भारत में ई-कॉमर्स या ई ट्रेड बहुत पहले से सुनाई देने लगे थे, लेकिन नोटबंदी के बाद इसमें अचानक रफ्तार आई है. बड़े-बड़े शहरों से लेकर गांव, देहात तक में लोग गूगल पे और पेटीएम जैसे नामों पर चर्चा करने लगे हैं. समय की मांग को देखते हुए छोटे-छोटे व्यापारियों और कामगरों ने भी खुद को अपडेट कर लिया है.
लॉकडाउन में कमाई का विकल्प बना ई-कॉमर्स
कोरोना काल में लॉकडाउन के कारण व्यापार जगत को भारी नुकसान हो रहा है और ये समस्या सिर्फ भारत की नहीं, बल्कि विश्व की है. लेकिन इस संकट की घड़ी में ई-कॉमर्स के साथ जुड़ने वालो लोगों का व्यापार सुरक्षित रहा, उनके घर में चूल्हा जलता रहा. समय की मांग पर कृषि जगत भी डिजिटल हो गया. 2016 से लेकर 2019 तक जहां कृषि क्षेत्र में नाम मात्र ही ऑनलाइन व्यापार होता था, वो अचानक 2020 में बुलेट ट्रेन की स्पीड से आगे बढ़ा.
कृषि जगत और ई-कॉमर्स
हमारे यहां खेती से जुड़े व्यापार प्रायः परंपरागत रूप से ही होते हैं. लेकिन आज किसानों का बड़ा समूह इंटरनेट की तरफ आकर्षित हो रहा है. इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि इंटरनेट ने उन्हें घर बैठे मार्केट मिल रहा है. वर्तमान आंकड़ों के मुताबिक भारत में 525 मिलियन से भी अधिक सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं. इसमें 200 मिलियन से भी अधिक उपयोगकर्ता ग्रामीण भारत से हैं.
बिचौलियों का खेल समाप्त
इंटरनेट के आने के बाद से बिचौलियों का खेल लगभग समाप्त हो गया. किसान भाई अब सभी तरह के काम खुद करने में सक्षम हो गए. हर तरह की जानकारी और सेवा प्रत्यक्ष रूप से उनके पास पहुंचने लगी है.
सरकार से सीधे संपर्क
किसी भी तरह की शिकायत या सुझाव के लिए अब किसानों को कहीं भटकना नहीं पड़ रहा. सरकारी योजनाओं, कार्यों, परियोजनाओं और सेवाओं का उपभोग अब किसानों के लिए आसान है. आवेदन की प्रक्रिया भी सरल हो गई है.
जानकारियों का भंडार
इंटरनेट पर आज पशुपालन, कृषि, मत्सय पालन, बागवानी, डेयरी आदि सभी क्षेत्रों की जानकारी मुफ्त में मिल रही है. किसानों के लिए ये किसी वरदान की तरह है.
(आपको हमारी खबर कैसी लगी? इस बारे में अपनी राय कमेंट बॉक्स में जरूर दें. इसी तरह अगर आप पशुपालन, किसानी, सरकारी योजनाओं आदि के बारे में जानकारी चाहते हैं, तो वो भी बताएं. आपके हर संभव सवाल का जवाब कृषि जागरण देने की कोशिश करेगा)
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