पराली की समस्या देखते ही देखते एक बड़ा मुद्दा बन गई है चाहे वो किसान के लिए हो या फिर सरकार के लिए, पराली की समस्या ने सबको परेशान किया है. एक ओर सरकार परेशान हैं तो वहीं दूसरी ओर किसानों के पास पराली जलाने के अलावा कोई चारा नहीं वहीं पराली से हो रही प्रदुषण समस्या से हर कोई असमंजस में है, ऐसे में एक विकल्प सामने आया है - रिवर्सेबल हल.
मशीन का महत्व (Importance of machine)
हल कईं प्रकार के होते हैं जैसे हाइड्रोलिक, 2 बौटम और 3 बौटम. जो कृषि की हर जरुरत के लिए अलग- अलग होते हैं ऐसे में रिवर्सेबल हल, किसान भाषा में पलटा हल एक उपयोगी और सफल विकल्प है .
इसका महत्व इसलिए बढ़ गया है क्योंकि यह न सिर्फ पराली समस्या को हल करता है बल्कि उसे उपयोगी भी बनाता है
1. इससे पराली को ज़मीन के नीचे ही दफ़नाया जा सकता है .
2. दबी हुई पराली से ओर्गेनिक खाद तैयार होगी .
3. इस रिवर्सेबल हल को चलाने के बाद रोटावेटर चलाकर आलू, टमाटर, गाजर, मटर और गेहूं भी उगया जा सकता है .
4. किसानों के सामने एक प्रमुख समस्या यह होती है कि सर्दियों में गेहूं को पानी लगाया जाता है उसके बाद बरसात हो जाती है जिसके कारण गेहूं पीली पड़ जाती है क्योंकि खेत पर्याप्त पानी नहीं ले पाते परंतु इसके इस्तेमाल के बाद यह ज़मीन की सख्त परतों को खत्म कर देता है जिससे खेत की वॉटर लीचींग की समस्या खत्म होकर ज़मीन पानी खींचने लगती हैं. जिससे हर फ़सल का झाड़ बढ़ेगा .
उपयोगिता (Availability)
पलटा हल यानी रिवर्सेबल हल की उपोयगिता काफी अधिक हो गई है क्योंकि यह न सिर्फ चावल की खेती के बाद के भूसे बल्कि उसके बाद होने वाली फ़सलों के लिए भी उपयोगी है यह फ़सल को अच्छी तरह काट कर व उनके बीज अलग कर खेत में दफ़नाने का काम करता है जिससे मिट्टी अच्छी तरह जुत जाती है और उसकी उपजाऊ शक्ति पर भी प्रभाव नहीं पड़ता. किसान को यह पता होना चाहिए कि खेत को कितने इंच गहरा जोतना है. अधिक से अधिक 8 से 10 इंच की ही आवश्यकता होती है क्योंकि खेते के नीचे दबी वो मिट्टी जिसको कभी पानी, ऑक्सीज़न, सूरज की किरण या धूप नहीं मिली,उस मिट्टी में जान नहीं होती, वो सारी ऊपर आ जाएगी .
चावल की कटाई के बाद पराली को दबाने के लिए इस हल का प्रयोग कर सकते हैं और यही सबसे उचित समय होता है. गेहूं के बाद चलाओगे तो 2 से 3 महिने का वक्त किसान के पास होता है उस समय वह सोचता है कि हल को जितना गहरा लगाया जाए उतना बेहतर है, लेकिन वह गलत है और यह ध्यान देने की जरुरत भी है कि किस हल के साथ कितने होर्स पॉवर का ट्रैक्टर होना चाहिए जैसे 2 बौटम वाले हल के साथ 45 से 50 होर्स पॉवर और 3 बौटम वाले हल के साथ 60 और 60 +होर्स पॉवर का ट्रैक्टर होना चाहिए.
कीमत (Price)
रिवर्सेबल प्लॉज़ या हल की कीमत उसकी कंपनी और उसकी आधुनिकता पर निर्भर करती है. आज भारत में इसकी कीमत 11 हज़ार से 3 लाख रुपये तक है बशर्ते यह कितनी अत्याधुनिक तकनीकों से लैस है और इसकी जीवन क्षमता (life) दूसरों के मुकाबले कितने गुना ज्यादा है .
