सुनो...! कहीं आह सुनाई दे रही है तुम्हें. सुना है कि भारी बारिश के रूप में कुदरत के कहर ने किसानों को फिर बेहाल कर दिया. एक बार फिर किसानों की फसलों का सत्यानाश हो गया. एक बार फिर किसानों के ख्वाब मुकम्मल होने से पहले ही चूर हो गएं. मेहनत की उगाई फसलों को कुदरत के कहर ने अपनी आगोश में लपेटकर किसानों को बेबस, लाचार और बेसहारा छोड़ दिया है.
तो इतना सब कुछ पढ़ने के बाद आप यहीं सोच रहे हैं न कि ये बकैती क्या हो रही है, तो आपको बतातें चले कि महाराष्ट्र के कई जिलों में भारी बारिश के कहर से किसानों की हालत कुछ ऐसी हो चुकी है कि जिस पर फौरन वहां की सरकार को एक्शन लेने की दरकार है. वहीं, किसान भाई खुद अपनी एकता का परिचय देते हुए सरकार से भारी बाऱिश से फसलों को पहुंचे नुकसान की भरपाई हेतु मुआवजे की मांग कर रहे हैं, लेकिन इसे सरकार की हिमाकत कहें या सियासी चाल कि वे किसानों की सुनने को तैयार ही नहीं हो रहे हैं.
इस बात को जानने के बावजूद भी इस देश की राजनीति की दशा व दिशा तय करने में किसानों की भूमिका हमेशा से ही निर्णायक रही है. यह जानने के बावजूद भी वहां की सरकार के इस हालिया के रूख पर आप क्या कहेंगे. यह तो आप हमसे बेहतर बता सकते हैं, लेकिन आइए जरा एक मर्तबा भारी बारिश के कहर से किसान भाइयों की जो दुर्दशा हुई है, उस पर एक नजर डालते हैं.
बस...इतना समझिए कि बदहाली चरम पर है!
चेहरे पर उदासी है. जुबां खामोश है. निगाहों में अश्कों का दरिया बह रहा है. मुस्कुरहाटों की मानो जैसे उनकी दुश्मनी हो गई है. आज कल कुछ ऐसी ही हालत यहां के किसानों की है. किसान अपनी तकलीफों को बड़ी ही हिम्मत से अपने हर्फों में तब्दील कर उसे बयां करते हुए कहते हैं कि, ‘चलिए हमें यह मानने में कोई गुरेज नहीं है कि कुदरत के कहर पर आखिर किसका जोर है.
लेकिन भइया हर सियासी मौसम में हमारे दर पर दस्तक देने वाले इन सियासी सूरमाओं को तो कम से कम हमारी फिक्र होनी चाहिए न. तनिक तो हमारे बारे सोचना चाहिए. हमारी सुध लेनी चाहिए. हमें राहत पहुंचाने की दिशा में कुछ कदम उठाने चाहिए, लेकिन नहीं, मजाल है कि इन्होंने कुछ हमारे हित में किया हो. ये हमारे नहीं बल्कि वहां किसानों का दर्द है, जिसे हमने अपने पाठकों के समक्ष हर्फों में बयां करने की जहमत उठाई है.
इतना सब कुछ होने के बाद किसानों के शिकवे को सरकार कितना दूर कर पाती है. यह तो फिलहाल आने वाला वक्त ही बताएगा. चलिए, जरा अब आने यह भी जान लेते हैं कि इस कंबख्त बारिश ने किसानों की किन-किन फसलों को अपनी आगोश में समेट लिया है.
किसान भाई अपना दुखरा रोते हुए कहते हैं कि ‘हमारी सोयाबीन, मक्के व उड़द की फसल तो समझिए पूरी बर्बाद हो चुकी है’. किसान भाई कहते हैं कि ‘सबसे ज्यादा नुकसान विगत ८ व ७ सितंबर को हुई बारिश की वजह से हमारी फसलों को हुआ है’।
किसान कहते हैं कि ‘इस साल सबसे ज्यादा बारिश हुई है’. हालांकि, बारिश फसलों की उचित वृद्धि के लिए अपिहार्य है, लेकिन जब यह जरूरत से ज्यादा बढ़ जाए, तो यह किसानों की मेनहत का पलिता लगाने के लिए काफी है. अब आपका बतौर पाठक पूरे मसले पर क्या कुछ कहना है. हमें कमेंट करके जरूर बताइए और कृषि क्षेत्र से जुड़ी हर बड़ी खबर से रूबरू होने के लिए आप पढ़ते रहिए....कृषि जागरण.कॉम