गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर देशभर में तैयारियां जोरों से चल रही हैं. मूर्तिकारों के पास भी जमकर आर्डर आ रहे हैं. देखा जाए तो गणेश उत्सव की सबसे अधिक धूम दक्षिण भारत में देखने को मिलती है. लेकिन गणेश विसर्जन के बाद मूर्तियों म उपयोग किए गए कैमिकल से हमारी प्रकृति को काफी नुकसान पहुंचता है.
इसी के मद्देनज़र तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने निर्णय लिया है कि गणेश उत्सव के दौरान पर्यावरण के अनुकूल गणेश जी मूर्तियों को निर्धारित स्थानों पर ही विसर्जित किया जाए. तो वहीं दूसरी तरफ बोर्ड की तरफ से कहा गया कि प्रदूषण को रोकने के लिए प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनी भगवान की मूर्तियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.
बढ़ते जल प्रदूषण को कम करने के लिए यह बेहद जरूरी कदम है. पीओपी की मूर्तियों का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करने के निर्देश दिए गए हैं. मूर्ति निर्माताओं ने कलाकारों से पीओपी की मूर्ति नहीं बनाने को भी कहा है.
पीओपी से बनीं मूर्तियां बैन
टीएनपीसीबी की तरफ से कहा गया है कि पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए हमें पर्यावरण के अनुकूल भगवान गणेश जी की मूर्तियां बनानी चाहिए. जलीय स्रोतों में विसर्जन के कारण बड़ी मात्रा में जल प्रदूषण होता है. मूर्तिकारों द्वारा मूर्ति बनाने के लिए प्लास्टर ऑफ पेरिस, मिट्टी, घास और विभिन्न रंगों में पासा, पेंट और खतरनाक रसायन आदि का उपयोग किया जाता है. रासायनिक रंगों और पेंट में विभिन्न प्रकार की खतरनाक धातुओं का उपयोग किया जाता है.
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जब ऐसी मूर्तियों को पानी में विसर्जित किया जाता है, तो ये पदार्थ पानी में घुल जाते हैं और पानी की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं. क्योंकि धातुएं पानी में घुल जाती हैं और पानी को जहरीला बना देती हैं, जिससे जलीय जीव मर जाते हैं, खासकर मछलियां जल स्रोतों के जल को प्रदूषित होने से बचाने के लिए यह आवश्यक है कि पर्यावरण के अनुकूल सामग्री का उपयोग किया जाए.