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Updated on: 14 February, 2024 6:18 PM IST
प्राकृतिक खेती पर 2 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम

कृषि विज्ञान केन्द्र, झालावाड़ पर प्राकृतिक खेती विषय पर 2 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन 13-14 फरवरी, 2024 को किया गया. इस बात की जानकारी केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, डॉ. टी.सी. वर्मा ने दी. बता दें कि कार्यक्रम में 40 कृषकों ने भाग लिया. साथ ही बताया कि प्राकृतिक खेती में प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करने पर आधारित होती है जिसमें खेत खलिहान एवं पशुशाला से प्राप्त अपशिष्ट एवं अवशेषों को पुनः कृषि में अनुप्रयोग किया जाता है जिससे स्थानीय उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण होना सुनिश्चित हो जाती है.

इस खेती के माध्यम से धरती माँ के स्वास्थ्य सुधार के साथ उससे उत्पादित अनाज व चारा एवं अन्य उत्पाद भी पौष्टिकता से भरे पूरे होते है. स्वस्थ धरा खेत हरा का संकल्प केवल प्राकृतिक खेती/ Natural Farming जैसी विधाओं से ही सिद्ध हो सकता है. साथ ही प्राकृतिक खेती में कीट व रोग प्रबंधन/ Pest and Disease management in natural farming के बारे में विस्तार से बताया.

कैलाश चन्द मीणा, संयुक्त निदेशक (कृषि विस्तार), कृषि विभाग, झालावाड़ ने प्राकृतिक खेती पर सरकार द्वारा संचालित विभिन्न किसान हितेषी योजनाओं पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इन योजनाओं के माध्यम से किसान अपनी खेती किसानी में नवाचार करते हुए कृषि को लाभकारी बनाने की पहल कर सकते है. मृदा में जीवाणुओं का संरक्षण करना नितान्त आवश्यक है ताकि मृदा लम्बे समय तक गतिशील व कार्यशील बनी रहे. जीवन में खाद्य वस्तुओं को भी विविधिकरण के माध्यम से भोजन में शामिल करें जैसे श्री अन्न/मोटा अनाज एक लाभकारी एवं पौष्टिक अनाज कहलाता है अतः इसे अपने दैनिक भोजन की थाली में शामिल करें.

डॉ. उमेश धाकड़, कृषि अनुसंधान अधिकारी, जैविक खेती उत्कृष्ठता केन्द्र, झा.पाटन प्राकृतिक खेती के लिए बीजामृत व जीवामृत बनाने की विधियों पर प्रकाश डाला तथा पोषक तत्व प्रबंधन के बारें में विस्तार से बताया. प्राकृतक खेती में ढैंचा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है यह मिट्टी के जीवाश्म पदार्थ को सुचारू बनाए रखता है. साथ ही प्राकृतिक खेती में उपयोग किए जाने वाले विभिन्न घटकों के बारे में प्रकाश डाला एवं प्रायोगिक तौर से बनाने की विधि भी बताई. इनके उपयोग से मृदा में जीवांश पदार्थ की आपूर्ति निरन्तर बनायी जा सकती है जिससे मृदा स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव दिखाई देता है.

प्रशिक्षण प्रभारी एवं केन्द्र के मृदा वैज्ञानिक डॉ. सेवा राम रूण्डला ने 2 दिवसीय प्राकृतिक खेती प्रशिक्षण कार्यक्रम की रूपरेखा पर प्रकाश डालते हुये बताया कि इस प्रशिक्षण को सैद्धान्तिक व प्रायोगिक कालांशों के माध्यम से करवाया गया. इस खेती में संश्लेषित रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता है अर्थात बिना जहर के खेती की जाती है जैसे प्राकृतिक खेती के प्रमुख स्तम्भों जैसे बीजामृत, जीवामृत, घनजीवामृत, पलवार, वापसा, गौ मूत्र, नीमास्त्र, ब्रह्मास्त्र, वानस्पतिक काढ़ा, हरीखाद आदि का अनुप्रयोग किया जाता है. प्रायोगिक सेशन के माध्यम से किसानों को इन घटकों को बनाने की सजीव विधि प्रदर्शन किया गया तथा किसानों ने स्वयं भी बीजामृत व जीवामृत बनाया. पौधों को जीवनयापन करने के लिए कुल 17 आवश्यक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है जिनकी जानकारी मृदा जाँच उपरान्त ही प्राप्त होती है. 

अतः मृदा व जल जांच की महत्त्वता को ध्यान में रखते हुए समय पर जाँच कराएं एवं जांच उपरान्त मृदा स्वास्थ्य कार्ड में दी गई सिफारिशों एवं मानकों को प्राकृतिक खेती में शामिल कर बेहतरीन तरीके से मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन किया जा सकता है जिससे मृदा लम्बे समय तक बिना किसी ह्नास के लगातार टिकाऊ कृषि उत्पादन देने के लिए तैयार रहती है. प्रशिक्षण दौरान निर्देशात्मक फार्म पर प्राकृतिक खेती प्रक्षेत्र पर भ्रमण भी करवाया गया एवं पलवार का विधि प्रदर्शन करवाया गया. प्राकृतिक खेती के प्रमुख घटकों के माध्यम से कृषिगत लागतों में कटौती होने के साथ मानव, पशु, पर्यावरण, जल, जंगल की गुणवत्ता एवं मृदा स्वास्थ्य में सकारात्मक सुधार होता है. प्रशिक्षण दौरान केन्द्र पर स्थित प्राकृतिक खेती प्रदर्शन प्रक्षेत्र एवं अन्य जीवन्त इकाईयों का भ्रमण करवाया.

केन्द्र के प्रसार शिक्षा वैज्ञानिक, डॉ. मौहम्मद युनुस ने प्राकृतिक उत्पादों के प्रमाणीकरण, फसलों के कटाई उपरान्त प्रसंस्करण, भण्डारण एवं विपणन प्रबन्धन के बारें में विस्तार से समझाया. साथ ही बताया कि प्राकृतिक खेती कम से कम लागत में सतत् गुणवत्तायुक्त कृषि उत्पादन प्राप्त करने की एक टिकाऊ कृषि पद्धति है जिससे मृदा, पर्यावरण व प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण होना सुनिश्चित हो जाता है. इन प्रशिक्षणों के माध्यम से किसान अपने ज्ञान व कौशल को बढ़ाकर खेती में नवाचार कर वर्षभर आमदनी प्राप्त कर सकते है.

रमेश कुमार कुल्मी, प्रगतिशील कृषक, मिश्रोली (भवानीमण्डी) ने प्राकृतिक खेती की सफलता की प्रमुख बातें एवं अनुभव साझा करते हुए प्राकृतिक खेती कैसे शुरू करें एवं कब करें के बारे में विस्तार से बताया. साथ ही जीवामृत, घनजीवामृत, वानस्पतिक काढ़ा एवं नीमास्त्र बनाने की प्रायोगिक विधि के माध्यम से बताया गया. दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में नन्द किशोर गुर्जर, कृषि पर्यवेक्षक ने उद्यान व कृषि विभाग की योजानाओं के बारे में बताया. दिनेश कुमार चैधरी ने कार्यक्रम संचालन में सहयोग प्रदान किया.

English Summary: 2 day training program organized on natural farming Pest and Disease management
Published on: 14 February 2024, 06:25 PM IST

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