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Updated on: 18 April, 2018 12:00 AM IST
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ये बात तो सभी जानते है कि इजराइली तकनीक ने दुनियाभर में अपना दबदबा कायम कर रखा है. कई देश यहां की तकनीक को जानने व सीखने के लिए इस छोटे देश में जाते हैं. इन सबके उलट आज हम भारत के उस किसान से मिलवाते है, जिनके द्वारा विकसित की गई तकनीकि को सीखने के लिए लोग इजराइल से भारत आते हैं. यही नहीं किसान द्वारा विकसित की गई तकनीकि को इजराइल में लागू किया गया है.

किसान भाइयों इसका नाम है ‘चोका सिस्टम’. इस तकनीकि को  किसान कहीं भी अपने हिसाब से इस्तेमला कर सकता है. ये तकनीक है किसान को कमाई कराने की, उसे गांव में ही रोजगार देने, पानी बचाने की और जमीन को सही रखने की। इस किसान की माने तो यही तो तकनीकी है जिसके सहारे गायों को लाभकारी बनाने हुए उन्हें बचाया भी जा सकता है।

‘चोका सिस्टम’ की जिस गांव से शुरुआत हुई है वहां हर घर सिर्फ दूध के कारोबार से हर महीने 10 से 50 हजार रुपए कमाता है। इजरायल को ज्ञान देने वाले इस किसान का नाम है लक्ष्मण सिंह। 62 साल के लक्ष्णम सिंह राजस्थान के जयपुर से करीब 80 किलोमीटर दूर लाहोडिया गांव के रहने वाले हैं।

ये गांव कभी भीषण सूखे का शिकार था।गरीबी और जागरुकता की कमी के चलते यहां आए दिन लड़ाई दंगे होते रहते हैं, युवा गांव छोड़-छोड़ शहर में मजदूरी करने को मजबूर हो रहे थे।

करीब 40 साल पहले लक्ष्मण सिंह ने अपने गांव को बचाने के लिए मुहिम शुरु की। बदलाव रंग भी लाया कि आज इजरायल जैसा देश इस गांव का मुरीद है। आज लापोडि़या समेत राजस्थान के 58 गांव चोका सिस्टम की बदौलत तरक्की की ओर है। यहां पानी की समस्या काफी हद तक कम हुई है। किसान साल में कई फसलें उगाते हैं। पशुपालन करते हैं। और पैसा कमाते हैं। 350 घर वाले इस गांव में आज 2000 के करीब आबादी रहती है।

ऐसे बनता है चोका सिस्टम

चोका सिस्टम हर पंचायत की सार्वजनिक जमीनों पर बनता है। एक ग्राम पंचायत में 400 से 1,000 बीघा जमीन खाली पड़ी रहती है, इस खाली जमीन में चोका सिस्टम ग्राम पंचायत की सहभागिता से बनाया जाता है। खाली पड़ी जमीन में जहां बरसात का नौ इंच पानी रुक सके वहां तीन चौड़ी मेड (दीवार) बनाते हैं, मुख्य मेड 220 फिट लम्बाई की होती है और दोनों साइड की दीवारे 150-150 फिट लम्बी होती हैं।

इस गांव में अब नहीं होती है अब कभी पानी की कमी

भूमि का लेवल नौ इंच का करते हैं जिससे नौ इंच ही पानी रुक सके इससे घास नहीं सड़ेगी। इससे ज्यादा अगर पानी रुका तो घास जमेगी नहीं। हर दो बीघा में एक चोका सिस्टम बनता है, एक हेक्टेयर में दो से तीन चोका बन सकते हैं। एक बारिश के बाद धामन घास का बीज इस चोका में डाल देते हैं इसके बाद ट्रैक्टर से दो जुताई कर दी जाती है।

सालभर इसमें पशुओं के चरने की घास रहती है। इस घास के बीज के अलावा देसी बबूल, खेजड़ी, बेर जैसे कई और पेड़ों के भी बीज डाल जाते हैं। चोका सिस्टम के आसपास कई नालियां बना दी जाती हैं। जिसमें बरसात का पानी रुक सके। जिससे मवेशी चोका में चरकर नालियों में पानी पी सकें।

English Summary: choka system
Published on: 18 April 2018, 01:00 AM IST

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