Groundnut Variety: जून में करें मूंगफली की इस किस्म की बुवाई, कम समय में मिलेगी प्रति एकड़ 25 क्विंटल तक उपज खुशखबरी! अब किसानों और पशुपालकों को डेयरी बिजनेस पर मिलेगा 35% अनुदान, जानें पूरी डिटेल Monsoon Update: राजस्थान में 20 जून से मानसून की एंट्री, जानिए दिल्ली-एनसीआर में कब शुरू होगी बरसात किसानों को बड़ी राहत! अब ड्रिप और मिनी स्प्रिंकलर सिस्टम पर मिलेगी 80% सब्सिडी, ऐसे उठाएं योजना का लाभ GFBN Story: मधुमक्खी पालन से ‘शहदवाले’ कर रहे हैं सालाना 2.5 करोड़ रुपये का कारोबार, जानिए उनकी सफलता की कहानी फसलों की नींव मजबूत करती है ग्रीष्मकालीन जुताई , जानिए कैसे? Student Credit Card Yojana 2025: इन छात्रों को मिलेगा 4 लाख रुपये तक का एजुकेशन लोन, ऐसे करें आवेदन Pusa Corn Varieties: कम समय में तैयार हो जाती हैं मक्का की ये पांच किस्में, मिलती है प्रति हेक्टेयर 126.6 क्विंटल तक पैदावार! Watermelon: तरबूज खरीदते समय अपनाएं ये देसी ट्रिक, तुरंत जान जाएंगे फल अंदर से मीठा और लाल है या नहीं Paddy Variety: धान की इस उन्नत किस्म ने जीता किसानों का भरोसा, सिर्फ 110 दिन में हो जाती है तैयार, उपज क्षमता प्रति एकड़ 32 क्विंटल तक
Updated on: 2 August, 2023 3:21 PM IST
Suran vegetables

सूरन की खेती भारत के काफी हिस्सों में की जाती है. इसे खाने के साथ-साथ एक औषधीय फसल के तौर पर भी उपयोग किया जाता है. भारत के कुछ हिस्सों में इसे ओल के नाम से भी जाना जाता है. इस फसल से उत्पादन के लिए पौधों को खास देखभाल की जरुरत होती है. अक्सर ऐसी फसलों में कई तरह के रोगों और बीमारियों के लगने का खतरा रहता है. यह रोग फसल की पैदावार को काफी ज्यादा प्रभावित करते हैं.

सूरन में फफूंद और बैक्टेरिया जनित रोग लगते है. इसके लिए फसल को समय-समय पर देखभाल की आवश्यकता होती है. फसल के अच्छे उत्पादन और बेहतर लाभ के लिए हमें इनको रोगों से बचाना अति आवश्यक होता है. हम इस लेख के माध्यम से सूरन में लगने वाले रोग और उनके बचाव की प्रक्रिया के बारे में बताने जा रहे हैं.

झुलसा रोग

यह एक जीवाणु जनित रोग है. इसका अटैक पौधों पर सितम्बर महीने के दौरान होता है और यह सूरन की पत्तियों को खा जाता हैजिससे पौधे की पत्तियों का रंग हल्का भूरा हो जाता है. कुछ दिन के बाद पत्तियां गिरने लगती हैं और पौधों का विकास रुक जाता है. इससे बचाव के लिए सूरन के पौधे पर इंडोफिल और बाविस्टीन के घोल को उचित मात्रा मे पौधों की पत्तियों पर छिड़काव करते रहना चाहिए .

तना गलन

यह रोग जलभराव वाले इलाकों में देखा जाता है. ऐसे रोग ज्यादा बरसात वाली जगहों पर होते हैं. इसके रोकथाम का सबसे बड़ा तरीका यह है कि आप पेड़ के आस-पास जल भराव की स्थिति बिल्कुल ही पैदा न होने दें. इकट्ठा होने वाला पानी पेड़ो के जड़ों में गलन पैदा करता है, जिस कारण पौधे कमजोर होकर गिरने लगते हैं. पौधे के तने को सड़ने से बचाने के लिए इसकी जड़ों पर कैप्टन नाम की दवा का छिड़काव करना चाहिए.

तम्बाकू सुंडी

सूरन में होने वाल यह एक कीट जनित रोग है. इस तम्बाकू सुंडी कीट का लार्वा बहुत ही आक्रमक होता है. इसके लार्वा का रंग हल्का भूरा होता है. यह पौधों की पत्तियों को धीरे-धीरे खाकर नष्ट करने लगता है. इन कीटों के लगने का समय जून से जुलाई महीने के बीच होता है. सूरन के पौधों पर लगने वाले इस रोग से बचाव के लिए मेन्कोजेब, कॉपर ऑक्सीक्लोराइड और थायोफनेट की उचित मात्रा में छिड़काव करना चाहिए.

ये भी पढ़ें: हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से चारे का उत्पादन

उत्पादन

एक हेक्टेयर के खेत में 80 से 90 टन सूरन की पैदावार की जा सकती है. बाजार में इसका भाव 3000 रूपए प्रति क्विटल है. किसान भाई इसकी प्रति एकड़ में खेती कर 4 से 5 लाख रुपये तक की कमाई कर सकते हैं. सूरन की फसल बुआई के लगभग आठ से नौ माह में तैयार होती है. जब इन पौधों की पत्तियाँ सूख कर  पीली पड़ने लगें तो इसकी खुदाई की जाती है. सूरन को जमीन से निकालने के बाद अच्छी तरह से मिट्टी साफ़ कर दे और दो से चार दिन के लिए धूप में सूखा लें. धूप लगने से सूरन का लाइफ टाइम बढ़ जाता है. आप इसे किसी हवादार जगह पर रख कर अगले 6 से 7 महीने तक उपयोग कर सकते हैं.

English Summary: How to prevent suran vegetables from diseases
Published on: 02 August 2023, 03:26 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now