भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के तत्वावधान में संचालित ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ के आठवें दिन भी बिहार और झारखंड के विभिन्न जिलों में यह अभियान उत्साह, ऊर्जा और वैज्ञानिक प्रतिबद्धता के साथ आयोजित किया गया. यह अभियान अब तक किसानों को उन्नत, लाभकारी और टिकाऊ कृषि तकनीकों से जोड़ने की दिशा में एक प्रेरणादायक पहल बन चुका है.
इसी कड़ी में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना के निदेशक डॉ. अनुप दास और उनके साथ गई टीम में डॉ. अभय कुमार, डॉ. राकेश कुमार, डॉ. मनोज कुमार राय, डॉ. अनिल कुमार, डॉ. फरहान खातुर, तथा उप परिजन निदेशक नीरज कुमार, एटीएम राम लखन वर्मा प्रशिक्षु प्रखंड कृषि पदाधिकारी राज कुमार और रौशन कुमार शामिल ने गया जिले के धर्मपुर और धुसरी गांवों का भ्रमण किया.
इस दौरान कृषि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने ग्रामीणों से सीधे संवाद कर उन्हें जलवायु अनुकूल कृषि तकनीकें, मोटे अनाज की खेती, लंपी स्किन डिज़ीज़ की रोकथाम, उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का उपयोग, पोषण वाटिका, कृषि यंत्रों पर मिलने वाली सब्सिडी, बहुवर्षीय चारा फसलें, तथा राज्य और केंद्र सरकार की कृषि योजनाओं की जानकारी दी. किसानों ने गहरी रुचि लेते हुए वैज्ञानिकों से तकनीकी विषयों पर सवाल पूछे और सुझाए गए उपायों को अपनाने की इच्छा जताई.
डॉ. दास ने इस अवसर पर दोनों गांवों में पौधरोपण भी किया, जिससे पर्यावरण संरक्षण का संदेश प्रसारित हुआ. उन्होंने ग्रामीणों से अपील की कि वे अपने गांव और खेतों में वृक्षारोपण को जीवनशैली का हिस्सा बनाएं. उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को देखते हुए अब समय आ गया है कि हम पारंपरिक अनुभवों के साथ वैज्ञानिक शोध और तकनीक का समावेश करें. मोटे अनाज, पोषण वाटिका, बहुवर्षीय चारा फसलों और जलवायु अनुकूल खेती की जानकारी देकर हम किसानों को आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर कर सकते हैं.
अभियान की सफलता में कृषि विज्ञान केन्द्रों, राज्य एवं केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालयों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों व केन्द्रों तथा राज्य सरकार के कृषि विभाग की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही. इन सभी संस्थानों ने मिलकर गांव-गांव जाकर कार्यक्रम आयोजित किए और आधुनिक कृषि तकनीकों को जमीनी स्तर तक पहुंचाया.
किसानों ने कृषि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों द्वारा दिए गए सुझावों को व्यावहारिक और लाभकारी बताया. उन्होंने कहा कि यदि पारंपरिक ज्ञान के साथ वैज्ञानिक उपायों को अपनाया जाए तो खेती को अधिक लाभकारी, टिकाऊ और पर्यावरण अनुकूल बनाया जा सकता है. यह अभियान न केवल वैज्ञानिकों और किसानों के बीच सेतु बना रहा है, बल्कि आत्मनिर्भर किसान और समृद्ध गांव के संकल्प को भी साकार कर रहा है.