कंपनियों का भारतीय बाज़ार (Indian market of companies)
भारतीय कंपनीयां (Indian companies)
आज का दौर भारत में कृषि को लेकर जागरुकता का दौर है और ऐसे में भारत की कईं ऐसी कंपनियां है जो विश्व स्तर की मशीनरी बनाकर किसानों को मुहैया करा रही हैं ताकि किसानों को बाहर की मशीनों पर निर्भर न होना पड़े और कम कीमत पर मशीने उपलब्ध हो सकें. ऐसी ही कुछ कंपनियां हैं -
1. विशाल उद्योग रोटरी टीलर मैनुफैक्चर्स इंडिया
2. इंडिया एग्रोविज़न इमप्लीमेंट प्राइवेट लिमिटेड
3. एक्सपोटर्स इंडिया
4. इंडियामार्ट
5. कैप्टन ट्रैक्टर्स
6. बुलएग्रो
इसी प्रकार और भी कईं कंपनियां है जो कृषि के क्षेत्र में सरहानीय कार्य कर रही हैं .
विदेशी ब्रांड (Foreign brands)
कृषि तकनीक की बात करें तो विदेशी हमेशा आगे रहे हैं और कृषि को लेकर उनके उन्नत और आधुनिक तरीके किसी क्रांति से कम नहीं है, भारत में बाहर के ब्रांडों की भी अच्छी खरीद- फ़रोक्त होती है और भारत इनका एक बड़ा बाज़ार है, कुछ विदेशी ब्रांड तो भारत के कृषि जगत में बड़ा नाम बन गए हैं जैसे - एक जर्मन आधारित कंपनी "लेमकेन”, जो एक कृषि औज़ार बनाने वाली कंपनी है उसने हाइड्रोलिक रिवर्सेबल हल के कईं प्रकारों को निर्मित किया है और वह इसकी किमतों को भी उचित बता रही हैं. लेमकेन के 2 बौटम वाले हलों को सरकार 2 लाख 10 हज़ार रुपये में दे रही है .
इसी तरह 3 बौटम वाले हलों पर 2 लाख 52 हज़ार की कीमत निर्धारित है .
1. उपलब्ध सब्सिडी (subsidy available)
सब्सिडी के बारे में यदि बात की जाए तो सरकार (लेमकेन) के रिवर्सेबल हलों पर कस्टम हायरिंग ग्रुप में एक अच्छी और बजट उपयुक्त सब्सिडी प्रदान करती है जैसे
2. बौटम वाले हाइड्रोलिक हल जिनकी कीमत 2 लाख 10 हज़ार है उसमें 1 लाख 12 हज़ार सब्सिडी के तौर पर दिए जाते हैं इसी तरह जो 3 बौटम वाला और 2 लाख 52 हजार की किमत का हल है उसके लिए 1 लाख 25 हज़ार की सब्सिडी दी जाती है. सब्सिडी को लेकर एक बात यह भी है कि यदि किसान अकेला ही लेना चाहता है तो यह सब्सिडी 70 हज़ार( 2 बौटम वाले) और 90 हज़ार( 3 बौटम वाले) पर देती है.
कहां से खरीदें (Where to buy)
खरीद की आज के समय में कोई परेशानी नहीं है बल्कि आज कईं विकल्प किसान के पास मौजूद है वो जैसा चाहे अपनी ज़रुरत के अनुसार हल ले सकता है . किसान चाहे तो नज़दीकी शाखा में जा सकता है नहीं तो अब किसानों के लिए ऑनलाइन सुविधा उपलब्ध हो चुकी है जिसके कारण वह अपनी सुविधानुसार कृषि युक्त मशीने बना सकता है . जैसे - indiamart.com, lemken.in , आदि.
किसको संपर्क करें (Whom to contact)
किसान के लिए यह एक असमंजस का विषय होता है क्योंकि वह एक जिस वस्तु को लेना चाहता है उसका उत्तम और टिकाऊ होना आवश्यक है क्योंकि उसका प्रयोग रोज़ होगा और यदि उसमें कुछ खराबी आई तो किसान के पास इतना समय नहीं की वह बार- बार कंपनी के चक्कर काटे, इसले उचित यही है कि किसान को एक सही डीलर से पहले बात कर लेनी चाहिए. कीमत से लेकर उसकी तकनीकी जानकारी से रुबरु हो जाना चाहिए फिर यह देखना चाहिए कि जिस कंपनी की मशीन को वह खरीद रहा है उसकी बाज़ार में क्या छवि है और सब जानकर ही खरीद करनी चाहिए. डीलर अपना नम्बर हर प्रोडक्ट के साथ ज़रूर देता है .
व्यक्तिगत टिप्पणी (Personal note)
आज कृषि को लेकर भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व की तकनीक में रोज़ नए आविष्कार हो रहे हैं और किसानों को विशेषकर भारतीय किसानों का ऑनलाइन तकनीक से जुड़ना बेहद जरुरी हो गया है क्योंकि किसान जब तक तकनीक से नहीं जुड़ेगा वह पीछे ही रहेगा और कृषि जगत की नईं जानकारियों से अवगत नहीं हो पाएगा.