अक्सर ये देखा गया है कि चुनाव का मौसम आते ही हर समस्या का सामाधान जनता को सरकार द्वारा मिलने लगता है. अगर किसानों की बात करें तो यह मंजर हर बार देखने को मिलता है.
किसानों को जब सरकार की जरुरत होती है तब सरकारें अपने में इतनी मशगुल हो जाती है की उन्हें किसानों की समस्या दिखाई ही नहीं देती, लेकिन चुनाव आते ही यह मंजर बिल्कुल बदल सा जाता है. कुछ ऐसा ही हरियाणा में हुआ.
आपको बता दें हरियाणा में खेती और किसानों से जुड़े तमाम विवादों के समाधान के लिए प्रदेश सरकार अहम फैसला लेने जा रही है. अपने कार्यकाल के 7 साल पूरे होने पर प्रदेश सरकार हर जिले में कृषि अदालतें खोलने का ऐलान कर सकती है. हालाँकि, इस विषय पर अभी तक किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं की गयी है, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि किसानों की समस्या को गंभीरता से लेते हुए सरकार द्वारा यह कदम उठाया जा सकता है. इन कृषि अदालतों के प्रारूप और स्वरूप पर अभी मंथन चल रहा है.
कृषि अदालतें खुलने के बाद इनमें भुगतान में देरी, मुआवजा समय से नहीं मिल पाने तथा फसल बीमा कंपनियों की कथित मनमानी समेत तमाम तरह के विवादों को चुनौती दी जा सकेगी. जैसा कि अन्य अदालतों में समस्या का समाधान कानून के तहत किया जाता है, उसी प्रकार अब किसानों की भी समस्या को गंभीरता से सुना जाएगा. हरियाणा सरकार का मानना है कि कृषि अदालतें खुलने के बाद किसानों से जुड़े विवादों का तेजी से समाधान हो सकेगा.
27 अक्टूबर को भाजपा सरकार के सात साल पूरे होने वाले हैं. इन सात सालों में सात प्रमुख योजनाएं लेकर हरियाणा सरकार के मंत्री फील्ड में निकल पड़े हैं. वहीं अगर प्रदेश सरकार की पिछली सूची के बारे में बात करें तो गिनाने के लिए 132 कामों की लंबी सूची है, लेकिन इनमें से सिर्फ उन्हीं फैसलों पर चर्चा होगी, जो सीधे तौर पर लोगों के हितों से जुड़े हुए हैं.
एनसीआर, मध्य हरियाणा और उत्तर हरियाणा के लोगों के हित की कल्याणकारी योजनाओं पर क्षेत्रवार चर्चा होगी. फिलहाल सबसे अहम मुद्दा किसानों व खेती के हित से जुड़ा है, जिसे लेकर सरकार गंभीर नजर आ रही है. जिलों में खुलने वाली कृषि अदालतों में हर शिकायत का समाधान करने की मंशा के साथ सरकार आगे बढ़ रही है. वहीं अब सवाल ये है की इन कृषि अदालतों की जिम्मेदारी किस पर सौपीं जाए. जिसको लेकर आइएएस अधिकारियों को या फिर एचसीएस या कृषि विभाग के अफसरों को सौपें जाने की आशंका जताई है. हालाँकि इस पर अंतिम फैसला लिया जाना बाकी है.
दूसरी ओर मधुमक्खी पालन को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने राज्य में शहद व्यापार केंद्र बनाने की योजना तैयार की है. इसके अलावा प्रगतिशील किसानों को प्रोत्साहित करने के साथ ही उन्हें किसान मित्र बनाने की भी जिम्मेदारी सौंपी जा रही है. एक प्रगतिशील किसान 10 नए किसानों को ट्रेनिंग देकर उन्हें अपने जैसा बनाएगा, जबकि एक प्रगतिशील किसान को 100 किसानों के साथ मित्रता बढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी. किसान मित्र के नाते प्रगतिशील किसान सामान्य किसानों को फसल व वित्तीय प्रबंधन की जानकारी देंगे, ताकि फसल में अधिक से अधिक लाभ हासिल किया जा सके.
हरियाणा सरकार ने फसल उत्पादक संगठन (एफपीओ) गठित करने पर भी फोकस कर रखा है. अभी तक 486 एफपीओ बनाए जा चुके हैं, जिनसे 76 हजार 855 किसान जुड़े हुए हैं. इन्हें बढ़ाकर एक हजार एफपीओ तक करने की योजना है, जिनके लिए 14 करोड़ 98 लाख रुपये का बजट निर्धारित किया जा चुका है. मुख्यमंत्री मनोहर लाल का कहना है कि फसली ऋणों से राहत की एकमुश्त निपटान योजना के तहत तीन लाख आठ हजार 213 किसानों का एक हजार एक करोड़ 72 लाख रुपये का ब्याज व जुर्माना राशि माफ की जा चुकी है. उन्होंने दावा किया कि प्रदेश सरकार किसानों के कल्याण की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है.
हरियाणा सरकार लगातार इस तरह की योजना के साथ किसानों के हित में खड़ी नज़र आई है. किसानों के लिए जरुरी है की सरकार उनकी समस्या को सुने, समझे और उसपर गौर करें. लेकिन आमतौर पर यह देखा गया है कि सरकार और किसान के बीच की दूरी बढ़ती चली जाती है. ऐसे में सरकार और किसानों के बिच मनमुटाव काम होने के वजाए बढ़ता ही जाता है. कृषि प्रधान देश भारत में यह बेहद जरुरी है की किसान और सरकार हमेशा एक साथ रहें तभी देश का आर्थिक के साथ-साथ चौतरफ़ा विकास संभव है.