हिंदी का एक बहुत ही प्रसिद्ध मुहावरा है कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है. इंसान को जब किसी चीज की जरूरत होती है, तो उसको बनाने या पाने के लिए वो कई तरह के प्रयास करता है. उन्ही प्रयासों को करते समय कई बार न सिर्फ वो अपना बल्कि पूरे समाज का भला कर जाता है. आज हम भी आपको एक इंसान के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी आवश्यकता ने कृषि जगत में बड़ा आविष्कार कर दिखाया.
प्लास्टिक के बोतल से बना दिया जलचक्र
दरअसल आज हम आपको ओडिशा के मयूरभंज जिले के किसान महुर टिपिरिया के बारे में बताने जा रहे हैं. महुर ने किसानों की सिंचाई से संबंधित एक बहुत बड़ी परेशानी को हल कर दिया है. दरअसल उन्होंने बांस की पाइप और प्लास्टिक की बोतलों से जलचक्र बनाया है, जिसे सिंचाई के काम में लाया जा सकता है. पानी को एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचाने में ये सबसे आसान, सुलभ और सस्ता तरीका माना जा रहा है.
इस कारण बनाया जलचक्र
मयूरभंज द्वारा बनाया गया जल चक्र स्वदेशी तकनीक से बनाया गया है, जो पानी और हवा के बहने से घुमता है. सिंचाई मशीनों की तुलना में इसमें लागत नाम मात्र आई है. इस चक्र को बनाने का ख्याल किस तरह आया, इसके जवाब मयूर कहते हैं कि वो एक गरीब किसान हैं, खेतों में सिंचाई का पानी नहीं पहुंच पाता है, जिसके लिए कई बार प्रशासन को अवगत कराया जा चुका है. लेकिन बार-बार की शिकायत के बाद भी अधिकारियों ने कभी उनकी अर्जी पर ध्यान नहीं दिया, जिसके बाद वो वो खुद ही इस जलचक्र को बनाने में लग गए.
जलचक्र के पिछे का विज्ञान
इस जलचक्र का सबसे बड़ा फायदा तो यही है कि ये पूरी तरह से इको फ्रेंडली है. इसे चलाने में किसी भी तरह के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन नहीं होता है. न तो इसके लिए बिजली की जरूरत है और न ही प्रदूषणकारी जनरेटर की. यह मशीन विज्ञान के गुरुत्वाकर्षण ट्रिक और एटमॉस्फियर साइंस पर काम करता है. इस मशीन के बन जाने से गांव के अन्य किसान भी इसकी मांग कर रहे हैं.