्र सरकार की राष्ट्रीय किसान आयोग रिपोर्ट 2006 के मुताबिक फसल समर्थन मूल्य सी-2 + 50 प्रतिशत तक लाभ पर घोषित होना चाहिए. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. बल्कि सरकार तानाशाही तरीके से समर्थन मूल्य A2+FL पर घोषित करके किसानों का खुला शोषण करती रही है, जिससे ये किसानों के लिए भारी अर्थिक नुकसान और कृषि घाटे का सौदा बनता जा रहा है. केन्द्र द्वारा घोषित समर्थन मूल्य के मुकाबले सी-2+50 प्रतिशत लाभ के आधार पर गेहूं का समर्थन मूल्य प्रति क्विंटल 2363 रुपये, चने का 6558 रुपये, सरसों का 5610 रुपये, जौ का 2231 रुपये, मसुर का 6912 रुपये और कुसुम का 7703 रुपये बनता है.
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इसलिए देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए केन्द्र सरकार को राष्ट्रिय हित में MSP कानून बनाकर फसल समर्थन मूल्य राष्ट्रिय किसान आयोग की रिपोर्ट के आधार पर सी-2 + 50 प्रतिशत लाभ और वार्षिक कृषि लागत महंगाई दर के आधार पर घोषित करनी चाहिए, जिससे किसानों की आय बढेगी और कृषि क्षेत्र मे नयी तकनीक और रोजगार बढेंगे.
डॉ. वीरेन्द्र सिंह लाठर, पूर्व प्रधान वैज्ञानिक, ICAR- IARI, नई दिल्ली