बिहार के गया जिला का तिलकुट पूरे भारत में प्रसिद्ध है. यहां के कुशल कारीगरों द्वारा निर्मित तिलकुट की देश-विदेश में मांग है. परन्तु, तिलकुट निर्माण हेतु तिल के लिए गया जिला दूसरे राज्यों विशेषकर राजस्थान, गुजरात आदि पर निर्भर है. ऐसे में कृषि विभाग के द्वारा बिहार के गया जिले में किसानों को तिल की खेती करने को लेकर प्रोत्साहित किया जा रहा है. इस संदर्भ में सचिव कृषि ने कहा कि दूसरे राज्यों पर निर्भरता को दूर करने के लिए कृषि विभाग के द्वारा गरमा, वर्ष 2023 में गया जिला में बड़े पैमाने पर तिल उत्पादन का लक्ष्य रखा गया.
खाद्य एवं पोषण सुरक्षा-कृषोन्नति योजना (एन॰एफ॰एस॰एम॰) के तहत् गत गरमा मौसम में 24 क्विंटल गरमा तिल के बीज का वितरण किसानों के बीच किया गया है. लगभग 600 हेक्टेयर में गरमा तिल की खेती की गई. किसानों द्वारा औसतन 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त किया गया.
किसानों को उनके उत्पाद का न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक मिला मूल्य
तिलकुट व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों ने किसानों से सम्पर्क कर औसतन 140-180 रूपये प्रति किलो के दर से तिल की खरीदारी की गई, जो कि तिल के न्यूनत्तम समर्थन मूल्य से अधिक था. तिल का समर्थन मूल्य वर्ष 2023-24 में 8635 रुपये प्रति क्विंटल था.
मगध प्रमण्डल में तिल उत्पादन को बढ़ावा
अग्रवाल ने कहा कि गत वर्ष के गरमा मौसम में तिल की खेती की सफलता को देखते हुए कृषि विभाग द्वारा खाद्य एवं पोषण सुरक्षा-कृषोन्नति योजना (एन॰एफ॰एस॰एम॰) और राज्य योजना के अंतर्गत तिल के प्रभेद जी॰टी॰-5 के 50 क्विंटल बीज अनुदानित दर पर किसानों को उपलब्ध कराया गया. गरमा मौसम, वर्ष 2024 में लगभग 1300 हेक्टेयर में तिल की खेती गया जिला के गुरारू, शेरघाटी, परैया, टेकारी, मोहनपुर तथा टनकुप्पा सहित सभी प्रखंडों में की जा रही है.
उन्होंने कहा कि मगध प्रमण्डल के जिलों में गरमा मौसम में तिल की खेती का प्रत्यक्षण किया जा रहा है, जिससे तिल उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा. आने वाले समय में गया जिला के तिलकुट निर्माण के लिए तिल राज्य में ही पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो सकेगा.
लेखक:
संजय कुमार अग्रवाल