कोविड महामारी के दौरान पूरा देश थम गया था. देश दुनिया में चल रही तमाम चीज़ों पर पाबंदी लग चुकी थी. नौकरी के लिए शहर आए लोग अपने गांव-घर की ओर लौट रहे थे. यह वह समय था जब घर से काम करने के कल्चर का जन्म हुआ. इसी समय इंजीनियर तुकाराम सोनवणे और उनकी पत्नी सोनाली वेलजाली को भी वर्क फ्रॉम होम करने का मौका मिला और उन्होंने गांव जाने का फैसला किया. लगभग 14 साल बाद ये लोग अपने गांव में इतने लम्बे समय के लिए गए थे.
लेकिन उनका ये समय गांव वालों के लिए वरदान साबित हुआ. तुकाराम और उनकी पत्नी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि “जुताई, बुवाई और कीटनाशकों के छिड़काव की प्रक्रिया आमतौर पर मजदूरों की मदद से मैन्युअली होती है. इसके अलावा, बैलों की भी कमी है, क्योंकि उनका रख-रखाव करना काफी महंगा है और किसान संसाधनों को शेयर भी करते हैं. इनमें से किसी भी प्रक्रिया में एक सप्ताह की भी देरी, सीधे फसल के समय को प्रभावित करती है और इसका असर फसल की बिक्री पर पड़ता है. अगर वे अपनी उपज एक हफ्ते देर से बेचते हैं, तो उन्हें अच्छा मुनाफा नहीं मिलता है.” आगे वे कहते हैं कि इन्हीं सब कारणों की वजह से हमने इलेक्ट्रिक बैल बनाने का फैसला लिया.
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इलेक्ट्रिक बैल कैसे बना
तुकाराम बताते हैं कि उन्होंने अपने एक दोस्त के फैब्रिकेशन वर्कशॉप की मदद से इसे बनाने का फैसला किया. इसको डिजाइन करने के लिए इंजन और अन्य सामग्रियां बाहर से मंगवाई गईं थी.
तुकाराम ने बताया कि उन्होंने महीनों किसानों के साथ उनकी समस्या पर चर्चा की और फिर उन्होंने और सोनाली ने यह फैसला किया कि विशेष मौसम में मिट्टी और फसल के प्रकार के आधार पर किसानों की आवश्यकताएं बदलती हैं तो इसकी जरुरत के हिसाब से मशीन को बनाया जाये.
मशीन के बारे में
एक बार फुल चार्ज करने पर यह इलेक्ट्रिक बुल (Electric Bull) चार घंटे तक काम करता है.
सोनाली ने बताया कि उन्होंने अपने प्रोडक्ट का ज्यादा प्रचार नहीं किया है, लेकिन फिर भी उनके इनोवेटिव मशीन की मांग पहले से ही होने लगी है. महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और अन्य राज्यों के किसानों और कंपनियों ने हमसे इसके पूछताछ की है.