सचिव, कृषि विभाग, बिहार संजय कुमार अग्रवाल की अध्यक्षता में कृषि भवन, मीठापुर, पटना में जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के स्टेयरिंग कमेटी की बैठक आयोजित की गई. इस कार्यक्रम में जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम में फसल विविधीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है. सचिव, कृषि विभाग ने अपने संबोधन में कहा कि जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम राज्य के 08 जिलों में वर्ष 2019 में शुरू की गयी. पहले ही वर्ष में इसके बहुत अच्छे परिणाम आये, जिससे उत्साहित होकर राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2020 से इसे राज्य के सभी जिलों में लागू किया गया.
वही, 05 वर्षों के बाद प्रथम चरण में चयनित 08 जिलों में इस कार्यक्रम का कार्यकाल पूरा होने के उपरान्त रबी मौसम में यह योजना नये सिरे से लागू की जाएगी.
जिला के अनुसार फसल चक्र तथा विविधीकरण को दिया जाएगा बढ़ावा
उन्होंने कहा कि जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के अंतर्गत पूर्व से चयनित गाँवों के स्थान पर नये गाँवों का चयन कर इस योजना को क्रियान्वित की जाएगी. इस कार्यक्रम में फसल चक्र का चयन जिला के अनुसार कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा दिये गये सुझाव के आलोक में किया जायेगा. वर्षा एवं तापमान में अप्रत्याशित बदलाव कृषि को प्रभावित कर रही हैं. इसलिए जरूरी है कि मौसम के अनुसार फसल चक्र को अपनाया जाये. फसल चक्र का चुनाव संबद्ध क्षेत्रों में जल की उपलब्धता के अनुसार किया जायेगा. चतुर्थ कृषि रोड मैप के अनुसार प्रत्येक 02 साल पर फसल चक्र के लिये चयनित फसलों का अनुश्रवण किया जाएगा, ताकि अगर फसलों में बदलाव की आवश्यकता हो, तो उसके अनुसार बदलाव का कार्य किया जाये.
जीरो टिलेज तकनीक तथा रेज़्ड बेड बुवाई की तकनीक का किसानों के बीच लोकप्रियता
सचिव ने बताया कि चयनित गांवों को आदर्श गांव को रूप में विकसित किया जायेगा तथा चयनित गाँव में कृषि विभाग द्वारा संचालित अन्य योजनाओं को समाहित किया जायेगा. जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के प्रभाव आकलन किया जायेगा कि 05 साल तक एक ही खेत में इस तकनीक के उपयोग के उपरान्त छठे साल किसान उन तकनीकों को स्वयं अपनाता है अथवा नहीं. क्या किसान नई तकनीक पर विश्वास किया है अथवा नहीं. अभी तक के प्रभाव आकलन से यह ज्ञात हुआ है कि जीरो टिलेज तकनीक तथा रेज़्ड बेड बुवाई की तकनीक का किसानों के बीच लोकप्रियता है. जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम में बीज उत्पादन को बढ़ावा दिया जायेगा. उच्च गुणवत्ता के बीज जलवायु की विषम परिस्थितियों का सामना करने में सहायक है. प्रत्येक जिला में कम-से-कम 20 एकड़ में बीज उत्पादन का कार्य किया जायेगा तथा शुद्ध बीज को राज्य के कृषि विश्वविद्यालय/बीसा के साथ संबद्ध कर किसानों को उपलब्ध कराया जायेगा.
ब्रिकेट निर्माण तथा इथेनॉल उत्पादन संयंत्रों के साथ किया जायेगा समन्वय
अग्रवाल ने कहा कि फसल अवशेष प्रबंधन हेतु निजी क्षेत्रों के साथ विशेषकर ब्रिकेट निर्माण तथा इथेनॉल उत्पादन संयंत्रों के साथ समन्वय स्थापित कर जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम का एक महत्त्वपूर्ण अवयव रखा जायेगा. जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम अंतर्गत प्रशिक्षित किसानों द्वारा तकनीकों का उपयोग अपनाया गया है कि नहीं, इसका भी अध्ययन किया जायेगा.
इस बैठक में क्षेत्रीय मुख्य वन संरक्षक, पटना डॉ॰ गोपाल सिंह, कृषि निदेशक मुकेश कुमार लाल, जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम से संबद्ध संस्थाएँ यथा बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर, डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी क्षेत्र के लिए अनुसंधान परिसर, पटना, बीसा, समस्तीपुर के वैज्ञानिकों सहित कृषि विभाग के मुख्यालय के वरीय पदाधिकारियों ने भाग लिया.
लेखक: संजय कुमार अग्रवाल