जब भी हम किसानों के बारे में बात करते या सोचते हैं, तो हमें सिर्फ उनकी समस्या और आर्थिक परेशानियां ही दिखाई देती है. लेकिन सच सिर्फ इतना ही नहीं है. ऐसे ही हमारे देश को कृषि प्रधान देश का दर्जा नहीं मिला है.आज भी हमारे देश में बहुत सारे किसान ऐसे हैं जो अच्छी तरह खेती कर अच्छा मुनाफ़ा कमा रहे हैं.
किसानों के मनोबल को बढ़ाने और सफल किसानों को सबके सामने लाने के लिए कृषि जागरण की टीम और हिंदी कंटेंट के सह-संपादक विवेक कुमार उत्तर प्रदेश के सहारनपुर गावं पहुंचे. जहां उनकी मुलाकात सुधीर राठौर से हुई. सुधीर कुमार की बात करें तो यह इंटीग्रेटेड फार्मिंग जैसे तरीकों को अपनाकर आज के समय में एक सफल किसान के रूप में जाने जा रहे हैं.
आपको बता दें कि सुधीर राठौर अपने बगीचे में अन्य फसलों के साथ सीडलेस नींबू और गन्ने की सफल खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. उनके बगीचे का मुआयना कर रहे विवेक कुमार की नजर सीडलेस नींबू की तरफ पड़ी. जिसके बाद उन्होंने इस पर दर्शकों का ध्यान खीचते हुए सभी को इस बारे में बताया.
नींबू के बीज से काफी लोग परेशान रहते हैं. खाने में अगर नींबू के रस के साथ उसका बीज भी आ जाए तो खाने का स्वाद फ़ीका पड़ जाता है. ऐसे में सुधीर कुमार की सीडलेस नींबू को लोग काफी पसंद कर रहे हैं. उन्होंने बताया की यह नींबू वो दिल्ली के पूसा केंद्र से लेकर आए थे. जिसके बाद उन्होंने इससे अनेकों पौधे तैयार किये और लोगों में बांटा भी. सीडलेस नींबू की मांग उनकी विशेषताओं की वजह से बहुत ज्यादा है. एक तो नींबू में बीज नहीं होता, दूसरा इस नींबू में रस की मात्रा भी औरों के मुकाबले काफी अधिक होती है. इस वजह से लोगों के बीच इसकी लोकप्रियता काफी ज्यादा है. वहीं दूसरी तरफ सुधीर राठौर ने अपने बगीचे में गन्ने की भी खेती की है.
आपको जानकर यह हैरानी होगा कि गन्ने की लंबाई 10 से 12 फुट तक की है. और इसका औसत वजन 1.5 किलो तक का है. उन्होंने कृषि जागरण से बातचीत के दौरान बताया कि इसकी बुवाई उन्होंने 1 बार की थी और 4 साल से गन्ने की फसल काट रहे हैं. सिर्फ इतना ही नहीं गन्ने की फसल के साथ उन्होंने उसमें सरसों भी लगाया था इसकी उपज भी काफी अच्छी है.
गन्ने की उपज के बारे में बात करें तो 1200 से 1400 क्विंटल पर हेक्टेयर की उपज होती है. इस तरह की खेती से न सिर्फ उन्हें अच्छा मुनाफा हो रहा है, बल्कि दूसरे किसानों को इस तरह की खेती करने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं.
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आमतौर पर जब किसानों की स्थिति पर चर्चा होती है, तो हम उनकी आर्थिक स्थिति को लेकर सरकार से सवाल और जवाब खोजने में लग जाते हैं. हालांकि, यह बहुत हद तक सच भी है कि हमारे देश में आर्थिक रूप से कमजोर किसानों की संख्या अधिक है, लेकिन उसी देश में कुछ प्रतिशत किसान ऐसे भी हैं, जिनके पास जमीन की किल्लत होने के बावजूद वह एक सफल किसान के रूप सबके सामने उभर कर आए हैं.
आधुनिकीकरण और नई-नई तकनीकों की मदद से सुधीर राठौर जैसे किसान समाज के लिए एक बेहतर उदाहरण पेश कर रहे हैं. कृषि जागरण ऐसे किसानों की सराहना करता है और अन्य किसानों से भी यह निवेदन करता है कि इस तरह की खेती को अपनाकर खुद को आगे बढ़ाए. कृषि जागरण के इस नए अभियान में हम उन सभी किसानों तक पहुँचने की कोशिश कर रहे हैं जो अलग तरीके से खेती कर समाज में अपनी अलग पहचान बनाई है.
अगर आपके पास या आपके आस-पास कुछ ऐसे किसान हैं, तो आप कृषि जागरण के फेसबुक पेज पर जानकारी साझा कर सकते हैं. हमारी टीम आप तक पहुंच कर आपकी काबिलियत को सबके सामने लाने का पूरा प्रयास करेगी.