आने वाले 20 सालों के अंदर गेहूं, सोयाबीन, चावल और मक्के की खेती पूरी तरह से बदल सकती है. यह भी हो सकता है कि इन फसलों के अभाव में खाद्य असुरक्षा उत्पन्न हो और दुनिया की बड़ी आबादी भुखमरी और कुपोषण का शिकार हो जाए.
दरअसल इस समय जलवायु परिवर्तन बहुत अधिक तेजी से हो रहा है, जिसके कारण वैश्विक स्तर पर कृषि प्रभावित हो रही है. इस बारे में हाल ही में यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका जर्नल द्वारा प्रकाशित एक लेख प्रकाशित हुई है, जिसके अनुसार मौसम और जल में हो रहे बदलाव का असर पैदावार पर होगा और कीमतों में भारी वृद्धि होगी.
भारत के किसान होंगे प्रभावित (Farmers of India will be affected)
गौरतलब है कि भारत में बड़े स्तर पर गेहूं, सोयाबीन, चावल और मक्के का उत्पादन होता है, ऐसे में अन्य देशों के साथ भारत को भी सूखे का सामना करना पड़ा, तो यहां के 60 प्रतिशत से भी अधिक किसान प्रभावित हो जाएंगें. ऐसा इसलिए क्योंकि हमारे देश में आज भी 60 प्रतिशत कृषि भूमि वर्षा जल पर निर्भर है.
कम होगा उत्पादन (Production will be less)
समस्या की गंभीरता को इसी बात से समझा जा सकता है कि भारत में चावल की खेती वाली 100 प्रतिशत जमीन और मक्के की खेती वाली 91 प्रतिशत जमीन जलवायु से प्रभावित होगी. मौसमी गड़बड़ियों के परिणामस्वरूप उत्पादन कम होगा और स्थानीय स्तर पर कीमतें बढ़ेंगी.
किसानों की आय दोगुनी होने में अड़चन (Hurdles in doubling farmers income)
बदलते हुए जलवायु के चलते तापमान और वर्षा की प्रवृत्ति में भी बदलाव होगा और सूखे एवं बाढ़ ही समस्या उतपन्न होगी. जल और भूजल का स्तर घटने से किसानों को सिंचाई के लिए अधिक पैसे खर्च करने होंगे. इसके अलावा मौसमी गड़बड़ियों के कारण सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र के कृषि क्षेत्र भी प्रभावित होंगें. ध्यान रहे कि इस बारे में खुद पीएम मोदी भी दो साल पहले बोल चुके हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण किसानों की आय दोगुनी करने में दिक्कत हो सकती है.