बदलती जीवनशैली और खानपान का असर बच्चों पर भी पड़ रहा है. स्कूल जाने वाले बच्चे भी तनाव का शिकार हो रहे हैं. बच्चों में डिप्रेशन का प्रमुख कारण या तो पढ़ाई का बोझ होता है या पारिवारिक कलह या फिर माता-पिता की डांट. अक्सर मां-बाप भी अपने बच्चों को समझ नहीं पाते और अपनी मर्जी उन पर थोपने लगते हैं. जिसके कारण बच्चा डिप्रेशन में आ जाता है और वो अलग रहने लगता है. कहीं आपके बच्चे के साथ भी तो ऐसा नहीं है. अगर ऐसा है तो आप निम्न बातों का ध्यान रखें और बच्चो को उनसे दूर रखें -
यदि माता पिता के चेहरे पर बहुत ज्यादा तनाव रहता है तो यह आपके बच्चों के दिमाग को भी प्रभावित कर सकता है. बच्चों में तनाव का सबसे बड़ा कारण ज्यादा पढ़ाई का बोझ, सोशल साइट्स और आप स्वयं हैं. गौरतलब है कि वेब वर्ल्ड की दुनिया में बच्चे आसानी से किसी भी हिंसक सामग्री तक पहुंच जाते हैं. जैसे कहीं कोई भी हिंसा होती है तो इंटरनेट या न्यूज के माध्यम से बच्चों को पता चल जाता है. इसका बच्चों के दिमाग पर बुरा असर पड़ता है. हाल ही में हुए एक शोध से पता चला है कि जो बच्चे ज्यादा हिंसा देखते हैं, उन बच्चों में अवसाद, गुस्सा और तनाव अन्य बच्चों की तुलना में ज्यादा होता है. साथ ही इसके अलावा इस तरह के बच्चों में दूसरे बच्चों के प्रति भाईचारे की भावना भी कम होती है.
यदि पति-पत्नी नौकरी करते हैं, वे अपने बच्चों को बहुत कम समय दे पाते हैं. जिससे आपके बच्चे तनाव में रहते है. अक्सर तनावयुक्त बच्चे सहमे- सहमे से अलग ही बैठे नजर आएंगे. कुछ बच्चे डर के मारे नाखूनों को चबाना शुरू कर देते हैं. इसके लिए आपको विशेष ध्यान रखना चाहिए. घर में अक्सर माता- पिता बच्चों के सामने झगड़ने लगते है, जिससे बच्चे पर काफी गहरा असर होता है और बच्चे धीरे-धीरे तनाव ग्रस्त हो जाते है और तनाव में रहने लगते है. बच्चें खुशी भरा माहौल नहीं मिल पाने के वजह से प्यार के लिए तरसने लगते है. उनकी रोज की दिनचर्या ऐसे तनावग्रस्त माहौल में गुजरने लगती है, जिनसे उबरने की लाख कोशिश करने के बाद भी वो उबर नहीं पाते है परिणामस्वरूप बच्चा, चिड़चिड़ा, गुस्सैल , हिंसक, बात-बात पर भावुक होने लगता है. पेरेंट्स बच्चों के सामने मारपीट, बहस और गाली-ग्लौच करते हुए इस बात को भूल जाते है कि इनकी यह गलती बच्चो के लिए जिंदगीभर का दुख बन जाती है.
अगर बच्चा किसी परीक्षा में फेल हो जाता है तो उस पर अनायास ही दबाव डाला जाता है जो कि बच्चे को तनाव में लाता है. जबकि यहां यह समझने की जरूरत है कि यह कोई जीवन का अंत नहीं बल्कि नए कल की शुरुआत है. तनाव की वजह से कई बार आपका बच्चा बात-चीत करना बंद कर देता है. अपने आप में खोया रहता है. इतना ही नहीं, उसको अपने दोस्तों से भी साथ धीरे-धीरे छूट जाता है और वह अपने आप को अकेला समझने लगता है. रोज घर में झगड़े देखकर बच्चा इतना चिड़चिड़ा हो जाता है कि जरा-जरा सी बात पर गुस्सा करने लगते है. इसी गुस्सैल स्वाभाव से वह दूसरों को नुकसान भी पहुंचा सकता है. मानसिक तनाव बच्चे को कदर घेर लेता है कि उसका किसी भी चीज में मन नहीं लगता है. धीरे-धीरे बच्चा पढ़ाई-लिखाई के मामले में कमजोर पड़ जाता है. उसके मन में एक बात बैठ जाती है कि वह अब कुछ नहीं कर सकता.
ऐसे में पैरेंट्स की हमेशा यह कोशिश रहनी चाहिए कि किसी भी हिंसात्मक घटना को समझने और उसका सही तरह से सामना करने में बच्चों की मानसिक तौर पर मदद करें. साथ ही बच्चों से बात करें और उनकी बात को सुनने-समझने की कोशिश करें. बच्चों के मन में दूसरों की तारीफ सुन कर चिढ़ होती है. उनके आत्मसम्मान को ठेस लगती है. यदि उन्हें कोई प्रोत्साहित न करे तो वे सदा के लिए कुंठा का शिकार हो जाते हैं. अतः समय-समय पर आपको अपने बच्चे को उसकी तारीफ के साथ ताली बजाकर प्रोत्साहित करते रहना चाहिए.
यह आपको नशीले पदार्थों का शौक है तो इनका सेवन करने की आदत को घर के परिवेश से दूर रखें. मारपीट की बुरी आदतों को त्याग कर अच्छे माता-पिता बनने का प्रयास करना चाहिए.कहने का तात्पर्य यह है कि अपने बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए उसे तनावमुक्त माहौल उपलब्ध कराने का प्रयास करें क्योंकि छोटे बच्चों का मस्तिष्क बड़ा नाजुक होता है. अपने बच्चे के व्यवहार को हमेशा नोटिस करते रहें. अगर आपको लगे कि आपका बच्चा आजकल कुछ अजीब व्यवहार कर रहा है तो आप उसकी भावनाओं को समझिये और ज्यादा से ज्यादा वक्त उसके साथ बताइए. लेकिन फिर भी बच्चा अगर डिप्रेशन में है तो बाल चिकित्सक से संपर्क अवश्य कीजिए.