Sheep Farming: भेड़ पालन आज के समय में ग्रामीण किसानों के लिए आय का एक अच्छा और लाभकारी साधन बनता जा रहा है. यह व्यवसाय कम पूंजी में शुरू किया जा सकता है और इससे मांस, ऊन तथा मेमनों की बिक्री से अच्छी आमदनी होती है. भारत के कई राज्यों में भेड़ पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है, खासकर जम्मू-कश्मीर में इस क्षेत्र को नई दिशा देने के प्रयास किए जा रहे हैं. समग्र कृषि विकास योजना के अंतर्गत ऑस्ट्रेलिया से उन्नत नस्ल की भेड़ें जैसे टैक्सल और डार्पर को राज्य में लाया गया है.
कश्मीर में टैक्सल नस्ल की 450 भेड़ें भेजी गई हैं, जबकि जम्मू के कठुआ जिले में डार्पर नस्ल की 235 भेड़ें रखी गई है. इस पहल का उद्देश्य भेड़ पालन/Sheep Farming के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना और किसानों की आय को बढ़ाना है.
जम्मू-कश्मीर पहुंचेगी 900 उन्नत नस्ल की भेड़ें
पशुपालन को मजबूती देने और पशुधन की गुणवत्ता में सुधार के लिए जम्मू-कश्मीर सरकार ने एक बड़ी पहल की है. समग्र कृषि विकास योजना के तहत लगभग 8000 किलोमीटर दूर ऑस्ट्रेलिया से 900 उन्नत नस्ल की भेड़ों का आयात किया जा रहा है. यह कदम राज्य में भेड़ पालन उद्योग को नई दिशा देने और किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से उठाया गया है. साथ ही, इन भेड़ों से बेहतर मांस और ऊन उत्पादन की उम्मीद है.
सैंपल जांच प्रक्रिया में तेजी
वहीं, इन भेड़ों के स्वास्थ्य परीक्षण के लिए उनके सैंपल लिए जा रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे किसी संक्रामक रोग से ग्रस्त न हों स्वास्थ्य जांच की प्रक्रिया भोपाल, लुधियाना और बरेली स्थित अत्याधुनिक लैब्स में चल रही है. वहां इन नमूनों की ब्लू टंग, फुट रॉट, स्क्रैपी, ब्लैक क्वार्टर, शीप पॉक्स, एंथ्रेक्स, रिफ्ट वैली फीवर, पल्मोनरी एडेनोमैटोसिस और ओआरएफ जैसी गंभीर बीमारियों के लिए गहन जांच की जा रही है. डार्पर भेड़ों को पैंथल स्थित भेड़ फार्म में प्रजनन किया जाएगा और वहीं टैक्सल नस्ल का प्रजनन खिंबर फार्म में ही किया जाएगा साथ ही इस योजना के तहत इन नस्लों से उत्पन्न संतानों को राज्य के अन्य भेड़ पालन केंद्रों में वितरित किया जाएगा.
क्यों चुनी गई टैक्सल और डार्पर नस्लें?
डार्पर नस्ल (Darper Breed)
डार्पर भेड़ें मूल रूप से दक्षिण अफ्रीका में 1940 के दशक में विकसित की गई थीं यह नस्ल डोरसेट सींग वाले मेढ़ों और ब्लैकहेड फाररसी भेड़ों के क्रॉस से तैयार की गई है इनका विकास इस तरह किया गया है कि इनमें दोनों नस्लों की श्रेष्ठ खूबियां पाई जाती हैं डार्पर भेड़ों की खास बात यह है कि इनके मेमने चार महीने में ही 35–40 किलोग्राम तक का वजन प्राप्त कर लेते हैं. वयस्क डार्पर भेड़ें 90 किलोग्राम तक भारी होती हैं.इस नस्ल की प्रजनन क्षमता अत्यधिक है और यह विभिन्न प्रकार की जलवायु परिस्थितियों में आसानी से ढल जाती है.
टैक्सल नस्ल (Texel breed)
टैक्सल भेड़ें नीदरलैंड के टेक्सेल द्वीप से उत्पन्न मानी जाती है. ये भेड़ें अपने मांसपेशीय विकास और उच्च गुणवत्ता के मांस के लिए जानी जाती है. इनका चेहरा छोटा, चौड़ा और नाक काली होती है. साथ ही, इनके कान क्षैतिज दिशा में फैले होते हैं. खास बात यह है कि टैक्सल भेड़ों के सिर और पैरों पर ऊन नहीं होता, जिससे ऊन की सफाई की प्रक्रिया सरल हो जाती है. टैक्सल नस्ल तेजी से वजन बढ़ाती है.
लेखक: रवीना सिंह