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Updated on: 8 May, 2023 6:18 PM IST
paddy thresher

थ्रेसर का निर्माण भारत में 1950 के आसपास शुरू हुआ और बिहार में इसका प्रचलन पिछले 10-वर्षों में काफी हुआ है. वैसे तो थ्रेसर कई प्रकार के होते हैं. जैसे कि बीटर टाइप, स्पाइक टूथ सिलिन्डर टाइप, ऑस्सीलेटिंग स्ट्रा वाकर टाइप जिसे मल्टी क्राप थ्रेसर से भी जाना जाता है एवं एक्सियल फ्लो टाइप. लेकिन किसानों के बीच प्रायः दो प्रकार के थ्रेसर काफी प्रचलित हैं. एक है ड्रमी टाइप और दूसरा एस्पोरेटर टाइप! दोनों ही प्रकार के थ्रेसर में खूंटीदार (स्पाइक) टाइप थ्रेसिंग ड्रम लगा होता है. ड्रमी टाइप थ्रेसर में दाना एवं भूसा पूर्णतया अलग नहीं हो पाता है. जबकि एस्पोरेटर टाइप में बिल्कुल साफ दाना छलनी से होकर बाहर निकलता है. ड्रमी टाइप थ्रेसर थोड़ा सस्ते पड़ते हैं. इसी कारण किसानों के बीच ज्यादा प्रचलित हैं. यहां पर दो प्रकार की विशेष जानकारी देना आवश्यक है. एक तो थ्रेसर खरीदते समय थ्रेसर का सही चुनाव कैसे करें और दूसरा थ्रेसर चलाने में क्या-क्या सावधानी बरतें.

थ्रेसर के सही चुनाव के साथ-साथ इसका सही तरह से रख रखाव भी आवश्यक होता है. सही प्रयोग न करने से घटना की संभावना बढ़  जाती है . पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के एक सर्वे से पता चला है  की घटना थ्रेसर को उचित प्रयोग न करने से होती है. जिनमें 72.5 प्रतिशत चालक की गलती से, 12.9 प्रतिशत मशीनी खराबी से, धूम्रपान से तथा 5.2 प्रतिशत अन्य कारणों से होती है. प्रति एक हजार से ज्यादा लोग छोटी मोटी थ्रेसर दुर्घटना के शिकार होते हैं. जिसमें उंगली कट जाना, बांह कट जाना, धोती या साड़ी का फस जाना आम बात है. अतः इन सब दुर्घटनाओं से बचने के लिए थ्रेसर प्रयोग के समय कुछ बातों को अवश्य ध्यान रखें जो इस प्रकार हैं:

कटाई उपरांत दौनी एक अत्यन्त महत्वपूर्ण कृषि कार्य है. दौनी के दो मुख्य उद्देश्य हैं, एक तो गेहूं के दाने को भूसे से इस प्रकार अलग करना कि गेहूं के दाने समूचे एवं सुडौल बने रहें. दूसरा, भूसा की गणना बनी रहे जो कि न तो बहुत छोटा हो और न ही बहुत बड़ा. यह जानकर बड़ी खुशी होती है कि दौनी का कार्य अब पूर्णतया थ्रेसर द्वारा ही होता है. पुरानी पद्धतियों में, बैलों से दौनी का कार्य अब पूर्णरुपेण खत्म हो गया है. छोटे से बड़े सभी किसान थ्रेसर से ही दौनी का कार्य करते हैं. थ्रेसर का प्रयोग केवल सुविधाजनक ही नहीं, बल्कि दौनी के कार्य को शीघ्रातिशीघ्र निपटाता भी है.

थ्रेसर खरीदते समय ध्यान देने योग्य बातें !

  1. थ्रेसर खरीदते समय आप केवल सस्ते मूल्य की तरफ न झुकें बल्कि अच्छी क्वालिटी पर जाएं जिसकी डिजाइन मजबूत, टिकाऊ एवं सुरक्षित हो. इससे थ्रेसर से होने वाली दुर्घटना की संभावना काफी कम हो जाती है.

  2. थ्रेसर की साइज का चुनाव आप उपलब्ध मोटर या इंजन की अश्व शक्ति के मुताबिक करें. जिससे मोटर या इंजन की पूरी ताकत का उपयोग हो सके.

  3. थ्रेसर उसी दुकान से ही खरीदें जो कि थ्रेसर बनाने में काफी कार्य कुशलता रखते हों तथा समय पर मरम्मती की भी सुविधा दे सकें.

  4. थ्रेसर पर आई० एस० आई० मार्क अवश्य लगा हो. आई0 एस0 आई० मार्क किए हुए थ्रेसर की डिजाइन सुरक्षित एवं कल पुर्जे ज्यादा विश्वासनीय होते हैं .

  5. थ्रेसर की डिजाइन में दुर्घटना से बचाव का पूरा प्रबंध होना चाहिए. ज्यादातर दुर्घटना थ्रेसर में फसल लगाते समय होती है. अतः फसल लगाने वाले पतनाले की डिजाइन ऐसी हो कि पतनाले की लंबाई, चौड़ाई तथा ऊपर से 45 से०मी0 ढका हो. पतनाला घेतर के साथ 5 डिग्री कोन पर ऊपर की तरफ उठा हुआ ढलान दार होना चाहिए!

