जायटॉनिक गोधन: लाभकारी जैविक खेती और पशुपालन के लिए आधुनिक समाधान Success Story: प्राकृतिक खेती ने बदली किस्मत, किसान से अग्रिप्रेन्योर बनीं नीतुबेन पटेल, यहां पढ़ें उनकी सफलता की कहानी आधुनिक खेती का स्मार्ट विकल्प है Yodha Plus Hybrid Bajra: कम समय और लागत में मिलता है ज्यादा मुनाफा! किसानों को बड़ी राहत! अब ड्रिप और मिनी स्प्रिंकलर सिस्टम पर मिलेगी 80% सब्सिडी, ऐसे उठाएं योजना का लाभ जायटॉनिक नीम: फसलों में कीट नियंत्रण का एक प्राकृतिक और टिकाऊ समाधान फसलों की नींव मजबूत करती है ग्रीष्मकालीन जुताई , जानिए कैसे? Student Credit Card Yojana 2025: इन छात्रों को मिलेगा 4 लाख रुपये तक का एजुकेशन लोन, ऐसे करें आवेदन Pusa Corn Varieties: कम समय में तैयार हो जाती हैं मक्का की ये पांच किस्में, मिलती है प्रति हेक्टेयर 126.6 क्विंटल तक पैदावार! Watermelon: तरबूज खरीदते समय अपनाएं ये देसी ट्रिक, तुरंत जान जाएंगे फल अंदर से मीठा और लाल है या नहीं Paddy Variety: धान की इस उन्नत किस्म ने जीता किसानों का भरोसा, सिर्फ 110 दिन में हो जाती है तैयार, उपज क्षमता प्रति एकड़ 32 क्विंटल तक
Updated on: 24 May, 2022 9:22 AM IST
Electric Bull made in maharashtra

कोविड महामारी के दौरान पूरा देश थम गया था. देश दुनिया में चल रही  तमाम चीज़ों पर पाबंदी लग चुकी थी. नौकरी के लिए शहर आए लोग अपने गांव-घर की ओर लौट रहे थे. यह वह समय था जब घर से काम करने के  कल्चर का जन्म हुआ. इसी समय  इंजीनियर तुकाराम सोनवणे और उनकी पत्नी सोनाली वेलजाली को भी वर्क फ्रॉम होम करने का मौका मिला और उन्होंने गांव जाने का फैसला किया. लगभग 14 साल बाद ये लोग अपने गांव में इतने लम्बे समय के लिए गए थे. 

लेकिन  उनका ये समय गांव वालों के लिए वरदान साबित हुआ. तुकाराम और उनकी पत्नी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि  जुताईबुवाई और कीटनाशकों के छिड़काव की प्रक्रिया आमतौर पर मजदूरों की मदद से मैन्युअली होती है. इसके अलावाबैलों की भी कमी हैक्योंकि उनका रख-रखाव करना काफी महंगा है और किसान संसाधनों को शेयर भी करते हैं. इनमें से किसी भी प्रक्रिया में एक सप्ताह की भी देरीसीधे फसल के समय को प्रभावित करती है और इसका असर फसल की बिक्री पर पड़ता है. अगर वे अपनी उपज एक हफ्ते देर से बेचते हैंतो उन्हें अच्छा मुनाफा नहीं मिलता है.”  आगे वे कहते हैं कि इन्हीं सब कारणों की वजह से हमने इलेक्ट्रिक बैल बनाने का फैसला लिया.

ये भी पढ़ें: देश का पहला इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर, किसानों को महज इतने रुपए की कीमत में मिलेंगे.

इलेक्ट्रिक बैल कैसे बना

तुकाराम बताते हैं कि उन्होंने अपने एक दोस्त के फैब्रिकेशन वर्कशॉप की मदद से इसे  बनाने का फैसला किया. इसको डिजाइन करने के लिए इंजन और अन्य सामग्रियां बाहर से मंगवाई गईं थी. 

तुकाराम ने बताया कि उन्होंने महीनों किसानों के साथ उनकी समस्या पर चर्चा की और फिर उन्होंने और सोनाली ने यह फैसला  किया कि विशेष मौसम में मिट्टी और फसल के प्रकार के आधार पर किसानों की आवश्यकताएं बदलती हैं तो इसकी जरुरत के हिसाब से मशीन को बनाया जाये.

मशीन  के बारे में

एक बार फुल चार्ज करने  पर यह इलेक्ट्रिक बुल (Electric Bull) चार घंटे तक काम करता है.

सोनाली ने बताया कि  उन्होंने अपने प्रोडक्ट का ज्यादा प्रचार नहीं किया हैलेकिन फिर भी उनके इनोवेटिव मशीन की मांग पहले से ही होने लगी है. महाराष्ट्रआंध्र प्रदेश और अन्य राज्यों के किसानों और कंपनियों ने हमसे इसके  पूछताछ की है.

English Summary: maharashtra-couple-made-electric-bull
Published on: 24 May 2022, 09:41 AM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now