Arunachal Pradesh: अरुणाचल प्रदेश के किसान संगठनों ने राज्य सरकार के द्वारा सियांग नदी पर प्रस्तावित 10,000 मेगावाट जलविद्युत परियोजना को क्रियान्वित करने के समझौते को रद्द करने की मांग की है. यह सियांग नदी उन तीन नदियों में से एक है जो तिब्बत के नीचे की ओर असम में ब्रह्मपुत्र नदी से जा मिलती है.
सियांग स्वदेशी किसान फोरम (एसआईएफएफ) और स्वदेशी अधिकार वकालत दिबांग (आईआरएडी) ने राज्य सरकार पर स्थानीय लोगों को विश्वास में लिए बिना मेगा-बांध के लिए राष्ट्रीय जलविद्युत ऊर्जा निगम के साथ सौदा करने का आरोप लगाया है और उन्होंने सरकार को यह धमकी दी है कि अगर यह परियोजना रद्द नहीं की गई तो वह इसके लिए आंदोलन भी शुरू करेंगे.
एसआईएफएफ के अध्यक्ष तासिक पंगकम ने कहा कि सियांग नदी क्षेत्र में आदिवासी समुदाय कभी भी इस मेगा परियोजना को स्वीकार नहीं करेगा, यह उनके अस्तित्व को खतरे में डालेगा और उन्हें भूमिहीन कर देगा. पंगकम चकमा और हाजोंग लोगों का उदाहरण दिया, जो 1960 के दशक में वर्तमान बांग्लादेश में कपताई जलविद्युत परियोजना द्वारा विस्थापित हुए थे और उन्हें भारत में शरण लेने के लिए मजबूर किया गया था.
पंगकम ने कहा कि इस परियोजना से अरुणाचल प्रदेश में नीचे की ओर के गांव जलमग्न हो जाएंगे और आदिवासी लोगों को विस्थापित होना पड़ेगा. यह 10,000 मेगावाट की परियोजना से पड़ोसी असम को भी प्रभावित करेगा. हम 13 साल से बड़े बांधों के खिलाफ लड़ रहे हैं और आसानी से हार नहीं मानेंगे. उन्होंने कहा कि हमारी मांगों को लेकर अधिकारियों को परियोजना के साथ आगे बढ़ने से पहले लोगों से परामर्श करना चाहिए और इसके बारे में सार्वजनिक सुनवाई आयोजित करनी चाहिए.
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पंगकम ने कहा कि उन्होंने कुछ दिन पहले नेपाल में आयोजित यूनाइटेड नेशंस सॉट एशिया फोरम ऑन बिजनेस एंड ह्यूमन राइट्स इवेंट में वैश्विक पर्यावरण एजेंसियों की भी मदद मांगी थी. इससे भारत पर सियांग परियोजना को खत्म करने का दबाव बनाया जा सकता है.