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Updated on: 23 November, 2019 2:39 PM IST

मऊ जनपद के किसानों को सूक्ष्मजीव आधारित जैविक कृषि के प्रसार और उससे जुड़ी बारीकियों के विषय में व्यापक जागरूकता लाने और खेती, मिट्टी और पर्यावरण के हित में इसे आत्मसात करने हेतु प्रेरित करने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार की पहल पर एक अनोखी, विलक्षण और प्रभावशाली परियोजना जनपद के राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो में प्रारंभ की गयी है. इस परियोजना के मूल में 'स्वस्थ मिट्टी, स्वस्थ फसलें, स्वस्थ मानव' जैसी अवधारणा है जो लम्बे समय तक प्रभावी और टिकाऊ कृषि तंत्र पर आधारित है. किसान के खेतों में मिट्टी के जैविक घटकों का संपोषण एक महती आवश्यकता है जिससे मिट्टी पोषक तत्वों की सतत चक्रीय प्रणाली का पालन करते हुए फसली पौधों को सम्यक मात्रा में न्यूट्रीएंट और मिनरल तत्वों को उपलब्ध करने में सक्षम हो. ऐसी व्यवस्था से उपज बढाने के साथ ही साथ मिट्टी का स्वास्थ्य भी सुरक्षित रखने में किसानों को सुविधा होगी.

वर्तमान में दोहन प्रणाली पर आधारित कृषि के माध्यम से किसान अपने खेतों की मिट्टी से अधिक से अधिक पोषक तत्व खींच ले रहे हैं और पौधों की तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए बदले में रासायनिक विकल्पों पर जोर दे रहे हैं जो मिट्टी की पारिस्थितिकी में असंतुलन पैदा कर रहा है. ऐसे में किसानों को इस प्रकार की खेती से उपजी समस्याओं के विषय प्रभावी ढंग से बताने, उनसे विकल्पों के बारे में परस्पर संवाद बढाने, उनमें कृषिगत वैज्ञानिक अभिरुचियों को जागृत करने और 'इंटरैक्टिव लर्निंग' के माध्यम से किसानों को मिट्टी और पर्यावरण के स्वास्थ्य-रक्षण की विधियों, तकनीकियों और प्रौद्योगिकियों के विषय में प्रशिक्षित करने से धीरे धीरे इन समस्याओं के निदान में सहायता मिल सकती है.

एनबीएआईएम के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. डी. पी. सिंह ने इन्ही समस्याओं को रेखांकित करते हुए एक परियोजना की रूप-रेखा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के जैव-प्रौद्योगिकी विभाग को प्रस्तुत किया था जिसे विभाग ने कार्यक्रमों के संचालन हेतु सहर्ष स्वीकृति प्रदान कर दी है. परियोजना प्रभारी डॉ. सिंह के अनुसार वर्तमान में खेतों की मिट्टी से जुड़ी किसानों की कई ऐसी समस्याओं हैं जिनके सम्यक निदान से न केवल खेती की लागत में कमी लाई जा सकती है बल्कि मिट्टी के उपजाऊपन में भी उत्तरोत्तर सुधार लाया जा सकता है. इस प्रकार के निदानों में मिट्टी की जैविक क्षमता में वृद्धि करना, खेतों में सूक्ष्मजीवों से संपोषित मिट्टी को विकसित करना, कार्बनिक यौगिकों में बढ़ोत्तरी करना और रासायनिक उर्वरकों की उपयोगिता को कमतर करना शामिल हैं. इस परियोजना का मुख्य यही है कि मऊ जनपद और आसपास के किसानों को 'परस्पर संवादात्मक और प्रायोगिक सीख' के माध्यम से मिट्टी के स्वास्थ्य और पर्यावरण के हितों के संरक्षण पर विस्तार से प्रशिक्षित करना है जिससे वे जलवायु परिवर्तन के दौर की चुनौतियों में भी सफलता से मिट्टी और फसलों को स्वस्थ रख सकें. इस परियोजना के सह-अन्वेषकों में एन बी ए आई एम की प्रधान वैज्ञानिक डॉ. रेनू के अतिरिक्त वैज्ञानिक डॉ. संजय गोस्वामी भी शामिल हैं. इसके आलावा परियोजना के अन्य भागीदारों में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के प्रोफेसर डॉ. बिरिंची कुमार सर्मा और कृषि विज्ञान केंद्र, आजमगढ़ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रूद्र प्रताप सिंह शामिल हैं जिन्हें अपने अपने जिलों में कार्यक्रमों को संचालित करने की जिम्मेदारी मिली है.

क्या है इस परियोजना का मूल उद्देश्य 

ब्यूरो के निदेशक डॉ. अनिल कुमार सक्सेना ने बताया कि डी बी टी किसान परियोजना में किसानों के हित में मुख्य रूप से चार कार्य किये जाने हैं. पहला - किसानों में कृषि अवशेषों के रूप में खेतों से बहार जाने वाले पोषक तत्वों को मिट्टी में ही वापस लौटने हेतु जाग्रति पैदा करना जिसे ट्रेनिंग और प्रदर्शन के माध्यम से किया जा रहा है. इसके लिए गाँव में ही कैम्प लगाये जे रहे हैं. दूसरा - किसानों के बीच परस्पर संवाद बढाने और उन्हें प्रायोगिक वैज्ञानिक गतिविधियों से परिचित कराने के लिए जनपद और आस पास के बीस किसानों को ब्यूरो की प्रयोगशालाओं में लाया जा रहा है और उन्हें सूक्ष्मजीव आधारित त्वरित कम्पोस्टिंग की प्रक्रियाओं पर 5 दिनों का गहन प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है. तीसरा- पहले वर्ष में जनपद के 50 किसानों  के खेतों पर त्वरित कम्पोस्टिंग हेतु इकाइयों को लगवाया जा रहा है जिससे किसान अच्छी से अच्छी कम्पोस्ट बनाकर और सूक्ष्मजीव फोर्टीफीकेसन के द्वारा उसका गुणवत्ता-संवर्धन करके उसे व्यवसायिक रूप दे सके और अपनी आय में वृद्धि कर सके.

चौथा- जनपद और आस पास के 10 वैज्ञानिकों को भी ब्यूरो की प्रयोगशालाओं में 5 दिनों का गहन प्रशिक्षण दिया जाना है जिससे वे भी सूक्ष्मजीवों द्वारा संचालित होने वाली पूरी कृषिगत प्रक्रिया से अवगत हो सकें और फिर अपनी जानकारी को किसानों को बाँट सकें. कुल मिलाकर दो वर्ष की अवधि में जनपद और आस-पास के 4000 से अधिक किसानों में प्रभावशाली तरीके से सूक्ष्मजीव आधारित पद्धतियों को फैलाना है जिससे कृषि अवशेष प्रबंधन हो सके, फसल उत्पादन की लागत में कमी लाई जा सके, रासायनिक उर्वरकों और दवाओं के प्रयोग को कमतर किया जा सके, उच्च पोषण गुणवत्ता की फसलों से किसानों की आय में वृद्धि की जा सके और सूक्ष्मजीव फोर्टीफाईड कम्पोस्ट के विपणन से युवा किसानों में उद्यमिता विकसित की जा सके.

English Summary: Experimental interactive farmer training on agricultural applications of microorganisms
Published on: 23 November 2019, 03:29 PM IST

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