अलबत्ता, जब आपकी निगाहें हमारे द्वारा लिखे गए इस शीर्षक पर गई होगी, तो आपके चेहरे पर हैरतइया सैलाब ने अपने आप अपना ठिकाना बना लिया होगा. हमें यह लिखते हुए कोई गुरेज नहीं हो रहा है कि आपको हमारे ही द्वारा लिखे गए इस शीर्षक पर एतबार नहीं हो रहा होगा. जी हां.. बिल्कुल, ठीक वैसे ही जैसे आपको हमारे द्वारा लिखे गए शीर्षक पर यकीन नहीं हो रहा है. हमें भी यकीन नहीं हो रहा था, जब हमें यह पता चला कि पूरी दुनिया में कहर बरपाने वाले कोरोना की कहानी लगभग 25 हजार साल पुरानी है. बेशक, पिछले तकरीबन डेढ सालों से कोरोना का कहर अपने चरम पर पहुंच चुका हो, मगर कोरोना का अस्तित्व आज से 25 हजार साल पुराना है. इसका खुलासा किसी और ने नहीं, बल्कि यूनिवर्सिटी ऑफ एरोजिना ने किया है. इस यूनिवर्सिटी में कार्यरत प्रोफसरों ने खुद इसकी पुष्टि कर कहा कि कोरोना का वजूद आज से 25 हजार साल पुराना है. बेशक, पिछले डेढ साल से इसका कहर अपने चरम पर हो, मगर इसकी कहानी बहुत पुरानी है.
इतिहास खुद इस बात की तस्दीक करते हुए आया है कि जब-जब कोरोना ने अपना विकराल रूप दिखाया है, तब-तब इसान को बेहाली के दौर से गुजरना ही पड़ा है. आज से 25 हजार साल पहले सबसे पहले इस वायरस ने ईस्ट एशिया के लोगों को अपनी जद में लिया था. काफी संख्या में लोग इस वायरस का शिकार होकर काल के गाल में समा गए थे और अब एक बार फिर से पूरी दुनिया में कोरोना का कहर अपने चरम पर पहुंचकर समस्त मानव समुदाय को बदहवास करने पर आमादा हो चुका है.
शोध में खुलासा हुआ है कि आज शायद ही ऐसा कोई भूभाग शेष हो, जहां कोरोना का कहर न दिख रहा हो, लेकिन आज से 25 हजार साल पहले कोरोना का कहर महज ईस्ट एशिया के लोगों तक ही सीमित था, जिसका नतीजा ही है कि यहां के लोगों की इम्मूनिटी पावर काफी ज्यादा मजबूत है, मगर अब कोरोना का कहर अपने चरम पर पहुंच चुका है, लेकिन शोध से एक बात यह भी निकलकर सामने आई है कि मानव समुदाय हमेशा से ही कोरोना के कहर के आगे बेबस और लाचार रहा है. उसकी लाचारी का अंदाजा आप महज इसी से लगा सकते हैं कि आज से 25 हजार साल बाद जब पूरी दुनिया इतनी विकसित हो चुकी है कि हम चांद तक जा पहुंचे हैं, मगर कोरोना के कहर आगे हम आज भी बेबस और लाचार हैं. शोध में बताया जाता है कि कोरोना के नए-नए वेरिएंट काफी घातक हैं, जिसका तोड़ किसी के पास नहीं है.
इस संदर्भ में विस्तृत जानकारी देते हुए प्रोफेसर एनार्ड कहते हैं कि कोरोना वायरस नए-नए जीनोम के जरिए लोगों को अपनी जद में लेता है. हर पैथाजोन अपनी पीढ़ियों में बदलाव करता रहता है, ताकि वो खुद को हर बदलते वातावरण में ढाल सके.
यहां हम आपको बताते चले कि वैज्ञानिकों ने पूरी दुनियाभर के 25 अलग शहरों के लोगों के जीनोम की जांच की, तब जाकर पता चला कि यह वायरस इतना पुराना है. वैज्ञानिक शोध में पता चला है कि कोरोना वायरस 420 प्रकार के प्रोटिन्स से संपर्क करता है, फिर 322 प्रोटिन्स से संपर्क करता है. जब कोरोना वायरस इंसान के प्रोटिन्स से संपर्क करता है, तो समझ लीजिए कि अब व्यक्ति संक्रमित होने वाला ही है. खैर, जैसे-जैसै कोरोना का कहर बढता जा रहा है, ठीक वैसे-वैसे शोध का सिलसिला भी तेजी से बढ़ता जा रहा है. कल तक वैक्सीन के इंताजर में बैठे लोगों के सामने अब जब वैक्सीन आई है, तब लोगों में इसकी उपयोगिता को लेकर अनेकों प्रशन चित्त में आ रहे हैं. खैर, अब आगे इसे लेकर क्या कुछ शोध में निकलकर सामने आता है. यह तो फिलहाल आने वाला वक्त ही बताएगा.