कर्नाटक में इंद्रधनुषी गिलहरियां लगातार विलुप्ति की कगार की तरफ जा रही हैं, जिसके बाद किसानों की परेशानी बढ़ने लगी है. इनकी कम होती जनसंख्या से बायोलॉजिकल साइकिल गड़बड़ाने लगा है, जिसका सबसे अधिक प्रभाव कृषि पर पड़ रहा है. किसानों के मुताबिक इन गिलहरियों का मुख्य भोजन फसलों पर लगने वाले कीड़े और पंक्षियों के अंडा है. इसलिए किसान इन्हें अपना मित्र समझते हैं.
इसलिए बढ़ी किसानों की चिंता
आज से कुछ साल पहले तक यहां किसानों को फसलों की देखभाल के लिए अधिक सोचना नहीं पड़ता था, क्योंकि ये गिलहरियां कीटों और पंक्षियों की आबादी अधिक बढ़ने नहीं देती थी. लेकिन अब इनकी कम होती जनसंख्या ने परेशानी बढ़ा दी है.
खास है इंद्रधनुषी गिलहरी
गौरतलब है कि वैसे तो भारत के अलग-अलग हिस्सों में इस गिलहरी को देखा जाता है, लेकिन इसकी सबसे अधिक आबादी महाराष्ट्र में है. इसके शरीर पर कई रंग होते हैं, जिस कारण इसे आम बोल-चाल की भाषा में इंद्रधनुषी गिलहरी कहा जाता है. हालांकि इसका बायोलॉजिकल नाम राटुफा इंडिका (Ratufa indica) है.
अपने रंग और पुंछ के लिए है प्रसिद्ध
इस गिलहरी को इसकी पुंछ के लिए भी जाना जाता है, जिसकी लंबाई करीब-करीब तीन फीट तक होती है. इसके शरीर पर पाए जाने वाले कलर में काला, भूरा, पीला, नीला, लाल और नारंगी रंग प्रमुख हैं. यह गिहलरी एक जगह से दूसरी जगह करीब 20 फीट तक का छलांग लगा लेती है. वैसे इन गिलहरियों की कुछ प्रजातियां पूरी तरह से शाकाहारी भी होती है, जो सिर्फ फल, फूल या पेड़ों की छाल खाती है.
कर्नाटक सरकार के इस कानून का हो रहा है विरोध
कर्नाटक सरकार कावेरी वैली में एक डैम का निर्माण करना चाहती है, जिसको लेकर बहुत विवाद बढ़ गया है. इस विवाद में आम लोगों के साथ किसान भी जुड़ गए हैं. उनका कहना है कि इस डैम के बनने से शहर में पानी की किल्लत और बाढ़ की समस्या तो दूर होगी, लेकिन बहुत सी ऐसी प्रजातियां खतरे में आ जाएंगी, जिनका होना कृषि और बायोलॉजिकल साइकिल के लिए फायदेमंद है. इंद्रधनुषी रंगों वाली गिलहरी भी उन्ही प्रजातियों में से एक है, जिसे जंगल के कटने से सबसे अधिक खतरा है.