ये भी पढ़ें- थ्रेसर का सुरक्षित उपयोग कैसे करें?

थ्रेसर प्रयोग करने में सावधानियां:

  1. मशीन को समतल जमीन पर लगायें तथा चारो पैरों को ईंटा गाड़कर बांध दें. इससे मशीन में कंपन कम होगा तथा पट्टे में उचित तनाव बनाए रखने में सुविधा होगी.

  2. हवा की दिशा में ही दौनी मशीन को रखें ताकि भूसों का निकास उधर ही हो जिधर हवा बह रही है.

  3. इंजन या मोटर की पुली का ब्यास इस प्रकार रखें कि थ्रेसर की पुली सही गति से चल सके. इसके लिए निर्माता के निर्देशों का पालन करना चाहिए. थ्रेसर की पुली अनुमोदित गति से कम होने पर दौनी ठीक प्रकार से नहीं होगी. अनुमोदित गति से ज्यादा होने पर गेहूं के दाने टूटने लगते हैं.

  4. थ्रेसर की गति ठीक होने के बावजूद भी यदि दौनी ठीक से नहीं हो रही हो अथवा दाने टूट रहे हो तो ड्रम एवं कनकेव के बीच की दूरी को एडजस्ट करना चाहिए.

  5. थ्रेसर की पुली एवं शक्ति श्रोत की पुली एक ही लाइन में होना चाहिए तथा पट्टा न अधिक ढीला हो और न अधिक कड़ा. पट्टों पर समुचित मात्रा में रेजिन या बरोजा के घोल का भी प्रयोग करना चाहिए जिससे पट्टा स्लिप न करे. प्रेसर एवं शक्ति श्रोत की दूरी कम से कम 3.5 मी0 अवश्य रखनी चाहिए.

  6. थ्रेसर चलाने से पहले सभी नट बोल्ट को जांच कर लेना चाहिए तथा सभी घूमने वाले पुर्जों एवं वायरिंग को ठीक प्रकार से तेल व ग्रीस देना चाहिए. मोटर को चलाने के पहले यह भी जांच कर लें कि कहीं ग्रेसिंग ड्रम जाम तो नहीं है.

  7. कभी-कभी थ्रेसर में लगी नीचे की जाली भूसे से पूर्णतया जाम हो जाती है उसे भी चलाने के पहले जांच कर लेना चाहिए.

  8. पुली एवं पट्टों की तरफ ऐसा अवरोध खड़ा कर दें ताकि कोई व्यक्ति उधर न जा सके.

  9. दानें के साथ यदि भूसा आ रहा हो तो ब्लोअर की गति एवं उसको चलाने वाले पट्टे की जांच करना चाहिए. साथ ही साथ छलनी केढाल को भी चेक करके एडजस्ट करना चाहिए.

  10. फसल को एक गति से मशीन के अंदर डालें ताकि मशीन पर एक समान लोड पड़े.

  11. पतनाला में फसल डालते समय हाथ को अधिक अन्दर नहीं डालें.

  12. एक पाली में आठ घंटे से अधिक काम मजदूरों द्वारा नहीं लेना चाहिए. थके मजदूरो द्वारा काम कराने से दुर्घटना की संभावना बढ़ जाती है.

  13. थ्रेसर पर काम करते समय किसी प्रकार की नशीली वस्तुओं का प्रयोग कभी नहीं करें.

  14. बच्चों एवं वृद्ध पुरूषों से कभी भी थ्रेसर पर काम नहीं लेना चाहिए. इससे दुर्घटना की संभावना बढ़ जाती है.

  15. ढीले वस्त्र पहनकर कभी भी थ्रेसर पर काम न करें. हाथ में चूड़ी, लहठी, घड़ी अथवा कड़ा पहन कर भी थ्रेसर के साथ काम न करें.

  16. रात में थ्रेसर चलाने के लिए समुचित रोशनी की व्यवस्था बना लेनी चाहिए. कम रोशनी में थ्रेसर संचालन से दुर्घटना की संभावना बढ़ जाती है तथा कार्य क्षमता घट जाती है.

  17. दौनी करते समय इस बात को हमेशा ध्यान रखें कि फसल बिल्कुल सूखी होनी चाहिए. सूखी फसल के साथ नम फसल को मिलाकर कभी भी दौनी न करें इससे थ्रेसिंग सिलिन्डर गर्म हो जायेगा और आग लगने का खतरा बढ़ जायेगा.

इस प्रकार इन सभी बातों को ध्यान रखने से थ्रेसर द्वारा होने वाली दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है तथा थ्रेसर की कार्यक्षमता को भी बढ़ाया जा सकता है.

लेखक

मनोरंजन कुमार- कृषि अभियंत्रण महाविद्यालय, डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा (समस्तीपुर),

प्रियंका रानी- वीर कुंवर सिंह कृषि महाविद्यालय, डुमरांव, बक्सर, बिहार एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, सबौर, भागलपुर

करेस्पोंडिंग ऑथर: rani.6priyanka@gmail.com* 

English Summary: How should farmers treat thresher properly?
Published on: 08 May 2023, 06:24 PM IST

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